Friday, August 1, 2014

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Thursday, July 5, 2012

राजा और वीर




एक खडा है युद्ध-भूमि पर कुछ भी कब सुनता है.
एक हमारी पेट के खातिर माथा अपनी धुनता है.
रक्ततिलक के शौर्य चमक की अनदेखी कर दूं या
स्वर्ण मुकुट की आभा को शीष झुका सम्मान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,


एक प्रचंड शक्ति सूर्य है , निकट जला देता है.
एक देता है पर जानें क्यों भाव बहुत लेता है.
अटल पराजय है फ़िर भी बादल सा गरजूं मैं
या होकर छोटा राजा का खुलकर अपमान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,

शरहद पर लडनेवालों का क्या गीत कोई गाया है.
पर किस राजा को अपनी निंदा आजतलक भाया है.
वीरों के सम्मुख जाकर कायरता का माफ़ी मांगूं या
खुला नहीं जो कभी खजाना उसपर मैं अभिमान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,

Tuesday, January 31, 2012

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.


कह दो दिल से कैसे मानू

कि मन में तेरे गिले नहीं हैं.

हम साथ साथ भले बैठे हों

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



अब भी दबे हैं स्वर भावों के

छलक रहे हैं दर्द घावों के.

होठों पर दिखते हंसी नदारद

खुशियों के फ़ूल खिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



उद्घोष ही न हो विजय की

जीत का फ़िर अर्थ क्या है.?

भूल जायें अपनी शहादत

रण का फ़िर सार्थ क्या है?

खिंच गये थे जो दरारें

आज तक भी सिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



काल था वह हवा का झोंका

उजङा घर हम सबका अपना

याद है कि आग लगी थी

टूट गया था अपना सपना.

पर मर रही थी जो हर पल

आशाओं के पंख हिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.

Friday, December 30, 2011

शुभकामनायें

शुभकामनायें

शुभ वर्ष 2012----------- मंगल वर्ष 2012--------------- नूतन वर्ष 2012

नई आशाएं, नयी योजनायें, नये प्रयास, नयी सफ़लता, नया जोश, नई मुस्कान, नया वर्ष बीस-बारह .


समृद्धशाली, गौरवपुर्ण, उज्ज्वल, सुखदायक, उर्जावान, विस्मयकारी, स्मृतिपुर्ण नव वर्ष बीस -बारह।



जीवन-मरण की सीमाओं मे बंधा हुआ नगण्य सा प्राणी मानव, काल-चक्र की द्रुतगति मे वीते वर्ष की परिधि बिंदु पर सांस लेता हुआ मानव, कालदेव की इच्छा-मात्र के अनुरूप अपने-अपने कर्तव्य एवम अधिकार के झंझावातों मे उलझा हुआ मानव और अन्य - प्राणियों की भांति अपनी लघुतर आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कठिनतम प्रयास करता हुआ मानव का जीवन नव वर्ष बीस बारह में मंगलमय हो.



कालदेव नव वर्ष बीस बारह के प्रत्येक क्षण आपके मुख-मंडल को दिवसदेव सूर्य की भांति तेजपूर्ण और कोमल पुष्प के समान प्रसन्नचित रखें. समय की धारा तरंगमयी सागर के लहरों की तरह आपके हृदय को तरंगित करें, रात्रि-राजन चंद्रदेव की तरह निर्मल करें, अमृतमयी गंगाजल की भांति पवित्र रखें और मदमस्त निर्झर-जल की भांति निश्छल बनायें--यही मेरी शुभकामनायें हैं.



देवाधिदेव महादेव जो प्रत्येक क्षण व प्रत्येक कण के सतत विनाशक हैं आपके सभी दुख-दर्द को नष्ट कर आपके जीवन के सभी विषों का पाण करें जिससे परमपिता ब्रह्मा नष्ट हुए प्रत्येक रिक्तियों में सुख-समृद्धि की नव-सृष्टि करें साथ ही साथ जग के पालक साक्षात नारायण आपका कल्याण करें. त्रिदेवों के परम आशिर्वाद से नव-वर्ष बीस-बारह में आपके जीवन में एक नयी शक्ति का उदय हो जिसके समक्ष आपकी शारिरिक, मानसिक व आध्यात्मिक दूर्बलतायें स्वतः ही अपना पराभव स्वीकार करे---ये मेरी शुभकामनायें हैं.





दूर क्षितिज पर जहां अनन्त महासागर के तरंगित शीष अनंताकाश के स्थिर पांव का कामुक चुंबन करती है उसी गर्भ-बिन्दु से समस्त उर्जा के वाहक सूर्य के उदय के साथ ही काल चक्र का एक मजबूत स्तंभ विगत वर्ष के रूप में स्वर्णिम अतीत की ममतामयी गोद में समा गया है, उसी तरह निश्चय ही सुखद कालचक्र का अगला दृढ स्तंभ नववर्ष बीस-बारह सभी नूतनताओं को पूरी उर्जा के साथ स्वयं में ज्योति-स्वरूप समेटते हुए आपके समक्ष गौरव-पूर्ण भविष्य के रूप में प्रस्तुत हो रही है जो आपके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ज्योति फ़ैलाकर परम-सुख का निर्माण करे---ऐसी मेरी शुभकामनायें हैं.





निर्मल प्रकृति की प्रचंड शक्ति आपके स्वस्थ शरीर, साकारात्मक गुण , विवेकशील बुद्धि एवं धैर्यपुर्ण आत्मिक बलों में गुणोत्तर वृद्धि करते हुए आपके जीवन में ऐसी दिव्यता प्रदान करे कि स्वतः ही लोभ, स्वार्थ, दुराचार , रोग-व्याधि जैसी नाकारात्मक शक्तियां व दूर्बलतायें आपके महान व्यक्तित्व के समक्ष नतमस्तक होवें--यह मेरी शुभकामनायें हैं.





