आज बाप और बेटा दोनो एक साथ कोठे पर आया. पुतलीबाई से लङकी देने को कहा. किसी एक के साथ बेटा एक कमरे में चला गया. पुतलीबाई ने उसके बाप से कहा--" बेटा को तो सही जगह पे पहुंचा ही दिया. अब तुम यहां क्या कर रहे हो...?...जाओ अपने घर ". बाप खिसियाकर बोला-" मैं तुम्हें हिजङा नजर आता हूं क्या? ". पुतलीबाई का गुस्से से खून खौल उठा---"अरे जा जा हिजङों की बराबङी करता है. तुम मर्दों ने भगवान के दिये हुए हथियार को भांजने के सिवा किया ही क्या है, हिजङों से अलग. इतने महान तो हिजङे ही होते हैं जो यह जानते हैं कि हम भी किसी के मां, बहन और बेटी होते हैं. काश... तुम हिजङे होते तो किसी भी सूरत मे अपने बेटे के साथ कोठे पर नही आते".
क्रमशः.........
(मित्रों मुख्य शीर्षक "कोठा" के अन्तर्गत एक लघुकथा शृंखला लिख रहा हूं जिसके एक भाग दुसरे भाग से संबद्ध नहीं है.एक प्रयास है कुछ अनछुए पहलुओं को बाहर लाने का, वेश्या-वृति को हतोत्साहित करने का और पुरुषों के मानसिक विकृतियों को सही पुरुषार्थ की ओर दिशा देने का...........कृपया अपने टिप्पणियों के जरिये उचित सलाह देते रहें)
10 comments:
बहुत करार व्यंग, गहरी अर्थवत्ता लिए हुए. एक बात है यदि उनके अन्दर पुशात्व थोदा सा भी होगा तो सुधर जायेंगे. समाज को सुधरने हेतु इस प्रकार की कडवी गोली की आवश्यकता है . मुझे इस मुहीम में अपने साथ ही समझें. कभी हतोत्साहित न हीन. यही कामना है और सहयोग का वडाभी.
सार्थक लेखन।
भाई ये तो आपने गजब ही कर दिया
चचा-भतीजे एक साथ कोठे पर जाते तो
सुने थे, लेकिन बाप और बेटे एक साथ
पहुंचा दिए।
वैसे काफ़ी धार है। आधुनिक युग में
बाप बेटों को एक साथ कोठे पर देखकर
कोई आश्चर्य नहीं होगा।
आभार
ललित भाई की टिप्पणी से सहमत।
सटीक प्रहार करती लघु कथा बधाई
बड़ी करारी मार मारी है जो की बिलकुल सही है !!!
हिजड़े भी एँज्वाय करते कराते हैं ।
आपकी पोस्ट ब्लाग4वार्ता में
विद्यार्थियों को मस्ती से पढाएं-बचपन बचाएं-बचपन बचाएं
बहुत करारा व्यंग
समाज का पतन तो हो ही चुका है। जब बाप और बेटे साथ बैठकर शराब पी सकते हैं तो फिर कोठे पर जाएंगे ही।
आपने तो चिन्दी-चिन्दी कर दिया इस अभ्रद समाज को। आपको बधाई।
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