Thursday, December 30, 2010

शुभ वर्ष बीस-ग्यारह की शुभकामनायें

शुभ वर्ष बीस-ग्यारह------- मंगल वर्ष बीस-ग्यारह------- नूतन वर्ष बीस-ग्यारह


नई आशाएं, नयी योजनायें, नये प्रयास, नयी सफ़लता, नया जोश, नई मुस्कान, नया वर्ष बीस-ग्यारह


समृद्धशाली, गौरवपुर्ण, उज्ज्वल, सुखदायक, उर्जावान, विस्मयकारी, स्मृतिपुर्ण नव वर्ष बीस -ग्यारह।


जीवन-मरण की सीमाओं मे बंधा हुआ नगण्य सा प्राणी मानव, काल-चक्र की द्रुतगति मे वीते वर्ष की परिधि बिंदु पर सांस लेता हुआ मानव, कालदेव की इच्छा-मात्र के अनुरूप अपने-अपने कर्तव्य एवम अधिकार के झंझावातों मे उलझा हुआ मानव और अन्य प्राणियों की भांति अपनी लघुतर आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कठिनतम प्रयास करता हुआ मानव का जीवन नव वर्ष बीस ग्यारह मे मंगलमय हो.



कालदेव नव वर्ष बीस ग्यारह के प्रत्येक क्षण आपके मुख-मंडल को दिवसदेव सुर्य की भांति तेजपूर्ण और कोमल पुष्प के समान प्रसन्नचित रखें. समय की धारा तरंगमयी सागर के लहरों की तरह आपके हृदय को तरंगित करें, रात्रि-राजन चंद्रदेव की तरह निर्मल करें, अमृतमयी गंगाजल की भांति पवित्र रखें और मदमस्त निर्झर-जल की भांति निश्छल बनायें--यही मेरी शुभकामनायें हैं.


देवाधिदेव महादेव जो प्रत्येक क्षण व प्रत्येक कण के सतत विनाशक हैं आपके सभी दुख-दर्द को नष्ट कर आपके जीवन के सभी विषों का पाण करें जिससे परमपिता ब्रह्मा नष्ट हुए प्रत्येक रिक्तियों में सुख-समृद्धि की नव-सृष्टि करें साथ ही साथ जग के पालक साक्षात नारायण आपका कल्याण करें. त्रिदेवों के परम आशिर्वाद से नव-वर्ष बीस-ग्यारह में आपके जीवन में एक नयी शक्ति का उदय हो जिसके समक्ष आपकी शारिरिक, मानसिक व आध्यात्मिक दूर्बलतायें स्वतः ही अपना पराभव स्वीकार करे---ये मेरी शुभकामनायें हैं.


दूर क्षितिज पर जहां अनन्त महासागर के तरंगित शीष अनंताकाश के स्थिर पांव का कामुक चुंबन करती है उसी गर्भ-बिन्दु से समस्त उर्जा के वाहक सूर्य के उदय के साथ ही काल चक्र का एक मजबूत स्तंभ विगत वर्ष के रूप में स्वर्णिम अतीत की ममतामयी गोद में समा गया है, उसी तरह निश्चय ही सुखद कालचक्र का अगला दृढ स्तंभ नववर्ष बीस-ग्यारह सभी नूतनताओं को पूरी उर्जा के साथ स्वयं में ज्योति-स्वरूप समेटते हुए आपके समक्ष गौरव-पूर्ण भविष्य के रूप में प्रस्तुत हो रही है जो आपके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ज्योति फ़ैलाकर परम-सुख का निर्माण करे---ऐसी मेरी शुभकामनायें हैं.


निर्मल प्रकृति की प्रचंड शक्ति आपके स्वस्थ शरीर, साकारात्मक गुण , विवेकशील बुद्धि एवं धैर्यपुर्ण आत्मिक बलों में गुणोत्तर वृद्धि करते हुए आपके जीवन में ऐसी दिव्यता प्रदान करे कि स्वतः ही लोभ, स्वार्थ, दुराचार , रोग-व्याधि जैसी नाकारात्मक शक्तियां व दूर्बलतायें आपके मेहान व्यक्तित्व के समक्ष नतमस्तक होवें--यह मेरी सुभकामनायें हैं.


सभी दुख-दर्द एवं अन्य समस्यायें जो प्रकृत के नियम हुआ करते हैं उसमे काल के वक्ष पर आपके कर्मठ हाथों से आरेखित सुचित्र वैधानिक परिवर्तन करते हुए सुखद व सफ़ल परिणति देगी. नया वर्ष बीस ग्यारह आपके जीवन की संभावनाओं को आपके हृदयस्थ आशाओं से कई गुणा अधिक बढाकर आपके जावन में तदनुरुप उपलब्धियों की अमृतमयी वृष्टि करे---यह मेरी शुभकामनायें हैं.

