Monday, May 31, 2010

पत्थरों से क्यों ईंसान बनाया तुमने ?

पत्थरों से क्यों ईंसान बनाया तुमने ?
जानें लोगों को कितना रुलाया तुमने.

बादलों से भी तो रंग चुरा सकते थे
काले नागन से ही क्यों जुल्फ़ बनाया तुमने?

उनकी आंखों में मयखाना डाला तुमने
मेरी हाथों में क्यों जाम सजाया तुमने.?

फ़ूलों के रस से बनाये थे तुमने होठों को
फ़िर क्यों मीठा सा जहर उसमें मिलाया तुमने?

शीशे के दिल की जरुरत क्या थी ?
कितना कमजोर जिगर ईंसां बनाया तुमने.

अपनी ही शोहरत का रिश्वत लेकर,
लाखो आंखों से आंसु बहाया तुमने

तु भी पत्थर की तरह एक दिन मर जायेगा
आह टूटे हुए दिल की बता दिया हमने.

Friday, May 28, 2010

मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

लहलह आंखि ललाट भयावह
फ़ट-फ़ट होठ करय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

हिंसक बुद्धि विवेक पराजित
सिर संग पाद हिलय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

निर्मल हृदय बनय अति चंचल
प्रदुषित रक्त बहय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

भय अपमानित सर्वत्र जगत में
अर्थ-अनर्थ करय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

भङकय क्रोध शीतलता छीनय
तन मन नाश करय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

तन मोरा कंचन सम काया
प्याला त्याग छुबय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

नारी मदिरा से अति मादक
सुधा प्रेम पीबय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

Wednesday, May 26, 2010

बधाई हो - सरकार के साल पूरे.

प्रधानमंत्री महोदय बधाई हो .कुर्सी के खेल में लगातार दूसरी पारी में भी आप बहुत अच्छा खेल रहे हैं. सफ़लतापुर्वक आपकी सरकार ने एक साल पूरे किये. मोहतरमा सोनियांजी के आशीर्वाद से आप देश को स्थिर (गतिहीन) सरकार देने में सफ़ल रहे.पूरे साल नरेगा का नगारा बजता रहा. हर क्षेत्र में सरकार ने जो उपलब्धियां हासिल की---उसका श्रेय आपको जाता है. चुने हुए महान जन-प्रतिनिधियों को आपने मंत्रालय की चाबी सौंपी थी...पेरिणाम उसके अनुरुप ही रहा.

मंत्रीयों के आचरण संबंधी भूलों को माफ़ कर आपने मंत्रालयों को भयमुक्त वातावरण उपलब्ध कराया. टेक्स ढांचा जिसे चिदम्बरमजी के सहयोग से आपने बनाया है,चोरी के बावजूद भी करों से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मुद्रा-कोष को प्राप्त होता रहा.बेलगाम मंहगाई बढ जाने से गरीब-उन्मुलन काफ़ी तेजी से हुआ है,भले ही गरीबी बढ रही हो.जमाखोरी के कारण देश के भीतर खाद्दान्न अधिक से अधिक संचित हुए है.मिलावट के कारण दवा-उद्योग और चिकित्सा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हो रही है साथ ही साथ जन सामान्य को नये नये स्वाद का आनन्द प्राप्त होता है.ये सारा श्रेय आपको ही जाता है.

किसी मंत्री से परिस्थिति न संभलने पर ईश्वर में आस्था प्रगट करने से राष्ट्र के भीतर आध्यात्म का भी विकास हुआ.संपुर्ण राष्ट्र आपका ॠणी है कि आपने कभी भी विरोध की राजनीति नहीं की. भ्रष्टाचारियों, उद्दंड मंत्रीयों, घोटालेबाजो,गद्दारों सबको साथ लेकर चलते रहे.मंत्रीगणों के तो बार-बार त्यागपत्र देने पर भी आपने स्वीकार नहीं किया.एक सौ अट्ठावन लोगों की जान के बदले लखों लोगों के प्रतिनिधि मंत्री महोदय के पद की गरिमा को आपने समझा.यह उचित ही है.इससे मंत्रीयों का नैतिक स्तर काफ़ी उठा है और आपके प्रति-विश्वास भी बढा है.जनमत का आदर करते हुए आपने उन्हें पांच साल की गारंटी दे दी.चोरों-डकैतों,अपराधियों...सबके प्रति समान दृष्टि अपनाकर संवैधानिक समानता का अधिकार प्रदान करने में आपने जो उदारता दिखाई है---उसका सम्मान कौन नहीं करेगा.

