Thursday, February 17, 2011

सच और त्याग

सच


अश्वत्थामा मरा,

युदिष्ठिर सच ही कहा था.

तभी धर्म के रथ का पहिया

पाप भार से ईंच धसा था.



पुत्र प्रेम में गुरु द्रोण

हों मुर्छित सबके भाव यही थे.

मारे गये तब द्रोण धुरन्धर

पर वीरों के यह कर्म नहीं थे.



सच के भाव सुखद होते तो

द्रोण-पुत्र मरता वाणों से,

अर्जुन के वे पांच पुत्र फ़िर

बच जाते अपने प्राणों से.



त्याग



कहता कौन कुमाता जग में ना होती है.

क्यों न गले लगाकर कर्ण, कुन्ती रोती है.



फ़ेंक दिया सरिता में बहने जिवित जान को.

किया कलंकित नारी के ही स्वाभिमान को.



सचमुच त्याग किया जननी ने बलि चढाकर

पुत्र - कर्ण ने मां के भाव को और बढाकर.



कवच और प्राणों की कर्ण त्याग नहीं करता

तो वीर कौन्तेय बीच रण में ही कहीं मरता.



पराजित होता सत्य और कायरों की जीत होती.

फ़िर से जग में कोई कुन्ती कर्ण के लिये न रोती.

Monday, February 7, 2011

मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-१७ (व्यंग्य)




इधर साला एक अजीब योजना पर कार्य कर रहा था. योजना क्या मैं तो कहता हूं साजिश रच रहा था कि किस तरह मेरी बची-खुची इज्जत को सुपुर्दे खाक किया जाये. मैंने उसके आने के साथ ही उसे बता दिया था कि चोरी, डकैती, अपहरण आदि व्यवसाय जो वह गांव में चलाया करता था ...नहीं चलेगा. कहने लगा----" जीजे , ये सब काम अपुन का प्रोफ़ेशन नहीं है. अपुन का प्रोफ़ेशन तो क्लर्क की नौकरी है जिससे उपरवाला अपुन को छप्पर फ़ाङ के देता है. एक नम्बर और दो नम्बर का इनकम तो अपुन को नौकरी से ही हो जाता है. बाहर का धंधा तो अपुन का शौक है जीजे. लेकिन अपुन महिन दो महिने के छुट्टी पे आयेला है तो किच्छु तो करेगा ?". मैने भी उसी के लहजे में समझाया----" आयेला है तो अच्छी बात है पर चोरी, डकैती, अपहरण ये सब इधर नहीं चलेला है. इधर घर के बांकी लोगों की तरह घर में ही रहना है भले है संयुख राष्ट्र के माफ़िक इटिंग मिटिंग और चिटिंग करते रहो ." वह मान गया----" ठीक है जीजे. अपुन घर से बाहर निकलेगा ही नहीं बट घर में फ़्री होके रहेगा....मस्ती करेगा...जो जी चाहे करेगा." मैंने फ़िर टोका---" नो मेरे घर में रहना है तो ओबामा की तरह रहोगे तो ठीक यदि ओसामा की तरह रहोगे तो मैं तुम्हें गलत काम करने से रोकने के लिये जरूरी स्टेप्स भी उठाउंगा और जरूरी कनुनी कारवाई भी

करुंगा ". मेरी बात पर वह अंगुठा दिखाकर यूं हंसने लगा जैसे वह सचमुच ओसामा बिन लादेन हो. मैंने भी किसी लाचार की तरह उसके सामने हाथ जोङ लिये..



वह भले ही विचार और भाषा की दृष्टि से अपराधिक प्रवृति का है लेकिन भावुक बहुत है. रोने लगा और कहने लगा----"जीजे अपुन एश्योर करता है कुछ भी गलत नहीं करेगा. आपके क्वार्टर के बाहर के खाली एरिया में एक मां का मंदिर बनायेगा और पूजा करेगा, गरीब पब्लिक को प्रवचन सुनायेगा." "प्रवचन ?"--- मेरे मुह से अचानक ही यह शब्द निकल गया. न ही राजा (मेरा साला) का आध्यात्म से कभी लगाव रहा है और न ही उसकी भाषा कभी डिसिप्लिन्ड रही है----" मैं तुमको प्रवचन के लिये अलाउ नहीं कर सकता." तभी श्रीमतीजी आकर चिल्लाने लगी---" क्यों अलाउ नहीं कर सकते ? तुम जो नेताओं की तरह आलतू-फ़ालतू का भाषण झाङते रहते हो , उससे तो अच्छा है कि राजा साधु-महात्माओं की तरह प्रवचन देगा". मैंने पूछा---"राजा प्रवचन देगा..? क्या बोलेगा?" अब जवाब देने के लिये चिंटीजी हाजिर थी-----" जो प्रवचन देगा वही निर्णय लेगा कि उसे क्या बोलना है...इस मामले में जीजू आपको दखल नहीं देना चाहिये". मैंने अपना स्टैंड रखा----

" मेरा मतलब है उनकी भाषा संयमित नहीं है.". तभी सासुमां मेरी श्रीमतीजी के कानों में फ़ुसफ़ुसायी----" प्रवचन की भाषा नहीं भाव देखे जाते हैं. राजा के विचार अच्छे हैं भाषा से क्या फ़र्क पङता है?." श्रीमतीजी ने अपनी माताश्री के फ़ूंक को आवर्धित स्वर में दुहराया. मैं समझ गया बहुमत साला के फ़ेवर में था. बहुमत यदि गदहे के साथ हो तो भी बहुमत का सम्मान करना ही पङता है. मैं कर ही क्या सकता था लेकिन सुप्रिम पावर यानी की ससुरजी यदि मेरी बातों का समर्थन कर देते और वीटो लगा देते तो बात अभी भी बन सकती थी.



