काल को क्यों दोष दूं ?
बीत मैं खुद ही रहा हूं.
खंडों में बांटूं तो देखूं
काल यौवन के प्रवाह को.
जीवन के वे निशा-रात्रि
व्यथा के सागर अथाह को.
एक सी वह स्यामल काया
प्रीत मैं खुद ही रहा हूं.
गर काल के आकार होते
तो अतीत में वे न घुलते.
होते दृढ उसके चरण तो
निकट क्षण से वे न मिलते.
जन्म-मृत्यु के क्षणिक पथ का
रीत मैं खुद ही रहा हूं...
8 comments:
गर काल के आकार होते
तो अतीत में वे न घुलते.
Kya baat kahee hai!
बहुत खूब लिखा है आपने..... :)
क्या आप भी अपने आपको इन नेताओं से बेहतर समझते हैं ???
संक्षेप में गहरी बातें कह दीं हैं.
बहुत ही गहरी बात कर दी है ...
बहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति..
बहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति..
socho to bahut kuchh hai...bahut gahri soch.
गहन अभिव्यक्ति..
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