Monday, May 31, 2010

पत्थरों से क्यों ईंसान बनाया तुमने ?

पत्थरों से क्यों ईंसान बनाया तुमने ?
जानें लोगों को कितना रुलाया तुमने.

बादलों से भी तो रंग चुरा सकते थे
काले नागन से ही क्यों जुल्फ़ बनाया तुमने?

उनकी आंखों में मयखाना डाला तुमने
मेरी हाथों में क्यों जाम सजाया तुमने.?

फ़ूलों के रस से बनाये थे तुमने होठों को
फ़िर क्यों मीठा सा जहर उसमें मिलाया तुमने?

शीशे के दिल की जरुरत क्या थी ?
कितना कमजोर जिगर ईंसां बनाया तुमने.

अपनी ही शोहरत का रिश्वत लेकर,
लाखो आंखों से आंसु बहाया तुमने

तु भी पत्थर की तरह एक दिन मर जायेगा
आह टूटे हुए दिल की बता दिया हमने.

12 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बादलों से भी तो रंग चुरा सकते थे
काले नागन से ही क्यों जुल्फ़ बनाया तुमने?

बहुत बढिया अरविंद जी

राम राम

कडुवासच said...

...अदभुत भाव .... प्रसंशनीय रचना,बधाई !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया....सुन्दर लेखन

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अच्छे भाव, दिनभर व्यस्त था मेल अभी थोड़ी देर पहले देखी !

Shekhar Kumawat said...

bahut khub bhaya shandar rachna aap ki ye

दिगम्बर नासवा said...

बादलों से भी तो रंग चुरा सकते थे
काले नागन से ही क्यों जुल्फ़ बनाया तुमने?

सही कहा है ... पर ये सब हम आप ने ही तो किया है ... अच्छी रचना है ...

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

भी पत्थर की तरह एक दिन मर जायेगा
आह टूटे हुए दिल की बता दिया हमने.


bahut khub............

Anonymous said...

bilkul hi dil ko choo gayi aapki yeh kavita..
badhai...

nilesh mathur said...

अच्छा लिखा है लेकिन बहुत जगह उच्चारण की भूल है, ठीक कर लें!
jaise-जुल्फ़ बनाया तुमने?
फ़ूलों के रस से बनाये थे तुमने होठों को,
लाखो आंखों से आंसु बहाया तुमने,
आह टूटे हुए दिल की बता दिया हमने.

Ra said...

achha likha hai ,,,,sundar rachna

Ra said...

thoda si dikkat hai ek do jagh tuk theek hai ...behtar nahi ,,,prayas kare ho sakta hai

आचार्य उदय said...

आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी