रात के अंधेरे में
पत्नी को अकेले छोङकर
तुम्हारी तरह चुपके से
किसी कोठे पर नहीं गया.
तुम्हारी तरह
बेटी के उम्र के
बच्चियों के अंगों को
भेङिये की तरह कभी नहीं देखा.
न ही बलपूर्वक
किसी लाचार या हार चुकी
के जिस्म को नोंचा है.
और न ही कभी
तुम्हारी तरह प्रलोभन देकर
किसी औरत की छाती को
आम के गुठली की तरह चूसा है.
पर हां
कई प्रणय संबंध रहे हैं मेरे.
जानवरों की तरह
दर्जनों के साथ संभोग कर चुका हूं.
जिसमें
आघात नहीं था,
बलात नहीं था,
प्रलोभन नहीं था.
ईच्छा, मर्यादा और
संबंधों की सीमायें थी.
मुझसे जलनेवालों,
तथाकथित सज्जनों,
मेरे पीछे आनेवाले दलालों
मुझे सहयोग की भीख देकर
अपमानित मत करो.
भले ही गुनाहगार मानकर
फ़ांसी दे दो,
पर बदचलन मत कहो.
मैं आशिक हूं.
11 comments:
:(
क्या बात है...। पढ़ते हुए लगा कि कहीं आप पर अश्लीलता का आरोप न लग जाए। पर श्लीलता और अश्लीलता जैसे शब्दों को दरकिनार कर बेहद खूबसूरत रचना। समाज की नग्न सच्चाई।
Mukhaute khol diye..!
waah! बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आशिक ... एक का नही पर कइयों का .... ?
क्या कहने हैं?
सब कुछ उघाड़ कर रख दिया।
kya baat hai..
bahut hi achhi rachna...
bahut hi naye shabd bhi....
... क्या बात है !!!
अति सुन्दर भाव ।
मैं आशिक हूं.
मज़ा आ गया
बढ़िया रचना
charo khane chit kar diya......
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