Wednesday, June 30, 2010

चश्मदीद मैं भी हूं.

राक्षस बाप के हाथों
लक्ष्मी बिटिया के गर्दन कटने का,
राखी पहनानेवाली हाथों को
भरोसे की अंगुली पकङाकर
कोठे तक पहुंचाने का
चश्मदीद मैं भी हूं.

मजहब की आग में
गाजर-मूली की तरह
इंसानों के कटने का,
मासूमों पर बोझ डालकर
फ़ंदों तक पहुंचाने का
चश्मदीद मैं भी हूं.

कुर्सी के खेल में
दंगा करवाने का,
न्याय के मंदिर में
अन्याय को जन्माने का
चश्मदीद मैं भी हूं.

तुम्हारी रगों में बहनेवाला
खून जम गया था
फ़्रीज में रखे पानी की तरह.
मेरा भी वही हाल था
क्योंकि
चश्मदीद मैं भी हूं.

वे तो पापी हैं.
जुर्म तुम्हारा भी कम नहीं
मुझे भी उतनी ही सजा मिलेगी
क्योंकि अन्याय का
चश्मदीद मैं भी हूं.

Tuesday, June 29, 2010

बेवकूफ़

बङा भाई समझदार, समृद्ध और शक्तिशाली था. वह काफ़ी पढा लिखा और बङे पद पर कार्यरत था. छोटा भाई बेरोजगार, गरीब और मूर्ख था. लोग उसका मजाक उङाया करते थे. अक्सर चौराहे पर लोगों के सामने उसकी बेवकूफ़ी पर हंसा जाता था. उसे यदि पांच रुपये और दो रुपये के सिक्कों में से एक को चुनने कहा जाता तो वह दो रुपये का सिक्का चुनता था. लोग हंसते थे और दो रुपये का सिक्का दे देते थे.
आज साझा आम के पेंङ से आम तोङा गया. चालाकी से बङे भाई ने पचास जोङी आम का एक हिस्सा और बीस जोङी का दूसरा हिस्सा बनाया. फ़िर उदारता दिखाते हुए छोटे भाई को अपना हिस्सा चुनने का हक दिया गया. छोटे भाई ने बीस जोङी आम का हिस्सा चुना और टोकरी मे भर लिया. घर आने पर बेटी ने पूछा--"बापू, जब तुम जानते हो कि पचास बीस से ज्यादा होता है तो फ़िर ऐसी बेवकूफ़ी क्यों..?".बाप ने टूटे मन से जबाव दिया--"बेटी सिर्फ़ अमीर लोग ही समझदार होते हैं. यदि मैं पचास जोङी आमवाला हिस्सा चुनता तो मुझे बीस जोङी आम भी नहीं मिलता. गरीबों को यदि अपने अधिकार का एक टुकङा भी चाहिये तो उसे बेवकूफ़ बनकर ही जीना पङता है."

Monday, June 28, 2010

चीनी की बीमारी --लघुकथा

हृदयगति अचानक तेज हो जाने से परेशान रोगी डाक्टर के पास पहुंचा.उसे तत्काल दवा दी गयी. वह ठीक हो गया.वह ठीक हो जाने के बाद कहने लगा--" डाक्टर साहब, आज से काफ़ी पहले मुझे किसी डाक्टर ने कम चीनी खाने को कहा था. आजकल मैं काफ़ी कम चीनी खाता हूं फ़िर भी......"कहकर चुप हो गया. डाक्टर ने समझाया--"आप चीनी खाना बिल्कुल ही बंद कर दीजिये नहीं तो रक्तचाप बढ सकता है,हृदयगति रुक सकती है,हृदयाघात भी हो सकता है और भी कई तरह की बीमारियां हो सकती है--" इस पर रोगी ने कहा---"लेकिन डाक्टर साहब, यदि दवा लेता रहूं तो थोङा सा चीनी तो खा सकता हूं ना?". डाक्टर ने कहा--"नहीं...बिल्कुल नहीं, मैं बीमारी का इलाज करता हूं, मंहगाई का नही.मंहगाई से पुरा देश परेशान है लेकिन यह भी लाइलाज है.मैं आपकी सहायता नहीं कर सकता.यदि डायलासिस पे जीना चाहते हैं तो डाक्टर मनमोहन सिंहजी से इलाज करवाइये.

Thursday, June 17, 2010

कायरों की भीङ में हम सर कटाने आये थे.

जिसने न पायी मोहब्बत उनको पटाने आये थे.
कायरों की भीङ में हम सर कटाने आये थे.

जानता था जालिमों का जुल्म चलता ही रहेगा.
हम शहादत का तमाशा उनको दिखाने आये थे.

सोती रही है जिंदगी , ठंढी मिट्टी के कब्र में,
हम मुसाफ़िर क्रांति की चंगारी जलाने आये थे.