Tuesday, December 28, 2010

देश की आशा---बाबा रामदेव

हाल ही में हुए बिहार के चुनाव परिणाम निश्चय ही विकास के लिये वोट की कहानी कहती है. यह परिणाम बिहार कि लोगों की समझदारी का पर्याप्त सबूत भी देती है.इस बात का कहीं कोई विरोधाभास नहीं है कि मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार ने भाजपा के सहयोग से विगत पांच वर्षों में अच्छा कार्य किया है. इसी बात को मानते हुए जनमत उनके पक्ष में रही...लेकिन एक दूसरी बात जो बाहर आयी है वह यह है कि केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी अर्थात कांग्रेस को बिहार की जनता ने नकार दिया है. बिहार की जनता ने किसी पार्टी विशेष को वोट न देकर "सुशासन" के पक्ष में अपना मत दिया. यही बात देश की राजनीति को एक नयी दिशा देगी.



बहुत हद तक केन्द्रिय सरकार भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी, नक्सलवाद,आतंकवाद, गरीबी आदि सभी समस्याओं को हल करने में असफ़ल रही है. वहीं इन मुद्दों पर विपक्ष भी सफ़लतापूर्वक अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं कर पा रही है. विशेषकर भ्रष्टाचार तो दीमक की तरह लगता है पूरे देश को खोखला कर के ही दम लेगी. इस मामले में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की भूमिका संदेहास्पद लगती है.



२० वीं सदी की बात करें तो महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानन्द नें तत्कालीन समाज के निर्माण में अपनी भूमिका का जो निर्वाह किया था उसे कोई भी भारतीय कैसे भूल सकता है. राजनीति के शिखर पर होते हुए भी बापू कभी भी राजनीतिज्ञ नहीं रहे उसी तरह स्वामी विवेकानन्द राजनेता नहीं होते हुए भी जनमानस के बीच ख्याति प्राप्त युवा के रूप में प्रतिष्ठित बने रहे. इन दोनो व्यक्तित्वों की यह खाशियत थी कि वे निस्वार्थ भाव से जनमानस के प्रति समर्पित रहे और उन्हें तदनुरुप सम्मान भी मिलता रहा.



आज परिस्थितियां उतनी प्रतिकूल नहीं है...पर हां यदि यूं ही नीतिगत भूलें होती रही तो स्थिति बहुत ज्यादा बिगङ भी सकती है. ऐसे में जब सत्ता-पक्ष और विपक्ष दोनों के बीच का अन्तर काफ़ी कम लग रहा है और दोनों जनता जनार्दन के लिये अग्राह्य हो रहे हैं तो निश्चय ही एक आशा की किरण भी दिख रही है. भले ही यह आशा की किरण मीडिया से दूर आस्था और संस्कार चैनल तक ही सिमटी हुई दिख रही है.... लेकिन है वह आशा की किरण जिसके पास भ्रष्टाचार , बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता , नक्सलवाद, गरीबी...आदि सभी समस्याओं के समाधान के साथ-साथ राष्ट्र-गौरव ,स्वाभिमान और स्वास्थ की भी चिंतायें है. वह गांधी की तरह निस्वार्थ और विवेकानन्द की तरह मेधावी और तेजपूर्ण है.....हां वह महापुरुष है बाबा रामदेव....शायेद देश की आशा...बाबा रामदेव.

Sunday, December 12, 2010

चांद को थोङी गुमां तो होगी ही.

क्योंकि बैठा है आसमानों पर चांद को थोङी गुमां तो होगी ही.

करती रौशन है वो जमाने को हाल फ़िर खुशनुमा तो होगी ही.



मेरा तो दिल है एक समन्दर सा आग होता नहीं है इस दिल में

उसके दिल में है आग की लपटें फ़िर भी थोङी धुआं तो होगी ही.



खुद से मैं पूछता ही रहता हूं , कितनी चाहत है उसके सीने में

वो तो चुपचाप रहा करती है , आंखों में कुछ जुबां तो होगी ही.



मैं तो खुद पर यकीं नहीं करता फ़िर भी उसपर मुझे भरोसा है

रहती है वो सफ़ेद चादर में , पर दाग भी बदनुमा तो होगी ही.



