Sunday, April 25, 2010

जंगल में नक्सलवाद

जंगल में नक्सलवाद की समस्या से शेर चिंतित था.नक्सलवादी सांपों ने सत्ता के विरुद्ध बिगुल फ़ूंक दिया था.वस्तु-स्थिति से अवगत होने के लिये गृह-मंत्री हाथी को बुलाया गया.हाथी ने कहा-" महोदय, ये सांप विकास के विरोधी हैं.ये सत्ता पर अधिकार करना चाहते हैं.निर्दोष जानवरों को जान से मार देते हैं......ये पशुतंत्र विरोधी हैं.जंगल के लगभग एक चौथाई हिस्से इनके प्रभाव में हैं".कुछ देर शांत रहकर फ़िर कहने लगा-"महाराज इनसे निपटने का अब एक ही रास्ता बचा है.इन्हें पांव से कुचल दिया जाये". तभी विपक्ष में बैठा एक जानवर बोलने लगा- "महोदय,इन विषैले सापों ने आज तक कई निर्दोष जानवरों को डसा है.हाल ही में रक्षा-दल के जानवरों को सामुहिक रूप से मार डाला था.ये सम्पत्ति को भी नुकसान पहुंचाते है........इनके विरुद्ध आपने आज तक क्या किया ? ".

तभी विपक्ष कि नेता ने अपना भाषण पेश किया-"महाराज, गृह-मंत्री हाथी महोदय आपकी तरह एक कुशल अर्थ-शास्त्री हैं.इन्हे जंगल में सिर्फ़ वित्त ही दिखाई देता है.मैं सलाह देता हूं थोङा बहुत समाजशास्त्र का भी मंत्री महोदय अध्ययन कर लें.विद्रोह का मूल्यांकन और समाधान मात्र अर्थ से ही नहीं होता.वित्त-मंत्री के रुप में हाथी महोदय ने जंगल को कमर-तोङ मंहगाई दी और जब से वित्त विभाग छोङकर गृह-मंत्री का पद-भार लिया है तब से नक्सलवाद को बढावा दे रहे हैं.."शेर कहने लगा-"विपक्ष रचनात्मक भुमिका निवाहे.हाथी महोदय निर्दोष हैं.".विपक्ष ने पलटवार किया-"क्या जंगल का आर्थिक उदारीकरण सिर्फ़ आपने अकेले किया था?जब इसका पूरा श्रेय आपको जाता है तो नक्सलवाद का आरोप भी सत्ता-दल को स्वीकार करना चाहिये.गृह-मंत्री हाथी महोदय आपने उत्तरदायित्व को स्वीकार कर अपने पद से इस्तीफ़ा दें."पूरा विपक्ष हाथी से इस्तीफ़े की मांग करने लगे.हाथी भी ताव में आकर त्यागपत्र दे दिया लेकिन शेर ने यह कहते हुए उसे अस्वीकर कर दिया कि इन विषैले सांपों को कुचलने के लिये हाथी के वजन्दार पांव से बेहतर हो ही क्या सकता है.

शेर अपनी मांद में बैठा था.सलाहकार भालू से बात चल रही थी.शेर-"नक्सलवाद का मूल कारण क्या है?" .भालू- "महोदय,मूल तो भूमिगत होता है.तना और शाखायें काफ़ी विशाल हैं."शेर-"मुझे दर्शन-शास्त्र मत समझाओ." भालू-"महोदय, अधिकतर सांपों में तो जहर भी नहीं है.कुछ सांप जहरीले हैं लेकिन यह उनकी रक्षात्मक शक्ति है.जबकिकुछ अन्य जानवर सपेरे उन्हें दूध पिलाते हैं.यह सच है कि इन सांपों का शोषण हुआ है.रक्षा-दल के कुत्ते और अदालत चलानेवाली बिल्ली ने कभी भी इनके साथ न्याय नहीं किया.इनके मणि को इनसे छीन लिया गया और जिस जमीन पर ये वास करते थे....से बेदखल कर अन्य जानवरों के लिये महल बनाये गये."शेर-"यदि ऐसी बात है तो ये बोलते क्यों नहीं?".भालू-"महोदय, जिसके पेट में राशन होता हओ वही भाषण देता है,जिसके पेट में आग लगी होती है वह सिर्फ़ आग लगा सकता है" शेर-"चुप रहो, मुझे तुम्हारे विचार भी नक्सली लगते हैं.अब कैसे भी इन सांपों को तो मारना ही होगा."भालू-"महाराज, मेरे पास एक हथियार है जिससे इस नक्सलवाद से निजात पाया जा सकता है.कल पशु-सभा में मैं वह हथियार आपको सौंप दुंगा."