सभी दुख-दर्द एवं अन्य समस्यायें जो प्रकृत के नियम हुआ करते हैं उसमे काल के वक्ष पर आपके कर्मठ हाथों से आरेखित सुचित्र वैधानिक परिवर्तन करते हुए सुखद व सफ़ल परिणति देगी. नया वर्ष बीस बारह आपके जीवन की संभावनाओं को आपके हृदयस्थ आशाओं से कई गुणा अधिक बढाकर आपके जावन में तदनुरुप उपलब्धियों की अमृतमयी वृष्टि करे---यह मेरी शुभकामनायें हैं.



अपार संभावनाओं के संग नूतन आशायें नव ज्योति बनकर प्रातः-स्वरुप रश्मि-किरण के रूप मे प्रगट हो रही है.यह दिव्य किरण पूंज आपके अनन्त जीवन को सदा के लिये प्रकाशित करे साथ ही आप अनन्त ऊर्जा का अविरल संचार पाकर निर्मल चान्द की तरह युगों तक स्वयं एवं संसार के कल्यानार्थ प्रकाशवान हों.यह परम सत्य है कि क्षण क्षणभर का होता है ,नष्ट होना प्रकृत के नियम हैं परन्तु यह भी उतना ही सच है कि आपके चरण-चुंबन हेतु सृष्टि लगातार अनन्त क्षणो को सृजित करती है.भविष्य के गर्भ से लगातार जन्म ले रहे इन क्षणों में ईश्वर इतनी शक्ति दें कि आपके रज कणों से आशाओं के महलों का निर्माण हो ---नये वर्ष पर यह हमारी शुभकामनायें है.









फ़ूलों से सजी हो चमन की तरह

सितारों से सजी हो गगन की तरह

खूशबू इतनी कि फ़ूल फ़ींका लगे

मस्ती हो बसंती पवन की तरह.



आपका हर दिन होली गुजरे

आपकी हर रात दिवाली हो.

सुख इतनें हों कि क्या कहने

हर पल चेहरे पर लाली हो.



हम चाहते है यह नया वर्ष

आपके जीवन को दे उत्कर्ष

हर सपने पूरे हों जो चाह रहे.

मिले खुशियां हों अपार हर्ष



अरविन्द झा











Monday, December 26, 2011

सत्यनिष्ठा




नौकरी का आवेदन पत्र भेजने के सात साल बाद चन्द्राकर को साक्षात्कार के लिये बुलाया गया.अब उसे नौकरी की जरूरत नहीं थी क्योंकि वह बिजनेस करने लगा था , लेकिन अनुभव प्राप्त करने के लिये वह साक्षात्कार बोर्ड में उपस्थित हुआ.एक सदस्य ने पूछा..."इस पद के लिये आपमे कितनी काबिलियत है?" जबाव था---"सर यह पद आरक्षित है और मैं अकेला उम्मेदवार हूं. "दूसरे सदस्य ने पूछा---"आपको इस पद पर काफ़ी मेहनत करनी होगी.?"चन्द्राकर ने कहा--"सर मेहनत करने की मुझे आदत नहीं है...हां मैं चमचागिरी कर सकता हूं."तीसरे सदस्य ने कहा---"क्या आप विश्वास दिलायेंगे कि आप ईमानदारी से काम करेंगे ".उसने छूटते ही उत्तर दिया---"हां मैं यकीन दिलाता हूं कि भ्रष्टाचार से कमाये गये सभी रुपयों का हिसाब और कमीशन उपर के अधिकारी तक ईमानदारी से पहुंचा दूंगा."फ़िर बोर्ड के चेयर्मैन ने उसे यह कहते हुए बधाई दी कि उसका चयन कर लिया गया है.जाते समय चन्द्राकर यह जानना चाहता था कि उसके चयन का आधार क्या था.कुछ कहने के बदले चेयर्मैन ने उसके तरफ़ एक पुरानी पेपर जिसमे भारत का मानचित्र खींचा था और जिसके बीच मे एक जगह पर सत्यनिष्ठा लिखा हुआ था उसकी ओर बढा दिया.

Wednesday, October 19, 2011

कसौटी



पाप निकलता ही है.

पुण्य बचता ही है.

धर्म बहता ही है.

कर्म करता ही है.

गुण चमकता ही है.

बुराई छलकता ही है.

देखो कसता कसौटी पर

काल अटकता नहीं है.

Wednesday, October 12, 2011

मेरी कविता -2

सुबह ओंस की बूंदों से ,सबसे पहले मिलती है

सुनहली किरणों मे तो वह फ़ूलों सी खिलती है.

सूरज के संग आसमान में चढती है मेरी कविता

नये दिवस की नई कहानी गढती है मेरी कविता



रोज गगन में छू लेती है ऊंचाई की नयी बुलन्दी

जब भी होती है दोपहर में रोशनी से जुगलबन्दी

पूरी ताकत मेहनतकश में भरती है मेरी कविता

सूरज की गर्मीं से भी कब डरती है मेरी कविता.


न ही गिर जाने का दुख नहीं ढल जाने का गम

कर देती थकान वह पल भर में ही कितना कम

सांझ के अंधियारे में दीप सजाती है मेरी कविता

मुरझाये चेहरों पर संगीत बजाती है मेरी कविता.