इरादे नेक थे,
हौसले बुलंद थे,
दुनियां को रौशन करने की तमन्ना थी.
मशाल जला दिये गये।
वही मशाल फ़िर जालिमों के हाथ लगा.
स्वार्थ और लोभ
जैसे तेल डालकर
उसकी ज्वाला को भङकाया गया.
उसकी ही लपटों से
जलाये गये गरीबों के घर.
दाग दिये गये
बेगुनाहों की छातियां।
वही मशाल
अब भावनाओं को भङकाती है
अरमानों को सुलाती है.
उसकारंग-रुप बदल चुका है.
अब वह दोधारी खतरनाक हथियार है,
जिसे मशाल कहकर
घुमाया जा रहा है लगातर
समाज के उपर।
अब वह मशाल
राक्षसों के हाथ है,
जो आतंक को जेहाद कहता है.
ईंसान के लहू बहाकर
उसे चैन मिलती है.
घर जलाकर वह राहत लेता है
यही इतिहास है
जलाये गये मशालों के.
मशाल जलानेवाले सावधान
यह जालिमों के हाथ न लगे.
3 comments:
सही मुद्दे को लेकर आपने बहुत ही सुन्दर रचना लिखा है! हर एक शब्द में गहराई है ! उम्दा रचना!
अब वह मशाल
राक्षसों के हाथ है,
जो आतंक को जेहाद कहता है.
ईंसान के लहू बहाकर
उसे चैन मिलती है.
घर जलाकर वह राहत लेता है
....bahut khoob!!!!
अच्छी रचना...
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