Thursday, July 28, 2011

मेरी मां की सूरत बहुत ही अलग है.

आंखों में उसकी दिखे सारा जग है.


मेरी मां की सूरत बहुत ही अलग है.



नयनों में है उसकी गंगा की धारा

आंचल से देती वो जग को सहारा.

खुदा तो किसी को नहीं माफ़ करता

ममता की मूरत बहुत ही अलग है.

मेरी मां की सूरत बहुत ही अलग है.



गुरु मांगता शीष चरणों में अपने

पिता कहते पूरे करो मेरे सपने

पूजा मांगता नभ में बैठा विधाता

मां की जरुरत बहुत ही अलग है.

मेरी मां की सूरत बहुत ही अलग है.



वफ़ा करती है मेरी महबूब चंदा

रोटी के लिये है दुनियां में धंधा.

पल में रुलाना खुदा की है आदत

मैया की फ़ितरत बहुत ही अलग है.

मेरी मां की सूरत बहुत ही अलग है.

Thursday, July 21, 2011

तो मांगूं एक पत्ता भी.


मिले अगर कोई विशाल

तो मांगूं एक जर्रा भी.

हो घना यदि कोई दरख्त

तो मांगूं एक पत्ता भी.



दुख में भी जो साथ रहे

संग चलूं , मारूं ठहाका.

चुल्हा यदि जला दे तो

साथ क्यों न दूं हवा का.

दिखे कहीं भी शक्ति-पुंज

तो क्षमा-याचना मैं कर लूं.

निर्मल कर से स्पर्श करे

तो मानूं उसकी सत्ता भी.

हो घना यदि कोई दरख्त

तो मांगूं एक पत्ता भी.



देखूं लहराता भुजा वीर की

सहर्ष कटा लूं अपना सिर.

मिल जाये कोई सच्चा दिल

तो मानूं खुद को काफ़िर.

अग्नि-पथ पर साथ चले

तो संग चलूं जीवन भर मैं.

"क्रांतिदूत" पथ चलूं अकेला

भांङ में जाये जत्था भी.

हो घना यदि कोई दरख्त

तो मांगूं एक पत्ता भी.

Wednesday, July 13, 2011

यह इंसानों की बस्ती है.

सच नकाब में होता है , यहां नहीं नंगा कोई.

सबका दिल घायल घायल यहां नहीं चंगा कोई.

सच्चे प्यार - मोहब्बत पर नफ़रतों की गश्ती है.

यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.



बङे-बङे महलों के आगे सङकों पर बच्चे सोते हैं.

महलों में कितनी बेचैनी है ,वहां भी सारे रोते हैं.

रोटी बिकती मंहगी है पर बंदूकें काफ़ी सस्ती है.

यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.



सबके अपनें जात बने हैं सबका अपना मजहब है.

न कोई अपना कोई पराया , खुदी से ही मतलब है.

रुपयों में बिकता जिस्म है रुपयों से ही मस्ती है.

यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.



घर के दुधिया रौशन में अब चांद नहीं दिखता है.

मन के कारे बदरी में अब तो सूरज भी छिपता है.

नहीं जानता एक दिन सबकी डूबनेवाली किश्ती है.

यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.