ऐसा सोच ही रहा था कि ससुरजी आ टपके और बोलना प्रारंभ किया-----" किसी व्यक्ति की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध है तो इसका तात्पर्य यह नहीं कि उसे असंयमित माना जाये. मैं को अपुन या किया है को करेला है बोल देने मात्र से भाषा असंयमित नहीं हो जाती. अश्लील शब्द या गाली- गलौज नहीं करनेवाले प्रत्येक व्यक्ति की भाषा संयमित ही मानी जायेगी वशर्ते अपनी बातों से वह दूसरे को कष्ट न पहुंचाये. दूसरी बात प्रवचन देने का अधिकार या सुनने का राइट प्रत्येक व्यक्ति को है. तीसरी बात यह मामला आस्था और आध्यात्म से जुङा हुआ है इसके विरोध का सीधा अर्थ है आस्था को चोट पहुंचाना जो अमानवीय और दंडनीय है"-----ससुरजी के तीन बातों से ही मैं सब-कुछ समझ गया अन्यथा तीन के बदले वह तीस बातें भी सुना सकते थे. मैंने हामी भर दी. फ़िर भी बाद-विवादों से दूर रहने और मर्यादित भाषा का प्रयोग करने का आग्रह मैंने कर ही दिया. राजा बोलने लगा----" अपुन वाद-विवाद काहे को करेगा, अपुन राजनीति का टोपिक ही नहीं उठायेगा. स्विस बैंक से लाखो-करोङो रुपये लाने का बात छेङेगा लेकिन देश के भीतर करोङो-करोङो रुपये के काले धन के बारे में कुछ भी नहीं बोलेगा. अपुन देश के चन्द गिने-चुने भ्रष्ट लोगों का विरोध करेगा लेकिन निन्यानवे प्रतिशत इंडियन के दिमाग में घुस चुके भ्रष्टाचार के कीङे का जिक्र तक नहीं करेगा. देश के सबसे बङे भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों, व्यवसायिकों--सबसे हस्ताक्षर करवा कर राष्ट्रपति को भेजेगा कि स्विस बैंक का काला धन वापस कंट्री के कालाबाजारियों को सौंप दें, "----कुछ रुककर फ़िर बोला----"अपुन राष्ट्रपति के पास ही लिस्ट भेजेगा.काहे कू ?...पुच्छो ." "राष्ट्रपति के पास ही क्यों भेजोगे.?"-----मैंने पूछ ही दिया. कहने लगा----" काहे कि अपुन जानता है कि अपुन के कंट्री में राष्ट्रपति का पोस्ट रबङ स्टाम्प होता है. इधर-उधर करके प्राइम मिनिस्टर के पास भेज भी दिया तो वो कौन सा कमाल कर देगा----वो भी तो पपेट (कठपुतली) है.हा...हा...हा...." .



अगले दिन पूजा के उपरान्त प्रवचन के लिये दरबार सजा दिये गये और मेरा साला राजा प्रवचन देने लगा----------" भक्तों. आज अपुन बजरंगबली के बारे में डिस्कस करेगा. जब ओ काफ़ी छोटा था उसी टाइम से एरोप्लेन के माफ़िक आकाश में फ़्लाइट मारता था. जहां खङा होता था उसी पोजीशन से बिना किसी हवाई-अड्डे के सेफ़ फ़्लाइट मारता था. आज के अविएशन डिपार्टमेंट के जैसे एक्सीडेंट नहीं होता था उससे. एक बार तो लम्बा फ़्लाइट मारके सूरज को ही पूरा का पूरा निगल लिया जैसे मिनिस्टर लोग पूरा का पूरा खजाना निगल लेता है....लेकिन उस समय का प्राइम-मिनिस्टर इन्द्र कठपुतली नहीं था जो सारा खेल देखता रहता. पगङी के बदले मुकुट जरूर पहनता था और कृपाण के बदले वज्र रखता था लेकिन किसी औरत के ईशारे पर नहीं चलता था. खुद राइट आदमी नहीं था लेकिन जेन्युन लीडर था---गलत बात उसे पसंद नहीं था. उसने बजरंगबली की ओर वज्र फ़ेंका. अब उसका वज्र केरोसीन आयल से तो चलता नहीं था जिसमें मिलावट होता, हनुमानजी के पिछुआरे में लगा और बेबी हनुमान वैसे ही बेहोश हो गया जैसे मंहगाई की मार से गरीब पब्लिक बेहोश हो जाता है. उसकी मदर को जब पता चला तो मत पूछो क्या हुआ. महगे लाल टमाटर की तरह दूर्लभ दिखनेवाले बजरंगबली के सामने आकर उसकी मां ऐसे रोने लगी मानो उसकी आंखों के सामने मंहगे प्याज काटकर डाल दिया गया हो. जो औरत हाइट पर बैठकर सिर्फ़ पियोर एयर पीया करती थी भ्रष्ट सिस्टम का पोल्युटेड वाटर पीकर रह गयी. आज की तरह बिना कोई इन्क्वायरी कमिटी बिठये इन्नोसेंट हुनुमान को पनिश कर दिया गया था".......मैंने देखा सभी श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गयी थी.

क्रमशः