नफ़रतों की दुनियां मे तो आशिकी भी पाप है.
हम मौत को अपनी मोहब्बत भेंट करने आये थे.

आज भी बहनों की इज्जत लुट रही है बेधङक
जुल्म के सौदागरों से इज्जत बचाने आये थे.

इंसानियत की पीठ पर चाकू के निशानें हैं कई
हम शेर बनकर गोलियां छाती पे खाने आये थे.

आज मजहब पाखंडियों के घर की है वेश्या बनी
पैगाम भाईचारे का लेकर मजहब सिखाने आये थे.

हर जुर्म के चौराहे पर तुम टांग देना लाशें मेरी.
हजारो मौतों के बीच हम जिंदगी जीने को आये थे.

Wednesday, June 16, 2010

क्या हुआ जो ना चढा पोस्ट ब्लोगवाणी पर

क्या हुआ जो ना चढा पोस्ट ब्लोगवाणी पर
वाह-वाही ना मिली छोटी - बङी नादानी पर.

मैने जो कविता कहा तुने वही कहानी लिखी
कुछ ने चटका न भरा ब्लोग की दिवानी पर.

उनकी झूठी , मामुली बातें चढी जो आसमां
अपनी बातें रेत में जो दब गयी वीरानी पर.

खुद के शब्दों पे खुदीने खुद बजायी तालियां
हो गये हैं बूढे मगर इतरा रहे जवानी पर.

कोई बना क्रांतिदूत तो किसी ने बिगुल फ़ूंका
अंतिम सच सब भूल गये लङते रहे कहानी पर.

रुई सा हल्का हो गया मर्दों की बातों का वजन.
पसंद के चटके मारते हैं खूबसूरत जनानी पर.

आचार्य भी फ़र्जी निकला,जलजला भी झूठ था
कोई रोक न पाया कभी कलम की मनमानी पर

अब भी रचना हंस रही, पाखी भी आजाद है
ठान ली है ताजमहल बनायेंगे हम पानी पर.

प्यारा यह संसार शब्द का राह दिखा सकते हैं सबको
जग में कोई मूर्ख नहीं, नतमस्तक सबके सयानी पर.

स्वयं महान हूं मैं मित्रों तुम महानतम सारे जग में
तेरे रहते नाम हमारा कैसे चढ सकता ब्लोगवानी पर...??

Tuesday, June 15, 2010

गुलामी.

वह गुलाम है लेकिन उसकी मानसिकता नहीं. क्या हो गया जो उसने दो वक्त की रोटी के लिये ठाकुर से कुछ रुपये उधार ले लिये, इसके बदले में ठाकुर ने भी तो उसकी जमीन गिरवी रख ली थी.दो दिनों से उसका बेटा बीमार था कैसे जाता वह ठाकुर की खातिरदारी करने..?.उसने कोई गुनाह नहीं कर दिया था. जब ठाकुर ने बुलावा भेजा तो शेर की तरह चल दिया मिलने.मगर ठाकुर की नजर में वह अपराधी था. जो पेट की आग बुझाता है उसे .......पर लात मारने का हक भी है.उसके आते ही ठाकुर ने उसे खंभे से बांधकर खूब पीटा.वह लाचार था, मार भी खाया और अपमान का घूंट भी पीया.

पचास साल बाद

आज उसके पोते सेवाराम को उसी ठाकुर का पोता छोटे ठाकुर ने घर बुलाया. सेवाराम पहली बार ठाकुर की हवेली जा रहा है.पता नहीं उससे क्या भूल हुई है. वह डरा हुआ है , नहीं गया तो बहुत बङा अपराध हो जायेगा. चेहरा लाल है, पसीना छुट रहा है.वह सहमा हुआ दरवाजे तक जाता है.छोटे ठाकुर अपने दोस्तों के साथ बैठे हुए है .दरवाजे के अन्दर जाने की उसे हिम्मत नहीं हुई. वह तनिक रुका फ़िर दूसरी तरफ़ मुङा और धीमें कदमों से चहलकदमी करते हुए उसी खंभे के पास खङा हो गया जहां कभी उसके दादा को बांधकर पीटा गया था.