भीङ में होकर भी कितना तनहा हूं तेरी चाहत ही मेरा साथी है

तू भी रहती अकेली हो घर में , पर कोई रहनुमा तो होगी ही

Thursday, December 9, 2010

हां मैं कंडोम बेचता हूं.

यौन-रण में वीर जैसा

मैं भी होता हूं स्खलित

जानवर जैसा ही कामुक

उनके जैसा ही पतित

एड्स से सबको बचाने

बिंदास कंडोम बोलता हूं.

हां मैं कंडोम बेचता हूं.



है जिन्दगी लंबी बहुत

रोटी सबकी है जरुरत

प्यार -मोहब्बत -सेक्स

तो है इंसां कि फ़ितरत

तेरे जैसा अश्लील मैं भी

कविदिल की राज खोलता हूं

हां मैं कंडोम बेचता हूं.



लानत है उस लेखनी पर

जो कलम सच को न उगले

काम गर आजाद हो तो

एड्स दुनियां को न उगले

कंडोम लगा मैं काम के लिये

निर्भय अवसर ढूंढता हूं

हां मैं कंडोम बेचता हूं.

Monday, December 6, 2010

मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-१५ (व्यंग्य)

मैंने कहा----"मैं........कुत्ते की तरह भौंक रहा था...? " वह मुस्कुरते हुए बोली----" और नहीं तो क्या....मां कहती है औरतों का जीवन उसी दिन सफ़ल माना जाता है जिस दिन उसका पति कुत्तों की तरह भौंकने लगे...क्योंकि बार्किंग डोग सेल्डम बाइट इफ़ ही बार्क्स ही विल नोट बिट यू. नाव यू आर सेफ़ अन्ड सकसेस्फ़ुल...". मुझसे रहा न गया ----"मुझे पागल मत करो.."

----"मजाक छोङो जी आपने तो सुहागरात में ही कहा था कि आप मेरे प्यार मे पागल हो.."

----" तो...? तो क्या मैं पागल था..?"

-----"नहीं जी, उस दिन तो आपने झूठ बोला था....लेकिन मेरे इतने साल के तपस्या से आज वह बात सच हुई है"

-----"....हां...तब मैं तुम्हारे प्यार में पागल था....और आज...." श्रीमतीजी ने झट से मेरे मुंह पर हथेली रख दी.

-----"कुछ भी मत बोलो मैं जानती हूं कि सभी मर्द महबूबा के प्यार में पागल हो जाते हैं. लेकिन सच का पागल तो वही होता है जो महबूबा से शादी कर लेता है.और एक बार शादी करने के बाद तो वह बेचारा पागल कम्पलीट पागल हो जाता है....पेरफ़ेक्सन आ जाता है.......प्यार में इससे बढकर पागलपन क्या होगा.." अब मुझसे न रहा गया.

-----" देखो..तुम ठीक से बात करो...प्यार की चासनी लगा कर मीठी छुरी से गले मत रेतो....मैं अपनी सुहागरात के हर स्टेटमेंट को वापस लेता हूं क्योंकि वह रात मेरे लाईफ़ की सबसे अशुभ रात थी और तुम मीडिया की तरह उस रात की हर बात को तोङ-मरोङकर पेश करती हो."

----"भला मैं ऐसा क्यों करुंगी."

----" क्योंकि मैं भ्रष्टाचार से पैसे कमाकर भरा हुआ सूटकेश नहीं देता.."

----" भूख लगने पर तो तुम जानवरों का चारा भी खा जाते हो मैं नहीं जानती क्या.."

----" कब खाया मैं जानवरों का चारा...?..कोई यकीन नहीं करेगा...सभी जानते हैं कि मैं कितना ईमानदार हूं.

----" सुहागरात से ही ऐसा बोलते रहे हो...जबकि ये नहीं जानते कि तुम्हारी इमानदारी पर विश्वास करके ही मैंने तुम्हें दिल दिया था.. नेताओं की तरह घरियाली आंसू बहाकर कितने वादे किये थे तुमने....."

------" वादे किये थे तो क्या...."

-------" जानती हूं सारे वादे चुनावी थे....कौन सी तुम्हारी सरकार गिरनेवाली है जो वादे याद रक्खोगे."



वह जोली मूड में थी---ये औरतों का एक विशेष मूड होता है जिसमें वह भीतर से खुश होती है पर बाहर से खुश न होने का नाटक करते हुए एमोशनल अटेक करती है ताकि वह और कुछ हासिल कर सके...ऐसे में यदि पुरुष थोङा भी इधर-उधर करे तो इमोसनल अत्याचार का आरोप लगाती है.