भले ही संसद में पहली बार मार्शल का प्रयोग हुआ हो लेकिन महिला आरक्षण का झुनझुना राज्य-सभा में आपने बजा ही दिया. यदि अगला चुनाव भी आप जीत गये और सोनियांजी का आशीर्वाद बना रहा तो जनता आप पर विश्वास करती है लोक-सभा में भी जोरदार ढंग से राग अलापा जायेगा.महिलाओं के प्रति आपका नजरिया इतना उदार रहा है कि आपने राजपथ और जनपथ में कभी भी फ़र्क नहीं किया.बल्कि देशी से बढकर विदेशी को सम्मान देकर आप आर्थिक उदारीकरण के साथ-साथ राजनैतिक उदारीकरण के भी प्रतीक बने.सिर्फ़ एक साल में आपने वह सब कुछ कर दिखाया जिसे जनता पहले कभी नहीं देख पायी थी.जब रेल्वे प्लेटफ़ोर्म पर भगदङ में कुछ लोग मारे गये तो आपके मंत्री- महोदया ने उचित ही कहा कि मारे गये लोगों की ही गलती थी.एक ऐसा ध्रुव सत्य कि.."मरनेवाले की ही गलती होती है,मारनेवाले की नहीं" जानकर सामान्य लोगों में नैतिक व शैक्षणिक सुधार हुआ है.वे अब जान गये हैं कि आप जैसे महान नेताओं को वोट देने के अतिरिक्त अन्य सभी गलतियां लोगों से लगातार होती रहती है.

नक्सलवाद पर तो आपकी सोच इतनी अच्छी है कि विगत पचास वर्षों से ज्यादा मात्र एक साल में देश-भक्ति से भरकर जवानों ने अपनी शहादत दी है.अभी तो वायु-सेना, विदेशी सहयोग और परमाणु-अस्त्र का उपयोग होना बांकी है.यदो इसी तरह आगे चार साल आपका सुशासन चलता रहा नो निश्चय ही हम कई नये आयामों को छु लेंगे.आशा करते हैं कि आप जाते-जाते कोई रास्ता जरुर दिखाकर जायेंगे कि यदि भविष्य मे देष में गृह-युद्ध जैसी संभावना बनती है तो हम कैसे निपटें.

Tuesday, May 25, 2010

साजिश

रातों की तन्हाई से शिकवे है मुझे,
उजाले भी अब साजिश नजर आते है.

चांदनी जो अक्सर बादलों में छुपी होती है,
जब उसे देखता हूँ तो तारे मुस्कुराते है.

कहती थी खूब है दुनियां की हर सूरत ,
फ़िर क्यों इंसान यहाँ पत्थर बन जाते है.

कहते हैं लोग कि हर फूल बहुत प्यारा है,
दिलों पे फिर वो क्यों नस्तर चुभाते है .

चाहता था मैं भी कि खुश होके जिन्दा रहूँ,
गमों में मंजर मगर दिल को दुखाते है.

यों मार चुके है वो पहले भी कई बार मुझे ,
मगर हर बार मेरी मौत पे रोने को आते है .

Friday, May 21, 2010

दूसरा ईशारा

ईशारा

ये मौत भी,
मेरे ही ईशारों पर हुई है.
छल किया था,
धोखा दिया था उसने.
मैने उसे समझाया,
चेतावनी दिया,
अपनी गलतियों से बाज आए.
बहुत उपर तक पहुंच है मेरी.