Monday, June 14, 2010

आज का गांधी

चौबीस-पच्चीस साल का एक युवक चौराहे पर भाषण दे रहा था-"दोस्तों , भ्रष्टाचार देश की सबसे बङी समस्या है. आज इसके चलते लोगों को नौकरी नहीं मिलती, लाचारों को न्याय नहीं मिलता, गरीबों को रोटी नहीं मिलती, सरकार के खर्च होनेवाले एक रुपया में से दस पैसा भी जरुरतमंदों तक नहीं पहुंचता............सत्त के दलालों ने भ्रष्टाचार को देश के कोने-कोने तक पहुंचा दिया है. हमें ऐसे लोगों को चौराहे पर बांधकर गोली........" तभी मंत्री महोदय के कारों का काफ़िला चौराहे से गुजर रहा था . मंत्री महोदय ने अपने एक सलाहकार से कहा----"यह युवक काफ़ी क्रांतिकारी दिखता है, बहुत ही जोरदार भाषण दे रहा है........लेकिन इसके विचारों से हिंसा की बू आ रही है. इससे जाकर मिलो. मेरी ओर से शुभकामनायें देना और गांधी के बताये रास्ते पर चलने को कहना". मंत्री महोदय के कारों का काफ़िला आगे बढ गया और सलाहकार वहीं उतरकर सीधे उस युवक के पास गया. उसने उस युवक से कहा--"मंत्रीजी ने आपको शुभकामनायें भेजा है और गांधी के बताये रास्ते पर चलने का आग्रह किया है." ऐसा कहते समय ही उसने अपनी जेब से अर्धपारदर्शी
लिफ़ाफ़ा निकालकर उस युवक के शर्ट की जेब में रख दिया. वह युवक फ़िर से भाषण देने लगा--"दोस्तों बेशक भ्रष्टाचार देश की समस्या है, लेकिन सभी समस्याओं का मूल तो नक्सलवाद और आतंकवाद है......और इन समस्याओं का निदान भी देश के भाग्य-विधाता गांधी के सत्य और अहिंसा के जरिये ही करने में सफ़ल हो रहे है.गांधी आज भी हमारे हृदयों में जिंदा हैं और देश के कोने-कोने में उन्हें सम्मान प्राप्त है."युवक के शर्ट की जेब से अर्ध पारदर्शी लिफ़ाफ़े के भीतर से हरे कागजों पर गांधी की धुंधली तस्वीर स्पश्ट दिख रही थी.

Tuesday, June 8, 2010

प्यार की परिभाषा पूछा नाम तुम्हारा बता दिया

सारी दुनियां से तु प्यारी मैंने सबको जता दिया
प्यार की परिभाषा पूछा नाम तुम्हारा बता दिया.

सागर की लहरों को मैंने हंसते हंसते छका दिया
उसकी ही राहों में मैंने प्यार का शिला लगा दिया.

चांद को बोला दाग छिपा ले तेरी भी कोई सूरत है.
पूछा तेरी महबूब है कैसी ? तेरी मूरत दिखा दिया.

पर्वत के मांथे को मैंने आज जमीं पर झुका दिया
तुझको देख गगन मंडल में अपना मांथा उठा लिया.

पंडितों और मुल्लाओं को मोहब्बत का पाठ पढा दिया
खुदा से जाकर अपना मजहब प्यार है मैंने बता दिया.

सीमा और सरहद को मैंने उसकी ही हद दिखा दिया
प्यार की हर एक सीमा को पल भर में ही मिटा दिया.

मेरे महबूब की जात जो पूछा मैंने तमाचा लगा दिया
तेरे ही हाथों की मेंहदी के रंग को मैंने दिखा दिया.

गरजी थी दुश्मन की तोपें फ़िर भी उनको हरा दिया
तेरे पायल की मीठी खन-खन मैंने उनको सुना दिया.

Sunday, June 6, 2010

तेरा यौवन सुन्दर-वन सा

मृग-नयनी सी आंखें तेरी
होठ तुम्हारे कमल फ़ूल सा
केश घने बादल के जैसा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.

तेरा तन हो जैसे चंदन
रंग तुम्हारा किरण सूर्य का
तेरा मन है मलय पवन सा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.

उद्यान-शिला से वक्ष तुम्हारे
हिरण की तरह चलती हो तुम
कोमल हृदय बसंत के जैसा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.

Friday, June 4, 2010

रचना या यथार्थ....?

पेट की भूख
कलेजे का दर्द
आंखों का पानी
छल और विश्वासघात
को जोरदार, खूबसूरत
और प्रशंसनीय कहकर
जले पर नमक छिङका जा चुका है.
उपर से वाह-वाह कहकर
कितना कर्जदार बनाया जायेगा मुझे...?

कविता.....तुम सबसे कह दो
कि तुम रचना या कल्पना नहीं
यथार्थ हो.

कल्पना उङान भर सकती है
यथार्थ नहीं हो सकती
वह मजबूत और विशाल है.

Thursday, June 3, 2010

जानवर....तुम महान हो

चौराहे पर सेक्स करना जानते हो,
तुम्हें बलात्कार करना नहीं आता.
तुम विश्वास करना जानते हो,
तुम्हें छल करना नहीं आता.
तुम बोलना जानते हो,
झूठे शब्द गढना नहीं आता.
तुम्हारे पास बुद्धि है,
तुम चालाकी नहीं जानते.
तुम चारे का सम्मान करते हो,
तुम्हें रोटी छिनना नहीं आता.

