पेट की भूख
कलेजे का दर्द
आंखों का पानी
छल और विश्वासघात
को जोरदार, खूबसूरत
और प्रशंसनीय कहकर
जले पर नमक छिङका जा चुका है.
उपर से वाह-वाह कहकर
कितना कर्जदार बनाया जायेगा मुझे...?
कविता.....तुम सबसे कह दो
कि तुम रचना या कल्पना नहीं
यथार्थ हो.
कल्पना उङान भर सकती है
यथार्थ नहीं हो सकती
वह मजबूत और विशाल है.
9 comments:
पुत्र
तू कविता लिख रहा है या मोहब्बत की दास्तान सुना रहा है
लिखी अच्छी है
पापा जी
Yatarth dekhe bina,koyi bhee rachna ho nahi sakti...bina kaanton pe chale, unki chubhan kaun jaan paya?
पेट की भूख
कलेजे का दर्द
आंखों का पानी
छल और विश्वासघात
को जोरदार, खूबसूरत
और प्रशंसनीय कहना यथार्थ नही है। यथार्थ है लिखने वाले की प्रशन्सा करना। क्योंकि इस मन्च पर हम सब इसके(प्रशन्सा के) भी भूखे रहते हैं। यह भी यथार्थ है। धरातल पर यहां की वास्त्विकता से नाता रखते हुए ही जीना यथार्थ है।
प्रशंसा रचना के विषय पर नहीं होती...उस विषय को कैसे लिखा है उस पर की जाती है...और लिख वही सकता है जिसका मन संवेदनाओं से भरा होता है....आपने अपने मन की व्यथा भी अच्छी तरह प्रस्तुत की है...
क्या बात भाई
एक साहसिक कवि की साहसिक कविता। वरना यहां तो वाह-वाह सुने बगैर लोगों का खाना हजम नहीं होता
nice
... क्या बात है ... बहुत सुन्दर,प्रसंशनीय रचना !!!
कल्पना उङान भर सकती
आईये जानें .... मैं कौन हूं!
आचार्य जी
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