पशु-सभा में उपस्थित सभी जानवरों के बीच भालू बोलने लगा-"महोदय, मेरे हाथ में जो लाठी है इससे नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है.(सभी जानवर हंसनें लगे).हंसिये मत. यह कोई मामुली लाठी नहीं है.अहिंसा की लकङी से बने इस लाठी को सत्य का तेल पिलाया गया है.एक महात्मा ने इसी लाठी के बल पर जंगल को दो सौ साल की गुलामी से आजाद किया था.हुजूर इस लाठी को देखते ही अपराध और अन्याय रफ़ू-चक्कर हो जाता है और विषैले सांपों को तो मानो सांप सूंघ जाता है.इसके सामने बङे से बङा तोप भी काम करना बंद कर देता है.और...सबसे बङी खाशियत तो यह है कि इस लाठी को भांजने की जरुरत नहीं होती.उस महात्मा ने अपने हाथ में यह लाठी लेकर जिन तीन बंदरों को सैनिक बनाया था वह तो मात्र बैठकर अपना मूंह, आंख और कान बंद कर लिये थे.......महोदय इतिहास से साक्ष्य लेकर एक बार फ़िर इस लाठी पर विश्वास कीजिये न सिर्फ़ नक्सल्वाद बल्कि भ्रष्टाचार,मंहगाई आदि सभी समस्यायें इससे दूर हो जायेंगी.".

Wednesday, April 21, 2010

पूरी मधुशाला पी लो तुम.

("अब नहीं चाहिये मधुशाला" पर प्रेमिका की रचना.)

मैं तो हूं एक निर्मल धारा
कैसे पिलाऊं मदिरा की प्याला.
पता नहीं मेरा यह यौवन
तुमको क्यों लगता मधुशाला.

निर्दोष हूं मैं,हूं अल्हङ सी
बस चाहूं तेरी प्यास बुझा दूं.
मैं समेट यौवन की धारा
बन जाऊं एक छोटी प्याला.
एक प्याले में पूरी मधुशाला
मैं चाहूं कि तुझे पिला दूं.

पूरी मधुशाला एक प्याले में
लेकर क्या तुम पी सकते हो ?
एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ?

है प्रकृर्ति का यह अमृत रस
अर्पित है लो पी लो तुम,
मरकर भी अब जी लो तुम.

Monday, April 19, 2010

अब नहीं चाहिये मधुशाला

अब नहीं चाहिये मधुशाला
तुम दे दो हमको एक प्याला.

मैं मृग भटका जीवन भर
गर्मी की सूखी रेतों पर.
सपनों का संसार लिये
आजतलक हूं मैं प्यासा.
तुम दे दो हमको एक प्याला

नहीं चाहिये संसार तेरा
एक प्रेम-दृष्टि ही काफ़ी है.
मैं प्रेम का सागर क्यों चाहूं
जब एक बूंद है जग-आला.
तुम दे दो हमको एक प्याला

सपने भी थे, कुछ अर्थ भी थे.
मैं स्वयं ही एक मधुशाला था.
सभी पी गये सारे मय
दे गये मुझे खाली प्याला.
तुम दे दो हमको एक प्याला

थक गया बहुत जीवन पथ पर
निस्तेज हुआ, निष्प्राण बना.
तुम मदिरा बनकर आ जाओ,
मैं आतुर हूं, हूं मैं ब्यौला
तुम दे दो हमको एक प्याला.
अब नहीं चाहिये मधुशाला.

Friday, April 16, 2010

जंगल में चमचा-राज

जंगल का राजा शेर ही होता है लेकिन शेर के लिये भी वेश-बदलकर राज करना संभव नहीं होता.उसने अपना वेश बदल तो लिया पर राज-काज चालु नहीं रख पाया.अग्यातवास में रहकर राज-काज की जानकारी लेते रहना...उसे उचित लगा.