एक अदृश्य शक्ति के समक्ष,
जो सृष्टि का निर्माता भी है
और चलाता भी है.
मैने क्षमा न करने
और न्याय पाने की
मौन स्वीक्रुति दे दी.
ये मौत भी,
मेरे ही ईशारों पर हुई है.


(ये मौत भी,मेरे ही ईशारों पर हुई है. -इन वाक्यों के साथ मैंने अपना पहला पोस्ट ब्लोग पर डाला था.छह-सात महिने के भीतर पांच मामले मैंने उस अदृश्य शक्ति के समक्ष फ़ैसले के लिये भेजा.परिणाम देखकर चकित हूं.अपने ईशारे मे परिवर्तन कर रहा हूं.)


दूसरा ईशारा


तुम्हारा दंड-विधान
एक-तरफ़ा मेरे ही पक्ष में क्यों?
छोटी-छोटी गलतियों के लिये
किस धारा के तहत
यह मृत्यु-दंड?

जब अपराधी भी तुम्हीं,
वकील और जज भी.
फ़िर तुम्हारे फ़ैसले को
कौन चुनौती दे सकता है?

तुम्हारा फ़ैसला क्रुर है
मुझे न्याय नहीं चाहिये.
मेरी तरह तुम भी
उन्हें अबोध समझकर
माफ़ कर दो.

Tuesday, May 18, 2010

बच्चों का कठपुतली-खेल

गर्मी की छुट्टी शुरु हो गयी थी.स्कुल के बच्चे जो होस्टल में रहते थे, खाली समय में कुछ करना चाहते थे.सबने मिलकर सोचा कि कठपुतली खेल खेला जाये ..बच्चों ने प्रांगण को घेर कर एक रंगमंच बनाया और दर्शकों के लिये दर्शक-दीर्घा बनाया गया. फ़िर सभी ने लकङियों के कई पुतले बनाये. प्रधान-मंत्री सहित सभी दिग्गज हस्तियों के पुतले हु-ब-हु बना लिये बच्चों ने.रंगमच पर ही सभा बनाया गया.बच्चे पुरी उत्साह से कार्य कर रहे थे ताकि उनका कार्यक्रम सफ़ल हो.सभा में पुतले बिठा दिये गये.सभी पुतलों में छेद कर काले रंग केअलग-अलग पतले धागे से बांधा गया जिसे नेपथ्य के एक कमानी से जोङ दिया गया.अब एक संचालक की जरुरत थी जो धागा भी हिलाता और सबके संवाद भी बोलता.....यानी कमान संभालता.

संचालक के नियुक्ति संबंधी सलाह के लिये सभी छात्र होस्टल अधिक्षक के पास गये.अधीक्षक महोदय ने कहा-"किसी सशक्त विदेशी महिला को इस कठपुतली-नांच का संचालक बनाओ,देखना तुम्हारे कार्यक्रम को देश की सवा सौ करोङ जनता देखेगी.".

Sunday, May 16, 2010

मैं आशिक हूं.

रात के अंधेरे में
पत्नी को अकेले छोङकर
तुम्हारी तरह चुपके से
किसी कोठे पर नहीं गया.
तुम्हारी तरह
बेटी के उम्र के
बच्चियों के अंगों को
भेङिये की तरह कभी नहीं देखा.
न ही बलपूर्वक
किसी लाचार या हार चुकी
के जिस्म को नोंचा है.
और न ही कभी
तुम्हारी तरह प्रलोभन देकर
किसी औरत की छाती को
आम के गुठली की तरह चूसा है.

पर हां
कई प्रणय संबंध रहे हैं मेरे.
जानवरों की तरह
दर्जनों के साथ संभोग कर चुका हूं.
जिसमें
आघात नहीं था,
बलात नहीं था,
प्रलोभन नहीं था.
ईच्छा, मर्यादा और
संबंधों की सीमायें थी.

मुझसे जलनेवालों,
तथाकथित सज्जनों,
मेरे पीछे आनेवाले दलालों
मुझे सहयोग की भीख देकर
अपमानित मत करो.

