मृग-नयनी सी आंखें तेरी
होठ तुम्हारे कमल फ़ूल सा
केश घने बादल के जैसा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.
तेरा तन हो जैसे चंदन
रंग तुम्हारा किरण सूर्य का
तेरा मन है मलय पवन सा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.
उद्यान-शिला से वक्ष तुम्हारे
हिरण की तरह चलती हो तुम
कोमल हृदय बसंत के जैसा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.
12 comments:
तेरा तन हो जैसे चंदन
रंग तुम्हारा किरण सूर्य का
तेर मन है मलय पवन सा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
...बहुत सुन्दर ... कमाल कर रहे हो अरविंद जी !!!!
तेरा तन हो जैसे चंदन
रंग तुम्हारा किरण सूर्य का
तेर मन है मलय पवन सा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.
मन की गहराई से लिखी गयी ख़ूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत बधाई! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!
मृग-नयनी सी आंखें तेरी
होठ तुम्हारे कमल फ़ूल सा
केश घने बादल के जैसा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा...
सोन्दर्य रस टपक रहा है ब्लॉग से .. सुंदर वर्णन है ....
shringaar ras ki ek bahut hi sundar rachna......badhayii.
बहुत सुन्दर, लाजवाब !!!!!!
उद्यान-शिला से वक्ष तुम्हारे
हिरण की तरह चलती हो तुम
कोमल हृदय बसंत के जैसा
तेरा यौवन सुन्दर-वन सा.
.....dil ko chhu lenevaali rachna.
रीतिकालीन सौन्दर्यबोध की पुनरावृति सी लगी.
हे क्रान्ति दूत, तेरा मन भी सुन्दर मन सा। भाव श्रिन्गार भरा हो जिसमे, औ फुलवारी हो शब्द सुमन सा। बहुत बढिया।
बहुत उम्दा रचना!
यौवन का ख़ूबसूरत और विचारणीय वर्णन,अच्छी कविता ....
Post a Comment