Thursday, July 5, 2012

राजा और वीर




एक खडा है युद्ध-भूमि पर कुछ भी कब सुनता है.
एक हमारी पेट के खातिर माथा अपनी धुनता है.
रक्ततिलक के शौर्य चमक की अनदेखी कर दूं या
स्वर्ण मुकुट की आभा को शीष झुका सम्मान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,


एक प्रचंड शक्ति सूर्य है , निकट जला देता है.
एक देता है पर जानें क्यों भाव बहुत लेता है.
अटल पराजय है फ़िर भी बादल सा गरजूं मैं
या होकर छोटा राजा का खुलकर अपमान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,

शरहद पर लडनेवालों का क्या गीत कोई गाया है.
पर किस राजा को अपनी निंदा आजतलक भाया है.
वीरों के सम्मुख जाकर कायरता का माफ़ी मांगूं या
खुला नहीं जो कभी खजाना उसपर मैं अभिमान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,

4 comments:

ZEAL said...

एक प्रचंड शक्ति सूर्य है , निकट जला देता है.
एक देता है पर जानें क्यों भाव बहुत लेता है.
अटल पराजय है फ़िर भी बादल सा गरजूं मैं
या होकर छोटा राजा का खुलकर अपमान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं...

Very impressive creation.

.

Rahul Singh said...

प्रशंसनीय.

vijai Rajbali Mathur said...

वर्ष 2013 आपको सपरिवार शुभ एवं मंगलमय हो ।शासन,धन,ऐश्वर्य,बुद्धि मे शुद्ध-भाव फैलावे---विजय राजबली माथुर

गुरप्रीत सिंह said...

एक उत्तम कविता।
!!!!! http://yuvaam.blogspot.com/2013_01_01_archive.html?m=0