सच
अश्वत्थामा मरा,
युदिष्ठिर सच ही कहा था.
तभी धर्म के रथ का पहिया
पाप भार से ईंच धसा था.
पुत्र प्रेम में गुरु द्रोण
हों मुर्छित सबके भाव यही थे.
मारे गये तब द्रोण धुरन्धर
पर वीरों के यह कर्म नहीं थे.
सच के भाव सुखद होते तो
द्रोण-पुत्र मरता वाणों से,
अर्जुन के वे पांच पुत्र फ़िर
बच जाते अपने प्राणों से.
त्याग
कहता कौन कुमाता जग में ना होती है.
क्यों न गले लगाकर कर्ण, कुन्ती रोती है.
फ़ेंक दिया सरिता में बहने जिवित जान को.
किया कलंकित नारी के ही स्वाभिमान को.
सचमुच त्याग किया जननी ने बलि चढाकर
पुत्र - कर्ण ने मां के भाव को और बढाकर.
कवच और प्राणों की कर्ण त्याग नहीं करता
तो वीर कौन्तेय बीच रण में ही कहीं मरता.
पराजित होता सत्य और कायरों की जीत होती.
फ़िर से जग में कोई कुन्ती कर्ण के लिये न रोती.
अश्वत्थामा मरा,
युदिष्ठिर सच ही कहा था.
तभी धर्म के रथ का पहिया
पाप भार से ईंच धसा था.
पुत्र प्रेम में गुरु द्रोण
हों मुर्छित सबके भाव यही थे.
मारे गये तब द्रोण धुरन्धर
पर वीरों के यह कर्म नहीं थे.
सच के भाव सुखद होते तो
द्रोण-पुत्र मरता वाणों से,
अर्जुन के वे पांच पुत्र फ़िर
बच जाते अपने प्राणों से.
त्याग
कहता कौन कुमाता जग में ना होती है.
क्यों न गले लगाकर कर्ण, कुन्ती रोती है.
फ़ेंक दिया सरिता में बहने जिवित जान को.
किया कलंकित नारी के ही स्वाभिमान को.
सचमुच त्याग किया जननी ने बलि चढाकर
पुत्र - कर्ण ने मां के भाव को और बढाकर.
कवच और प्राणों की कर्ण त्याग नहीं करता
तो वीर कौन्तेय बीच रण में ही कहीं मरता.
पराजित होता सत्य और कायरों की जीत होती.
फ़िर से जग में कोई कुन्ती कर्ण के लिये न रोती.
7 comments:
कवच और प्राणों की कर्ण त्याग नहीं करता
तो वीर कौन्तेय बीच रण में ही कहीं मरता.
पराजित होता सत्य और कायरों की जीत होती.
फ़िर से जग में कोई कुन्ती कर्ण के लिये न रोती.
Kya kamal kee panktiyan hain!Mujhe to Dinkar ji kee "Rashmirathi" yaad aa gayi!
बहुत सुन्दर ...
कुरुक्षेत्र और रश्मिरथी दोनों ही याद हो आये ...
आदरणीय अरविन्द झा जी..
नमस्कार
कुरुक्षेत्र और रश्मिरथी दोनों ही याद हो आये
सुंदर, सटीक और सधी हुई।
मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!तारीफ़ के लिए
.........बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
कुंती और कर्ण, अश्वत्थामा और द्रोण..
माता और पिता दोनों के ही अलग रूप ...पिता जिसने पुत्र के नाम से जान गवांई , माता जिसने पुत्र का त्याग किया ...
दो विरोधाभासी व्यक्तित्व को एक स्थान पर सत्य और त्याग के परिप्रक्ष्य में देखना अच्छा लगा !
Nice, ati sundar, laajwab, anupam aur gambheerata ifni ki bas chochte raho... doobte raha gyan -saagar me. Thanks , many-many thanks..
कहता कौन कुमाता जग में ना होती है.
क्यों न गले लगाकर कर्ण, कुन्ती रोती है.
विचारनीय पँक्तियाँ है पूरी रचनाबहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।
Post a Comment