मैं अपने घर में चींटियों से परेशान था.खाने पीने का सामान तो दूर मेरे कपङे,बिस्तरे और सोफ़ा सेट भी उससे अछुता नहीं था.वैसे चींटियां भी मुझसे परेशान हो चुकी थी. एक दिन मुझसे उनकी हालत देखी नही गयी और मुझे उनपे तरस आ गया.मैंने सोचा यदि थोङा सा गुङ लाकर रख दूं तो ये मुझे भी परेशान नहीं करेंगे और इनका भी कल्याण होगा.
अगले ही दिन मैं बाजार से पांच किलो गुङ लाकर अपने घर में रख दिया.कुछ देर के बाद उसपर दो-चार चींटियां आ गयी.फ़िर अगले कुछ मिनटों के बाद चींटियां कतारों में सैकङो-हजारो की संख्या में आने लगी.उनका शिष्टाचार देखते ही बन रहा था.कहीं किसी तरह का विरोध नहीं.
कुछ दिनों के बाद विभिन्न आकार और नस्लों वाली कई तरह की चींटियां गुङ के उपर जमा हो चुकी थी.धीरे-धीरे गुङ भी घटने लगा था.छोटी-छोटी कई चींटियों को गुङ से दूर कर दिया गया था. कुछ चींटियां समुहों में किसी सरदार चींटी के अधीन गुङ पर काबिज थी.कुछ बङी काली चींटियां हिंसात्मक दिख रही थी.नस्ल, रंग-रुप और आकार के आधार पर चींटियों का दल बन चुका था.उपर से देखने पर सारा माजरा श्पष्ट दिख रहा था.......किस तरह चंद चींटियों ने राजनीति से गुङ के बङे हिस्से पर कब्जा कर लिया था.कुछ चींटियां रक्षा के नाम पर गुङ भोजन में दलाली ले रही थी और कुछ को बलपुर्वक वंचित कर दिया गया था.मैंने अपने एक मित्र को बुलाकर दिखाया और कहा -" देखो, अभी भी इतना गुङ बचा हुआ है कि सभी चींटियां आराम से बसर कर सकती हैं फ़िर भी किस तरह आपस में लङ रही हैं." मेरे मित्र ने कहा-"दोस्त,इस गुङ का भी वही हश्र हो रहा है जो हमारे देश का हुआ है.गुङ के टुकङे-टुकङे तो हो ही चुके हैं ,लगता है इसके टुकङे भी सलामत नहीं बचेंगे और चींटियों का तो भगवान ही मालिक है."
10 comments:
nice
बहुत अच्छी लगी चींटी की कहानी! मुझे तो चींटी से बहुत डर लगता है खासकर लाल चींटी और बड़े बड़े काले चींटीओं से! मानना पड़ेगा की आपने चींटीओं का इतना ख्याल किया की उनके खाने के लिए गुड़ का प्रबंध किया! अब भला चींटीयाँ इतना स्वादिष्ट खाना छोड़कर कैसे जाएँगी! आप इस कहानी के माध्यम से हमारे देश की हालत को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है!
गुड क्या वो दिल्ली की राज गद्दी थी !
बहुत बढिया व्यंग्य प्रतीकों के माध्यम से
आपकी लेखनी के तो हम कायल हैं।
आभार
प्रेरक प्रतीकात्मक प्रसंग के लिए बधाई अरविन्द जी..
गुड खतम। चींटी यहीं कहीं दीवार की, चौखट की दरारों मे। जोरदार लेख (कल्पना)। बधाई।
...जबरदस्त ... जोर का झटका धीरे से ...!!!
रोचक ढंग से ...विचारणीय दशा दर्शाई है ..... ,,,धन्यवाद अरविन्द जी
क्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।
आइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !
प्रेरक और सुन्दर कथा
प्रणाम
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