भले ही गुनाहगार मानकर
फ़ांसी दे दो,
पर बदचलन मत कहो.
मैं आशिक हूं.

Friday, May 14, 2010

लोमङी की चतुराई

जंगल में प्रजातंत्र हो जाने के बाद राजा शेर भी ब्लोगिंग करने लगा.जंगल में ही एक गीदङ अपनी पत्नी लोमङी के साथ रहता था.गीदङ और लोमङी भी ब्लोगिंग करते थे.लोमङी किसी तरह शेर को नींचा दिखाना चाहती थी.वह अक्सर गीदङ से कहा करती थी कि शेर उस पर बुरी नजर रखता है.

गीदङ इन बातों से परेशान था.वह शेर से डरता था.अंत में परेशान होकर वह शराब पीने लगा.जब भी वह शराब पीकर आता तो उसे लोमङी शेर के खिलाफ़ उकसाती और उसकी चुगली करती थी.लोमङी गीदङ के हिस्से क खाना पाने के लिये उसे मारकर और शेर को नींचा दिखाकर-एक ही तीर से दो निशाना साधना चाहती थी.एक दिन जब गीदङ शराब पीकर घर आया और खाना मांगा तो लोमङी बोली-"आज तो मैं बहुत अच्छा खाना पकायी थी ,पर सारा खाना तो शेर खा गया.अब मैं कहां से खाना लाऊं, तुम गुफ़ा में जाकर शेर को धमकाओ ?". जब गीदङ नहीं माना तो फ़िर कहने लगी-"अगर तुम मर्द नहीं हो तो मैं जाती हूं.क्या करेगा ज्यादा से ज्यादा मुझे खा ही लेगा ना ? तुमने तो चूङियां पहन रखी है."

.इन बातों से गीदङ का स्वाभिमान जाग गया.वह गुफ़ा में जाकर शेर को ललकारने लगा-"मर्द है तो बाहर निकल हरामी.रोज मेरा खाना खा जाता है.".शेर ने देखा कि उसने दारू पी लिया है.उसने मुस्कुराते हुए कहा-"तेरा खाना मैंने नहीं खाया.यदि तुम्हें खाना चाहिये तो ले जाओ मेरी गुफ़ा से.".गीदङ ने कहा-" तुम मेरी लोमङी पर बुरी नजर रखते हो ... .बाहर निकल....आज मैं अपनें अपमान का बदला लेना चाहता हूं..". इस पर शेर को गुस्सा आ गया.उसने अपना पंजा हिला दिया और गीदङ की मौत हो गया. अगले ही दिन पुरे जंगल में शेर बदनाम हो गया कि उसने बेचारे गीदङ को मार दिया. इस बदनामी से शेर के स्वाभिमान को ठेंस पहुंचा.वह उस गुफ़ा को छोङकर चला गया और चालाकी से उसमे लोमङी रहने लगी.अपने किसी मित्र के पूछने पर शेर ने बताया- "लोमङी गलत थी फ़िर भी आसानी से उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया क्योंकि उसने अपना मूल स्वभाव नहीं बदला.इसलिये अपना मूल स्वभाव कभी नहीं बदलना चाहिये."

Thursday, May 13, 2010

चाय भी पीता हूं किस्तों में.

इस कदर व्यस्त है जिन्दगी चाय भी पीता हूं किस्तों में.
काटकर अपने चंद टुकङों को बांट डाला है मैंने रिश्तों में.

बचपन में भी एक बचपन था जवानी में भी एक बचपन था .
छिपा रखा है मैंने लम्हों को वक्त कटता है उनकी गस्तों में.

जिसने पकङा था उंगलियां मेरी कबका छोङा है मेरे हाथों को
जो मिले थे कभी चौराहे पर भुला दिया है उनको रास्तों में.

महबूब के हाथों को पराठा खाकर पढता हूं अब नक्सली खबरें
मां के हाथों का मयस्सर ही नहीं रोटी जो मिलती थी नास्तों में.

मेरे घर की दीवारों से भी गंध आती है आजकल ईर्ष्या की.
मुस्कुराहट भी इतनी मैली है ईत्र मिलाता हूं अब गुलदस्तों मे.