मध्यान्तर----

Wednesday, December 1, 2010

मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-१४ (व्यंग्य)

कुत्तों का नसीब तो देखिये कि खूबसूरत मैडम लोग उसे कारों में अपने साथ घुमाती हैं और मुफ़्त में पप्पी भी देती है.अकेले होते हुए भी वह गृहस्थ जीवन का आनन्द उठाता है.आजकल तो ईंसानों में भी कुत्तापन नामका रोग पाया जाने लगा है. जिसमें कुत्तापन जितना ज्यादा वह उतना ही महान, उतना ही बङा और उतना ही उंचा. जिसमें कुत्तापन नहीं है वह बेचारा गरीब बनकर कुत्तों सी जिन्दगी जी रहा है. मुझे तो लगता है जल्दी ही कुत्तो को पूरा सम्मान मिलने लगेगा क्योंकि लगभग सभी क्षेत्रों मे उनका वर्चस्व स्थापित हो रहा है.



आज-कल तो कुत्तों के लिये स्वर्णिम युग चल रहा है. आज यदि शोले जैसी पिक्चर बनायी गयी तो वही वीरू जो कहता था--"कुत्ते मैं तुम्हारा खून पी जाउंगा" अब बदल सा जायेगा. आज तो वीरू भी उतना ही कुत्ता है जितना कि गब्बर और एक कुत्ता कभी भी दूसरे कुत्ता का खून नहीं पीता. आज का वीरू प्यार से कहेगा---" कुत्ते...इधर आओ कुत्ते. बैठो...मेरे पास बैठो. डरो मत मैं कुछ नहीं करुंगा क्योंकि मैं भी तुम्हारी तरह एक आम कुत्ता हूं...तुम्हारे ही जाति का, तुम्हारे ही मजहब का कुत्ता. दल बदल जाने से कुत्ता शेर नहीं हो जाता डरो मत. अब किस बसंती के लिये मैं तुमसे लङूं. अब तो बसंती भी कुतिया बन गयी है. हम कुत्ते तो कमसे कम बफ़ादार होते हैं कुतिया तो अक्सर बेवफ़ा ही होती है. उसके लिये वीरू और गब्बर में क्या फ़र्क...?"



अब तो शोले की जगह हथगोले चलते हैं कुत्तों की तरह जीनेवाले लोग कुत्तों की तरह विचारवान लोगों से लङ रहे है और वह युद्ध-भूमि है नक्सलवाद, मंहगायी, भ्रष्टाचार. मंहगाइ डायन बन चुकी है, भ्रष्टाचार दीमक, आतंकवाद पिशांच बनी हुई है और नक्सलवाद तो सिर्फ़ गले रेतना जानती है. इस सब के चक्कर में आम जनता कुत्तों की तरह जीने के लिये वाध्य है. अब तो स्थिति ऐसी आ चुकी है कि गुरु-शिष्य परम्परा में भी जब चेला गुरू को "कुक्कुराय नमः " कहकर पांव छूएंगे और गुरू "श्वानो भवः " का आशिर्वाद देंगे.अब लङकियां अपने ब्वायफ़्रेंड के बारे में कहा करेंगी---"वो देखने में बहुत ही अच्छा है बिल्कुल कुत्ते की तरह और वह कुत्ते की तरह मुझे प्यार भी बहुत करता है." औरतें अपने पति से कहा करेंगी---"देखोजी मेरा दामाद बिल्कुल कुत्ते की तरह होना चाहिये जैसे तुम हो.." और पति भी अपनी पत्नी को वचन देगा कि चाहे जो भी हो जाये वह कुत्ते की तरह वफ़ादार बना रहेगा.



क्या जमाना आ गया है. शेरों को संरक्षण दिया गया और संख्या बढ रही है कुत्तों की. शेर तो लुप्त होते जा रहे हैं. अब तो जंगलों में भी वह सुरक्षित नहीं है.समाज और साहित्य ने तो शेरों को पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया है. मैं तो कहता हूं बहुमत के आधार पर कुत्ता को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दे दिया जाये. हर कोई कुत्तों की तरह भोंकना चालू करे फ़िर तो सबकी मौज है. चलिये खुद से शुरुआत करते है.".....भौं...भौ............" श्रीमतीजी ने बीच में ही टोका----" क्या हो गया जी कुत्ते की तरह भौंक क्यों रहे हैं....मैंने ऐसी कौन सी गलती कर दी जो अपने असली रुप में आ गये ?"





क्रमशः