पत्थरों से क्यों ईंसान बनाया तुमने ?
जानें लोगों को कितना रुलाया तुमने.
बादलों से भी तो रंग चुरा सकते थे
काले नागन से ही क्यों जुल्फ़ बनाया तुमने?
उनकी आंखों में मयखाना डाला तुमने
मेरी हाथों में क्यों जाम सजाया तुमने.?
फ़ूलों के रस से बनाये थे तुमने होठों को
फ़िर क्यों मीठा सा जहर उसमें मिलाया तुमने?
शीशे के दिल की जरुरत क्या थी ?
कितना कमजोर जिगर ईंसां बनाया तुमने.
अपनी ही शोहरत का रिश्वत लेकर,
लाखो आंखों से आंसु बहाया तुमने
तु भी पत्थर की तरह एक दिन मर जायेगा
आह टूटे हुए दिल की बता दिया हमने.
12 comments:
बादलों से भी तो रंग चुरा सकते थे
काले नागन से ही क्यों जुल्फ़ बनाया तुमने?
बहुत बढिया अरविंद जी
राम राम
...अदभुत भाव .... प्रसंशनीय रचना,बधाई !!!
बहुत बढ़िया....सुन्दर लेखन
अच्छे भाव, दिनभर व्यस्त था मेल अभी थोड़ी देर पहले देखी !
bahut khub bhaya shandar rachna aap ki ye
बादलों से भी तो रंग चुरा सकते थे
काले नागन से ही क्यों जुल्फ़ बनाया तुमने?
सही कहा है ... पर ये सब हम आप ने ही तो किया है ... अच्छी रचना है ...
भी पत्थर की तरह एक दिन मर जायेगा
आह टूटे हुए दिल की बता दिया हमने.
bahut khub............
bilkul hi dil ko choo gayi aapki yeh kavita..
badhai...
अच्छा लिखा है लेकिन बहुत जगह उच्चारण की भूल है, ठीक कर लें!
jaise-जुल्फ़ बनाया तुमने?
फ़ूलों के रस से बनाये थे तुमने होठों को,
लाखो आंखों से आंसु बहाया तुमने,
आह टूटे हुए दिल की बता दिया हमने.
achha likha hai ,,,,sundar rachna
thoda si dikkat hai ek do jagh tuk theek hai ...behtar nahi ,,,prayas kare ho sakta hai
आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी
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