मूर्ख होते हुए भी तुम महान हो,
क्योंकि तुम इंसान नहीं हो.
तुम्हें मुखौटा पहनना नहीं आता.

Wednesday, June 2, 2010

मैं भी भूखा हूं.

संस्था में चार लोग काम कर रहे थे. कल मुझे एक हजार रुपये प्रति श्रमिक कुल चार हजार रुपये वेतन देना था.हाथ पर रुपये सिर्फ़ दो हजार ही थे.मैंने चारो श्रमिक के पिछले माह के कार्य का अवलोकन किया.दो श्रमिक लगातार कार्यालय में उपस्थित हुए थे. एक श्रमिक के दाहिने हाथ की हड्डी टूट जाने के कारण उपस्थित होकर भी कार्य करने में असमर्थ रहा था.बांकी एक श्रमिक जो वृद्ध भी हैं महिने में पंद्रह-बीस दिन अस्वस्थ रहे थे. मैंने कर्तव्यनिष्ठा को ध्यान में रखकर उन दो श्रमिकों को वेतन दे दिया जो लगातार कार्यालय में उपस्थित हुए थे. बांकी दो लोगों को मैंने ये बता दिया कि वेतन सिर्फ़ काम करनेवालों को दिया जाता है.

रात में फ़ोन की घंटी बजी........"बेटे, तुम्हारे चाचा बीमार हैं. खाने के लिये अनाज भी नहीं है, दवा भी खरीदना है. यदि वेतन नहीं मिला तो आगे तुम्हें चाचा से कोई शिकायत नहीं होगी.....क्योंकि अब वे हालात से लङकर ज्यादा दिन नहीं जी पायेंगे.........".मेरे पास कोई शब्द नहीं था......"कुछ भी करो, हमारा पेट तो तुम्हीं चलाते हो........"मैं फ़िर निःशब्द था. उन्हें कैसे बताता कि मैं चाचा का दर्द जानता हूं क्योंकि मैं भी भूखा हूं.

Tuesday, June 1, 2010

गुङ और चींटी

मैं अपने घर में चींटियों से परेशान था.खाने पीने का सामान तो दूर मेरे कपङे,बिस्तरे और सोफ़ा सेट भी उससे अछुता नहीं था.वैसे चींटियां भी मुझसे परेशान हो चुकी थी. एक दिन मुझसे उनकी हालत देखी नही गयी और मुझे उनपे तरस आ गया.मैंने सोचा यदि थोङा सा गुङ लाकर रख दूं तो ये मुझे भी परेशान नहीं करेंगे और इनका भी कल्याण होगा.

अगले ही दिन मैं बाजार से पांच किलो गुङ लाकर अपने घर में रख दिया.कुछ देर के बाद उसपर दो-चार चींटियां आ गयी.फ़िर अगले कुछ मिनटों के बाद चींटियां कतारों में सैकङो-हजारो की संख्या में आने लगी.उनका शिष्टाचार देखते ही बन रहा था.कहीं किसी तरह का विरोध नहीं.

कुछ दिनों के बाद विभिन्न आकार और नस्लों वाली कई तरह की चींटियां गुङ के उपर जमा हो चुकी थी.धीरे-धीरे गुङ भी घटने लगा था.छोटी-छोटी कई चींटियों को गुङ से दूर कर दिया गया था. कुछ चींटियां समुहों में किसी सरदार चींटी के अधीन गुङ पर काबिज थी.कुछ बङी काली चींटियां हिंसात्मक दिख रही थी.नस्ल, रंग-रुप और आकार के आधार पर चींटियों का दल बन चुका था.उपर से देखने पर सारा माजरा श्पष्ट दिख रहा था.......किस तरह चंद चींटियों ने राजनीति से गुङ के बङे हिस्से पर कब्जा कर लिया था.कुछ चींटियां रक्षा के नाम पर गुङ भोजन में दलाली ले रही थी और कुछ को बलपुर्वक वंचित कर दिया गया था.मैंने अपने एक मित्र को बुलाकर दिखाया और कहा -" देखो, अभी भी इतना गुङ बचा हुआ है कि सभी चींटियां आराम से बसर कर सकती हैं फ़िर भी किस तरह आपस में लङ रही हैं." मेरे मित्र ने कहा-"दोस्त,इस गुङ का भी वही हश्र हो रहा है जो हमारे देश का हुआ है.गुङ के टुकङे-टुकङे तो हो ही चुके हैं ,लगता है इसके टुकङे भी सलामत नहीं बचेंगे और चींटियों का तो भगवान ही मालिक है."