रोने के लिये भी अब वक्त नहीं बचपन को खुदी ने मारा है.
कुछ न पाकर भी अरविंद खुश है मिल गया है वो फ़रिश्तों में.

इस कदर व्यस्त है जिन्दगी चाय भी पीता हुं किस्तों में.
काटकर अपने चंद टुकङों को बांट डाला है मैंने रिस्तों में.

Wednesday, May 12, 2010

सफ़ल षङयंत्र - सूरज डूबा अस्ताचल में.

सूरज डूबा अस्ताचल में,
बादलों की जीत हुई है.

वैसे थी यह सायं बेला
दिवस-देव की नियमित क्रीङा
काले मेघ बने विष-राजन
खेल रहे थे दिव्य सूर्य से.
रोक सकें वे दिव्य पथिक को
यह कब संभव है नभ तल में.
सूरज डूबा अस्ताचल में.
बादलों की जीत हुई है.

पवन-देव ईर्ष्या से ग्रसित थे.
पुत्र शनि ने कुटिल चाल की.
मेघों ने मदिरा-जल पीकर
युद्ध भूमि को घेर लिया था.
हार गया वह अंतिम पल में.
सूरज डूबा अस्ताचल में.
बादलों की जीत हुई है.

मुक्ति दिलाने क्रुरतम किरणों से
वचन दिया था सुर-असुरों ने.
करने सरिता सागर की रक्षा
देनी थी दिनकर को शिक्षा
हों जग विजयी आज पराजित
बनीं शक्ति प्रार्थना बल में
सूरज डूबा अस्ताचल में.
बादलों की जीत हुई है.

सारे जग ने मान लिया
षङयंत्र सफ़ल था कायरों का
पर अट्टहास और वज्रपात ने
जग को रौशन न कर पाया.
फ़िर से सूरज बनकर निगला
निशा रात्रि को नभ-जल-थल में.
सूरज डूबा अस्ताचल में.
बादलों की हार हुई है.

सफ़ल षङयंत्र - सूरज डूबा अस्ताचल में.

सफ़ल षङयंत्र - सूरज डूबा अस्ताचल में.

सूरज डूबा अस्ताचल में,
बादलों की जीत हुई है.

वैसे थी यह सायं बेला
दिवस-देव की नियमित क्रीङा
काले मेघ बने विष-राजन
खेल रहे थे दिव्य सूर्य से.
रोक सकें वे दिव्य पथिक को
यह कब संभव है नभ तल में.
सूरज डूबा अस्ताचल में.
बादलों की जीत हुई है.

पवन-देव ईर्ष्या से ग्रसित थे.
पुत्र शनि ने कुटिल चाल की.
मेघों ने मदिरा-जल पीकर
युद्ध भूमि को घेर लिया था.
हार गया वह अंतिम पल में.
सूरज डूबा अस्ताचल में.
बादलों की जीत हुई है.

मुक्ति दिलाने क्रुरतम किरणों से
वचन दिया था सुर-असुरों ने.
करने सरिता सागर की रक्षा
देनी थी दिनकर को शिक्षा
हों जग विजयी आज पराजित
बनीं शक्ति प्रार्थना बल में
सूरज डूबा अस्ताचल में.
बादलों की जीत हुई है.

सारे जग ने मान लिया
षङयंत्र सफ़ल था कायरों का
पर अट्टहास और वज्रपात ने
जग को रौशन न कर पाया.
फ़िर से सूरज बनकर निगला
निशा रात्रि को नभ-जल-थल में.
सूरज डूबा अस्ताचल में.
बादलों की हार हुई है.

Tuesday, May 11, 2010

भ्रष्टाचारम सर्वत्रम

कार्यालये च विद्यालये
न्यायालये च रक्षालये
विधानालये च वाचनालये
गृहालये च फ़िल्मालये
चिकित्सालये च शौचालये
मस्जिदे च मठालये
यत्रम-तत्रम उपस्थितम
भ्रष्टाचारम सर्वत्रम.

