Friday, July 23, 2010
व्यंग्य--- मैं, मेरी पत्नी और ब्लोगिंग
भारत पाकिस्तान के बीच के क्रिकेट मैच की तरह हमारा मुकाबला भी रोमांचक दौङ में पहुंच चुका है. मैं और मेरी पत्नी के बीच जो आ चुका है उसका नाम है ब्लोगिंग. इस ब्लोगिंग ने मेरे लाइफ़ को ब्लोक कर दिया है. क्या धुम-धाम से शादी किया था...क्या-क्या सपने देखे थे....ब्लोगिंग ने सारे अरमानों पर पानी फ़ेर दिया. वैसे ब्लोगिंग की शुरुआत भी शादी की तरह ही मजेदार था लेकिन शनि की दृष्टि और डायन की नजर पङने के बाद तो हरे पेंङ भी सूख जाते हैं. पहली बार जब ब्लोग खोला और उसका नाम क्रांतिदूत रखा तो सफ़ल ब्लोगिंग लाइफ़ के लिये सोचा दुष्टों को अपने पक्ष में कर लूं.सो सबसे पहले अपनी धर्मपत्नी को बताया. वह गर्म पानी के फ़व्वारे की तरह फ़ूट गयी--" क्रांति तो मैं लाऊंगी तुम्हारे लाइफ़ में. घर के लिये वैसे ही तुम्हारे पास समय नहीं रहता उपर से अब ये फ़ालतू काम करने जा रहे हो ". मैंने देवी के क्रोध को भद्रपुरुष की तरह मधुर वचन से नियंत्रित करना चाहा---"नहीं प्रिये...ब्लोगिंग के जरिये सृजनात्मक लेखन से अपने जीवन के रिक्तता को भरना चाहता हूं ". अति भद्रता के कारण पत्नी और ही उबल पङी--" जीवन की रिक्तता दिखती है और जेब की रिक्तता नहीं दिखती ? बैंक का लाकर भी खाली है और रसोई गैस का सिलिंडर भी. मेरी कान..गला सब खाली है.......ये सब रिक्तता तुम्हें नहीं दिखता ". वह सही दिशा में आगे बढ रही थी, लेकिन इससे पहले की जीवन की रिक्तता शुन्यता में बदले मेरे लिये विषय बदलना अनिवार्य था. मैंने कहा--" प्रिये, साहित्य से बढकर कोई कोष नहीं होता ". जवाब हाजिर था---" तो क्यों नही साहित्य खाकर कार्यालय में ही साहित्य कि बिस्तरे पर सो जाते हो ?...कम से कम बच्चों के बारे में तो सोचो. तुम्हारे साथ ही काम करते हैं धनन्जय बाबू. उनके घर में क्या नहीं है. उनकी वाईफ़ के पर्स मे हर समय नोटों की गड्डी भरी रहती है." अब मैं थोङा सा सख्त हुआ.----" देखो...साहित्य को भ्रष्टाचार से मत लङाओ. पहले से ही साहित्य भ्रष्टाचार से जूझ रहा है.संसेक्स की तरह भ्रष्टाचार का ग्राफ़ जितनी तेजी से उपर उठ रहा है, साहित्य का शेयर उतनी ही तेजी से लुढकता ज रहा है. पहले साहित्य को मजबूत होने दो फ़िर देखना ये भ्रष्टाचार फ़टे हुए गुब्बारे की तरह सटक जायेगा "....वह बीच में ही बोलने लगी---" भ्रष्टाचार तो बाद मे सटकेगा उससे पहले ही तुम्हारा बेटा फ़ुटबाल की तरह किक मारकर तुमको गोल-पोस्ट मे डाल देगा. निकम्मे लोगों के साथ ऐसा ही होता है ". वह साक्षात काली का रूप धारण कर चुकी थी. मेरी थोङी सी सख्ती का प्रभाव गैर-मामूली था. मैंने शिष्टतापूर्वक कहा---" प्रिये शांत हो जाओ. नारी होकर नारे मत लगाओ. सरल और मधुर भाषा में बताओ कि मेरे पुत्र के सम्मुख ऐसी कौन सी समस्या है कि वह मेरे जैसे महान पिता पर आघात करने के लिये बाध्य हो गया है ". मेरी साहित्यिक भाषा भी निष्प्रभावी रही. " इंजिनियरिंग में एडमिशन के लिये दलाल २ लाख रुपये मांग रहा है. यदि एडमिशन नहीं हुआ तो उसका भविष्य चौपट हो जायेगा. फ़िर जिन्दगी भर घास छीलता रहेगा ".....कहकर वह शांत हो गयी. मातृभाव पत्नीभाव के उपर छा गया. उसके क्रुर नेत्र सजल हो गये अन्यथा उसकी आंखों में घरियाली आंसू के भी विरले ही दर्शन होते थे. कुछ भी हो मुझे लगा भावानात्मक रूप से मैं अपनी पत्नी से जीत रहा हूं. मृग मरीचिका ही सही रेतों पर पानी के बूंद तो दिख ही रहे थे. सूख चुके तालाब में बरसाती ही सही थोङा सा पानी तो आया. मुझे लगा चुप रहना चाहिये ताकि यही स्थिति बनी रहे. वह बोलती रही---" कितने सपने देखे थे अपने बेटे के लिये....सारे सपने टूट गये....." इस बार तो आंसुओं की बाढ आ गयी. मानो खाली तालाब पूरी तरह बरसाती पानी से लबालब भर गया. उस तालाब में और पानी आये इसलिये उसे खाली कर देना चाहिये. यह सोचकर मैंने अपने रुमाल से उसके आंसू पोछ दिये----"मैं कुछ करता हूं. यह गंभीर समस्या है कि जिसे तुम दलाल कहती हो उस भद्रपुरुष ने अपनी आवश्यकता की पूर्ती के लिये मेरे अयोग्य सुपुत्र से अनुचित रुप से २ लाख रुपये मांगे. मैं इस विषय पर अपने ब्लोग में लिखुंगा और उस तथाकथित दलाल को अपना पोस्ट मेल करुंगा जिससे उसके भ्रष्टविचार धुल जायेंगे और आर्थिक एवं बौद्धिक रूप से पिछङे हुए मेरे सुपुत्र के प्रति करुणा भाव का जन्म होगा....". मैं अपनी धुन में बोलता जा रहा था. एक तरफ़ मैं साहित्य सृजन कर रहा था तो दूसरी तरफ़ मेरी पत्नी विध्वंस कर रही थी. मैं रचनात्मक विनोद की स्थिति में था वह क्रोध-क्रीङा में लीन थी. कुछ ही देर में मेरा लैपटोप कुर्सी के टुटे हुए पांव के हाथों बच्चों का खिलौना बना दिया गया था.