कुछ दिनों के बाद अचानक एक बूढा शेर सत्ता की कुर्सी पर आसीन हुआ.उसने स्वयं को पुर्व के राजा शेर का उत्तराधिकारी बताया.अपने दो प्रमुख चमचों भेङिया और सांप को सबसे महत्वपुर्ण मंत्रालय की चाबी थमा दिया. जब पशु-संसाधन और गृह मंत्रालय जैसे विभाग भेङिये को और रक्षा मंत्रालय का प्रभार सांप को सौंप दिया जाये तो..........जिसके एक डंक से बङे से बङे जानवर स्वर्गलोक सिधार जाते....वह रक्षा क्या करता. गीदङ भी पशु-संसाधन का उपयोग अपनी सेवा में करता रहा.दोनों चमचों की चांदी हो गयी.जंगल के सभी जानवर परेशान रहने लगे.रोज ही वह सांप किसी न किसी को डसता और भेङिया सभी जानवरों का चारा चट कर जाता.

तभी एक दिन एक तोता अग्यातवास में रह रहे शेर के पास गया और कहने लगा-"हुजूर, सभी जानवर भेङिया और सांप को दोषी मान रहे हैं लेकिन मुझे लगता है महाराज शेर ही असली गुनाहगार हैं". शेर ने पुछा- " कैसे....?".तोता ने कहा-"हुजूर उनमें राजा के लक्षण नहीं दिखते,न ही उनके चेहरे में तेज है, न ही शेर वाली गुर्राहट और न ही वीरता के कोई चिह्न.

अगले ही दिन अग्यातवासी शेर ने अपना प्रतिनिधि हाथी को राजा शेर के मांद में भेजा. मांद में थोङी सी रोशनी थी. राजा शेर मरा हुआ मांस खा रहा था.....आश्चर्य की बात थी.हाथी ने जैसे ही उसको पकङकर खींचा,उसकी खाल बाहर आ गयी.वह शेर की खाल में नकली मूंछ लगाये गीदङ निकला.उसका मुंह काला कर उसकी मरम्मत की गयी.चुपचाप सारी जानकारी असली शेर के पास पहुंचा दी गयी.

इधर जंगल के अन्य पशुओं को इस बात की भनक लग गयी कि शेर के खाल में गीदङ राज चला रहा है.अगले दिन सभी जानवर राज-भवन में एकत्रित होकर राजा का विरोध करने लगे. तभी शेर अपनी कुर्सी पर आराम से बैथकर जोरदार ढंग से गुर्राया.वह असली शेर था.फ़िर मुस्कुराते हुए हाथी के कान में कहा-"शेर की खाल पहनकर कोई शेर नहीं हो जाता.शेर मरा हुआ मांस नहीं खाता.जंगल में भी प्रजातंत्र होने के कारण राजनीति उसकी मजबूरी है लेकिन चमचागिरी उसे कतई पसंद नही."

Wednesday, April 14, 2010

क्रांतिदूत

सूरज की भीषण गर्मी खाकर
बंजर खेतों को खोद-खोद
अपने शोणित से सींच-सींच
जो रोटी पैदा करता है.
वह क्रांतिदूत कहलाता है.

लङता है जो तूफ़ानों से
तनिक नहीं घबराता है.
दिशा बदल देता है उसकी
मंद-मंद मुस्काता है.
वह क्रांतिदूत कहलाता है.

सपनों की तलवार लिये
निज स्वारथ से जो लङता है.
पाषाणों की छाती चढकर
पीयुष दुग्ध जो पीता है.
वह क्रांतिदूत कहलाता है.

Monday, April 12, 2010

जंगल का राजा

शेर भले ही जंगल का राजा था लेकिन उसकी मुश्किलें भी कम नहीं थी.राजा भले ही कोई बने ,प्रजातंत्र में चलती तो प्रजा की ही है...और जब प्रजा जानवर हो तो राजा को पङेशानी तो होगी ही.शेर पङेशान था.विपक्ष में बैठे जानवरों के वार को सहते-सहते थक गया था। पशुमत शेर के पक्ष में लेकिन कुटिलता विपक्ष की ओर,सद्भावना शेर के पक्ष में लेकिन धुर्तता विरोधी खेमें में.....शेर करे तो क्या करे...?.यही हाल विपक्ष का भी.शेर के शरीर का तो खून ही राजसी था.विपक्ष को कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा था.तलवार से मुकाबला करो तो भी शेर आगे, षङयंत्र करो तो भी शेर विजयी, विद्वता में भी शेर किसी से कम न था.....आखिर शेर को हरायें कैसे? अंत में विपक्ष ने शेर की कमजोरी पकङ ही ली।

