Friday, May 21, 2010

दूसरा ईशारा

ईशारा

ये मौत भी,
मेरे ही ईशारों पर हुई है.
छल किया था,
धोखा दिया था उसने.
मैने उसे समझाया,
चेतावनी दिया,
अपनी गलतियों से बाज आए.
बहुत उपर तक पहुंच है मेरी.


एक अदृश्य शक्ति के समक्ष,
जो सृष्टि का निर्माता भी है
और चलाता भी है.
मैने क्षमा न करने
और न्याय पाने की
मौन स्वीक्रुति दे दी.
ये मौत भी,
मेरे ही ईशारों पर हुई है.


(ये मौत भी,मेरे ही ईशारों पर हुई है. -इन वाक्यों के साथ मैंने अपना पहला पोस्ट ब्लोग पर डाला था.छह-सात महिने के भीतर पांच मामले मैंने उस अदृश्य शक्ति के समक्ष फ़ैसले के लिये भेजा.परिणाम देखकर चकित हूं.अपने ईशारे मे परिवर्तन कर रहा हूं.)


दूसरा ईशारा


तुम्हारा दंड-विधान
एक-तरफ़ा मेरे ही पक्ष में क्यों?
छोटी-छोटी गलतियों के लिये
किस धारा के तहत
यह मृत्यु-दंड?

जब अपराधी भी तुम्हीं,
वकील और जज भी.
फ़िर तुम्हारे फ़ैसले को
कौन चुनौती दे सकता है?

तुम्हारा फ़ैसला क्रुर है
मुझे न्याय नहीं चाहिये.
मेरी तरह तुम भी
उन्हें अबोध समझकर
माफ़ कर दो.

9 comments:

nilesh mathur said...

वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

Anonymous said...

bahut hi khubsurat rachnaon mein se ek...
yun hi likhte rahein....
aur haan
meri nayi kavita aapki pratikriya ka intzaar kar rahi hai...

दिलीप said...

bahut sundar...

कडुवासच said...

तुम्हारा फ़ैसला क्रुर है
मुझे न्याय नहीं चाहिये.
मेरी तरह तुम भी
उन्हें अबोध समझकर
माफ़ कर दो.
... अदभुत ... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय!!!

Urmi said...

बहुत ही सुन्दर और लाजवाब रचना! बधाई!

विवेक रस्तोगी said...

बहुत अच्छी रचना, सुन्दर शब्दप्रवाह !

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

मैंने उस अदृश्य शक्ति के समक्ष फ़ैसले के लिये

u r taking all new hight............

संजय भास्‍कर said...

Maaf kijiyga kai dino busy hone ke kaaran blog par nahi aa skaa

संजय भास्‍कर said...

आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,