बङा भाई समझदार, समृद्ध और शक्तिशाली था. वह काफ़ी पढा लिखा और बङे पद पर कार्यरत था. छोटा भाई बेरोजगार, गरीब और मूर्ख था. लोग उसका मजाक उङाया करते थे. अक्सर चौराहे पर लोगों के सामने उसकी बेवकूफ़ी पर हंसा जाता था. उसे यदि पांच रुपये और दो रुपये के सिक्कों में से एक को चुनने कहा जाता तो वह दो रुपये का सिक्का चुनता था. लोग हंसते थे और दो रुपये का सिक्का दे देते थे.
आज साझा आम के पेंङ से आम तोङा गया. चालाकी से बङे भाई ने पचास जोङी आम का एक हिस्सा और बीस जोङी का दूसरा हिस्सा बनाया. फ़िर उदारता दिखाते हुए छोटे भाई को अपना हिस्सा चुनने का हक दिया गया. छोटे भाई ने बीस जोङी आम का हिस्सा चुना और टोकरी मे भर लिया. घर आने पर बेटी ने पूछा--"बापू, जब तुम जानते हो कि पचास बीस से ज्यादा होता है तो फ़िर ऐसी बेवकूफ़ी क्यों..?".बाप ने टूटे मन से जबाव दिया--"बेटी सिर्फ़ अमीर लोग ही समझदार होते हैं. यदि मैं पचास जोङी आमवाला हिस्सा चुनता तो मुझे बीस जोङी आम भी नहीं मिलता. गरीबों को यदि अपने अधिकार का एक टुकङा भी चाहिये तो उसे बेवकूफ़ बनकर ही जीना पङता है."
10 comments:
How beautifully you defined a poor person's constraint.
A vital lesson taught emotionally.
क्या बात कह दी………………निशब्द कर दिया।
सुन्दर लेखन।
बड़ी बात.
वाह! आनंद आ गया पढ़कर.
सही कहा आपने!
यदि मैं पचास जोङी आमवाला हिस्सा चुनता तो मुझे बीस जोङी आम भी नहीं मिलता. वो क्यों नही जब दो आप्शन उसके सामने थे तो एक तो मिलना ही था । बुरा न माने इस कहानी को यहाँ से कुछ मोड दें या इस बात को सही ठहरायें कि उसे 20 वाला क्यों नही मिलता। इस को अन्यथा न लें शुभकामनायें
यदि मैं पचास जोङी आमवाला हिस्सा चुनता तो मुझे बीस जोङी आम भी नहीं मिलता. गरीबों को यदि अपने अधिकार का एक टुकङा भी चाहिये तो उसे बेवकूफ़ बनकर ही जीना पङता है." यह तो हुई दौलत की अमीरी की बात। लेखन, पठन, पाठन, ज्ञान आदि के मामले मे भी यही बात लागू होती है। अच्छी प्रस्तुति।
@ निर्मला कपिला
उसे दो ओप्सन इसलिये मिला क्योन्कि वह बेवकूफ़ था. यदि वह समझदारी दिखाता तो किसी भी तरह उसे अपना अधिकार पाने से वंचित कर दिया जाता.तब उसे बीस वाल भी नहीं मिलता.....
बढ़िया है!
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अरे भाई अरविन्दजी
आज तो आपने कमाल कर दिया।
इसे कहते हैं भीतर तक हिला देना।
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