15 comments:
@-" प्रिये शांत हो जाओ. नारी होकर नारे मत लगाओ. सरल और मधुर भाषा में बताओ कि मेरे पुत्र के सम्मुख ऐसी कौन सी समस्या है कि वह मेरे जैसे महान पिता पर आघात करने के लिये बाध्य हो गया है ".
बहुत बढ़िया लिखा है । मज़ा आ गया पढ़ कर ...सच कहूँ बहुत हंसी आ रही थी पढ़ते समय । आपकी पत्नी निश्चित ही एक आदर्श पत्नी हैं। थोड़ी चापलूसी करना सीखिए। फिर देखिया मज़ा।
वैसे मेरे साथ ये समस्या नहीं आती, उलटे पतिदेव खुश रहते हैं की अच्छा है, साहित्य सेवा में व्यस्त रहती है, कम से कम मेरा सर तो नहीं खाती।
बहुत सुन्दर पोस्ट ।
बधाई !
.
bahut hi badhiyaa.........
chaliye sir ek baar phir muskura liye hum :)))
साहित्य को भ्रष्टाचार से मत लङाओ. पहले से ही साहित्य भ्रष्टाचार से जूझ रहा है.संसेक्स की तरह भ्रष्टाचार का ग्राफ़ जितनी तेजी से उपर उठ रहा है।
वाह अरविंद बाबु कमाल कर दिया।
एक ईमानदार ब्लागर की मनोदशा को क्या खूब चित्रित किया है। लैपटॉप टूट जाए कोई बात नहीं,
डेस्कटॉप पर लगे रहिए।:)
" क्रांति तो मैं लाऊंगी तुम्हारे लाइफ़ में. घर के लिये वैसे ही तुम्हारे पास समय नहीं रहता उपर से अब ये फ़ालतू काम करने जा रहे हो ". मैंने देवी के क्रोध को भद्रपुरुष की तरह मधुर वचन से नियंत्रित करना चाहा---"नहीं प्रिये...ब्लोगिंग के जरिये सृजनात्मक लेखन से अपने जीवन के रिक्तता को भरना चाहता हूं ". अति भद्रता के कारण पत्नी और ही उबल पङी--" जीवन की रिक्तता दिखती है और जेब की रिक्तता नहीं दिखती ? बैंक का लाकर भी खाली है और रसोई गैस का सिलिंडर भी. मेरी कान..गला सब खाली है.......ये सब रिक्तता तुम्हें नहीं दिखता ".
Nice and wonderful. Karara vyang. Thanks
" क्रांति तो मैं लाऊंगी तुम्हारे लाइफ़ में. घर के लिये वैसे ही तुम्हारे पास समय नहीं रहता उपर से अब ये फ़ालतू काम करने जा रहे हो ". मैंने देवी के क्रोध को भद्रपुरुष की तरह मधुर वचन से नियंत्रित करना चाहा---"नहीं प्रिये...ब्लोगिंग के जरिये सृजनात्मक लेखन से अपने जीवन के रिक्तता को भरना चाहता हूं ". अति भद्रता के कारण पत्नी और ही उबल पङी--" जीवन की रिक्तता दिखती है और जेब की रिक्तता नहीं दिखती ? बैंक का लाकर भी खाली है और रसोई गैस का सिलिंडर भी. मेरी कान..गला सब खाली है.......ये सब रिक्तता तुम्हें नहीं दिखता ".
Aapki dharam patni ki jay ho!
अरविंद जी, एकदम सत्य वचन कहे हैं आपने। हम भी भुक्तभोगी हैं।
………….
ये ब्लॉगर हैं वीर साहसी, इनको मेरा प्रणाम
...बेहतरीन ... बधाई!!!
मजा आ गया. अरे आप बिलासपुर के हो. अच्छा लगा.
बहुत ही बेहतरीन, एकदम सटीक, जितनी भी तारीफ करूँ कम हैं........ बहुत खूब!
चलिए कोई तो ऐसा है जो क्रांतिदूत के सामने क्रांति ला सके ! वासी बात तो भाभीजी ने सही ही कही पहले जेब की रिक्तता भरिये बाद में ब्लोगिंग की ! वो कहा गया है ना भूके पेट ना भजन गोपाला !!
मजेदार पोस्ट !!!
Bahut shaandar prasuti...
Haardik shubhkamnayne
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
बहुत खूब. एक बेहतरीन व्यंग्यात्मक लेख. पढ़ कर मजा आ गया.
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