एक लोमङी ने विपक्ष के नेता से कहा "महोदय, शेर दिलदार है, महान है, स्वाभिमानी है, उदार है..........".नेता ने टोका -"मेरे शत्रु की प्रशंसा कर रही हो?" लोमङी ने जबाब दिया"-नहीं हुजूर.....मैं शेर की कमजोरी बता रही हूं.उसके स्वाभिमान पर चोट करो. वह अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिये दरियादिली दिखायेगा और महान कहलाने के लिये उदारतापूर्वक गद्दी छोङ देगा.".विपक्ष के नेता ने ऐसा ही किया.शेर ने गद्दी छोङ दिया.यह खबर जंगल में लगे आग की तरह फ़ैल गयी।

जैसे ही यह समाचार हाथी को मिला वह चिंतित हो गया.वह शेर के मांद तक पहुंचा.लेकिन शेर जो ठान ले उसे करने से कौन रोक सकता है?.शेर के पास भी तेज दिमाग था,वह पानी के टंकी पर चढ गया,यह सोचकर की हाथी वहां नहीं चढ पायेगा. हाथी भी आखिर हाथी था उसने अपनी ऊंचाई का फ़ायदा उठाकर शेर को नीचे उतारा.समझाया-"राज नही करना है तो मत कर.आराम कर. मस्ती से देख,राज तो चलेगा ही।

शेर आराम करे और राज चलता हुआ देखे, यह कैसे हो सकता है?.......और शेर को छोङकर क्या लोमङी राज चलायेगी ? अंत में शेर ने अपनी खाल बदल ली.वेश- भूषा भी पूरी तरह बदल डाला,बिना किसी को बताये. वह नये रुप में फ़िर से राज करने लगा.कुर्सी पर बैठते ही उसने धीरे से अपने मंत्री को कहा"लोमङी कितना भी चालाक हो जाये जंगल का राजा शेर ही होता है

Sunday, April 11, 2010

पंक को निर्मल करो रे.

सदियों से जो दलित बनकर
पैर को तेरे पखारा
तेरी जय में भी पराजित
तेरी हारों में भी हारा
आज उसके पग धरो रे
पंक को निर्मल करो रे.

फ़ूलों की भेंट हुई पुरी
नीरजों की हो चुकी पूजा.
अशक्त हैं कुछ अस्थियां
उन तन्तुओं में बल भरो रे
पंक को निर्मल करो रे.

भर चुके आंखों की प्याली
सुख दुखों के ही अमिय से
कुछ कटोरे रिक्त हैं जो
उनमे भी तुम जल भरो रे
पंक को निर्मल करो रे.

हुई अर्चना मां लक्ष्मी की
सरस्वती की वंदना भी
बिक रही बाजार बनकर
शीष उनपे नत करो रे
पंक को निर्मल करो रे.

Thursday, April 8, 2010

मशाल.

इरादे नेक थे,
हौसले बुलंद थे,
दुनियां को रौशन करने की तमन्ना थी.
मशाल जला दिये गये।

वही मशाल फ़िर जालिमों के हाथ लगा.
स्वार्थ और लोभ
जैसे तेल डालकर
उसकी ज्वाला को भङकाया गया.
उसकी ही लपटों से
जलाये गये गरीबों के घर.
दाग दिये गये
बेगुनाहों की छातियां।

वही मशाल
अब भावनाओं को भङकाती है
अरमानों को सुलाती है.
उसकारंग-रुप बदल चुका है.
अब वह दोधारी खतरनाक हथियार है,
जिसे मशाल कहकर
घुमाया जा रहा है लगातर
समाज के उपर।

अब वह मशाल
राक्षसों के हाथ है,
जो आतंक को जेहाद कहता है.
ईंसान के लहू बहाकर
उसे चैन मिलती है.
घर जलाकर वह राहत लेता है
यही इतिहास है
जलाये गये मशालों के.
मशाल जलानेवाले सावधान
यह जालिमों के हाथ न लगे.