उद्योगे च व्यवसाये
पर्यावरणे च भाषाये
निर्माणे च ठेकालये
दुग्धालये च विषालये
खेलम-कूदम और क्रिकेटम
भ्रष्टाचारम सर्वत्रम.

कार्यालये अंग्रेजम पुत्रम
विद्यालये मैकाले वत्सम
न्यायालये न्यायधीषम भ्रष्टम
रक्षालये भौं-भौं श्वानम
किंचित स्थानम कुतौ न रिक्तम
भ्रष्टाचारम सर्वत्रम.

विधानालये दो बापम पुत्रम
वाचनालये नित्यानन्दम
गृह मंत्राले सत्चित अम्बरम
फ़िल्मालये दाउद सम्पर्कम
भ्रष्टाचारम सर्वत्रम.

चिकित्सालये किडनी चोरम
शौचालये ठेकेदारम
मस्जिदे जेहादम षङयंत्रम
मठालये ब्राह्मण पाखंडम
भ्रष्टाचारम सर्वत्रम.

निर्माणे पुलम पतितम
ठेकालये बन्दूकम नोकम
दुग्धालये केमिकल मिलावटम
विषालये अवैध शराबम
खेलम-कूदम संघम प्रमुखम
क्रिकेटम मोदी मोदकम
भ्रष्टाचारम सर्वत्रम.

उद्योगे टेक्सम चोरम
च व्यवसाये जमाखोरम
पर्यावरणे मुद्रा धुर्तम
भाषा क्षेत्रम मीडिया मित्रम
भ्रष्टाचारम सर्वत्रम.

पशु भोजनम च बोफ़ोर्सम
ताबुतम च शेयर मार्केटम
स्टम्प पेपरम च सैनिक दालम
किंचित अल्पम किंचित दीर्घम
भ्रष्टाचारम सर्वत्रम.

राष्ट्राध्यक्षं प्रतिभा मातरम
मंत्री प्रमुखः मनमोहनम
सर्वत्रम, कथय न कुत्रम?
क्रांतिदूतम प्रश्नम किंचित उत्तरम?
वन्दे मातरम वन्दे मातरम.
(मित्रों मैं संस्कृत नहीं जानता,फ़िर भी कविता लिखने का प्रयास किया है,आशा है भाषा पर ध्यान न देकर भावार्थ पर जायेंगे.)

Sunday, May 9, 2010

जख्म

"लो पहले इससे अपना बदन ढक लो" कहते हुए ठाकुर ने उसके फ़टे हुए कपङे से निकल आये अंगों पर एक तौलिया डाल दिया.फ़िर उसके एक गाल पर अपना हाथ रखकर अपनी ऊंगलियों से उसके आंसू पोछते हुए कहा-"जानवर था वह जो इतनी प्यारी कोमल बच्ची के साथ बलात्कार किया, छी......,लेकिन ठाकुर की हवेली में तुम सुरक्षित हो." वह सोच रही थी कि कुछ लोग ठाकुर की तरह अच्छे भी होते हैं.वह ठाकुर के साथ उसकी हवेली में सचमुच सुरक्षित महसुस कर रही थी.तभी ठाकुर के दो-तीन दोस्त आ गये.कुछ देर के बाद ठाकुर के कक्ष से वह निर्वस्त्र होकर कराहते हुए बाहर निकली.बाहर के बगीचे में एक जख्मी बिल्ली के उपर कई सारे गिद्ध झपट्टे मार रहे थे.वह भी अपने स्वर में चिल्ला रही थी.आवाजें अलग-अलग पर जख्म एक सा था और दर्द भी.

Sunday, May 2, 2010

चुंबन

शीतल वायु के
मंद वेग का
झूठा सहारा लेकर
टूटे पत्ते का
विशाल पुष्प के
कामुक वक्षों से
सटकर चिपक जाना,

फ़िर
कोमल पंखुङियों को हटाकर
कठोर अग्र-भाग से
स्वर्णिम पुष्प-केन्द्रक का
अमृतमयी स्पर्श.