Wednesday, April 7, 2010

तुम्हारी याद तो आयी....

जब भी
किसी खूबसूरत नव-यौवना के
ढके हुए,उभरे वक्ष-स्थल को
देखकर कामातुर हुआ.
मैंने तुम्हें याद किया।

जब भी
बाजारु खुशियों को
अपनी जेब में भरकर
जश्न मनाया.
मैंने तुम्हें याद किया।

जब भी
दर्द से कराहते हुए
जख्म पर मरहम लगाने के लिये
किसी कोमल श्पर्स की जरुरत हुई.
मैंने तुम्हें याद किया।

यह सच है
तुम कभी नहीं आयी.
लेकिन फ़िर भी
तुम्हारे सच्चे प्यार और वफ़ादारी पर
नतमस्तक हूं.
क्योंकि हर बार
तुम्हारी याद तो आयी....

Tuesday, April 6, 2010

चांद और तुम.

मुझ से दूर
गगन-पटल पर
अपनी चाल से चलते हुए
जग के तम को निगलते हुए
हल्की सी रोशनी लिये
गुलाब की पंखुङियों सी
हंसनेवाली.
दाग होते हुए भी
खूबसूरत
बादलों से घिरकर भी
निर्मल
पवित्र फ़िर भी मादक
ऎसा स्तित्व कि मिट नही सकता।

फ़िर भी
चांद और तुम
दोनों को
मेरे होने या ना होने
का अहसास भी नही...?

Sunday, April 4, 2010

निधन

मर गया बेचारा,
ईंसान बनकर जीने चला था.
खुश हैं लोग,
सोचते हैं,
उसकी मौत उसकी जिंदगी से बेहतर है.
ईमान ही उसका मजहब था,
रोटी के बिना चल पङा,
मगर
ईमान बेच न सका,
इसलिये
मर गया बेचारा,
ईंसान बनकर जीने चला था।

दवा मंहगी थी,
दर्द सस्ते थे
और गरीबों के लिये उपलब्ध भी.
आदर्शों का हथियार लिये,
वह लङता रहा.
फ़िर
मर गया बेचारा,
ईंसान बनकर जीने चला था।

उसकी आत्मा खुश है आज.
उसने देखा है,
चाहनेवालों के हृदय में
सच्ची श्रद्धा, करुणा और स्नेह.
उनके हृदय में ,
वह अब भी जिंदा है,
क्योंकि
ईंसान बनकर जीने चला था।

मरता वह है
जिसके लिये यह दुनियां
एक वेश्यालय है.
जहां ईमान बेचकर बनाये गये धन
पाप के काम आते हैं.
वह कभी नहीं मरता,
जिसके लिये यह दुनियां
एक मंदिर है,
जहां के हर पत्थर में
ईश्वर की आत्मा है.

Thursday, April 1, 2010

सालगिरह का तोहफ़ा

मालिक के बेटे की सातवीं सालगिरह मनायी जा रही थी।सैकङों लोग मालिक के लिये उनके घर के ही सदस्य थे.घर के सभी लोगों को तोहफ़े बांटे गये.एक उजला टी-शर्ट घर मे रह रहे सभी लोगों को दिया गया....लेकिन वितरण का कार्य चमचागिरि करनेवाले कर्मचारियों को सौंपा गया.चालाकी से कर्मचारियोंने सभी को टी-शर्ट दे दिये लेकिन मालिक के छोटे भाई को छांट दिया गया.ब्युहरचना का उद्देश्य मालिक को अनभिग्य रखना,छोटे भाई को चिढाना औए नींचा दिखाना,अपने आप को मालिक का सबसे भरोसेमंद साबित करना और कुत्तों के लिये फ़ेंके जानेवाले रोटी के टुकङों को पुरी तरह हङप जाना॥सब कुछ था. बात जितनी छोटी थी षङयंत्र उतना ही विशाल.

मालिक का छोटा भई जानता था विभाग की गलती नहीं है.वह कर्मचारियों के लिये प्रार्थना कर रहा था ""फ़ादर,फ़ोरगिव देम ,फ़ोर दे डोंट नो व्हाट दे डू."