Monday, December 6, 2010

मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-१५ (व्यंग्य)

मैंने कहा----"मैं........कुत्ते की तरह भौंक रहा था...? " वह मुस्कुरते हुए बोली----" और नहीं तो क्या....मां कहती है औरतों का जीवन उसी दिन सफ़ल माना जाता है जिस दिन उसका पति कुत्तों की तरह भौंकने लगे...क्योंकि बार्किंग डोग सेल्डम बाइट इफ़ ही बार्क्स ही विल नोट बिट यू. नाव यू आर सेफ़ अन्ड सकसेस्फ़ुल...". मुझसे रहा न गया ----"मुझे पागल मत करो.."

----"मजाक छोङो जी आपने तो सुहागरात में ही कहा था कि आप मेरे प्यार मे पागल हो.."

----" तो...? तो क्या मैं पागल था..?"

-----"नहीं जी, उस दिन तो आपने झूठ बोला था....लेकिन मेरे इतने साल के तपस्या से आज वह बात सच हुई है"

-----"....हां...तब मैं तुम्हारे प्यार में पागल था....और आज...." श्रीमतीजी ने झट से मेरे मुंह पर हथेली रख दी.

-----"कुछ भी मत बोलो मैं जानती हूं कि सभी मर्द महबूबा के प्यार में पागल हो जाते हैं. लेकिन सच का पागल तो वही होता है जो महबूबा से शादी कर लेता है.और एक बार शादी करने के बाद तो वह बेचारा पागल कम्पलीट पागल हो जाता है....पेरफ़ेक्सन आ जाता है.......प्यार में इससे बढकर पागलपन क्या होगा.." अब मुझसे न रहा गया.

-----" देखो..तुम ठीक से बात करो...प्यार की चासनी लगा कर मीठी छुरी से गले मत रेतो....मैं अपनी सुहागरात के हर स्टेटमेंट को वापस लेता हूं क्योंकि वह रात मेरे लाईफ़ की सबसे अशुभ रात थी और तुम मीडिया की तरह उस रात की हर बात को तोङ-मरोङकर पेश करती हो."

----"भला मैं ऐसा क्यों करुंगी."

----" क्योंकि मैं भ्रष्टाचार से पैसे कमाकर भरा हुआ सूटकेश नहीं देता.."

----" भूख लगने पर तो तुम जानवरों का चारा भी खा जाते हो मैं नहीं जानती क्या.."

----" कब खाया मैं जानवरों का चारा...?..कोई यकीन नहीं करेगा...सभी जानते हैं कि मैं कितना ईमानदार हूं.

----" सुहागरात से ही ऐसा बोलते रहे हो...जबकि ये नहीं जानते कि तुम्हारी इमानदारी पर विश्वास करके ही मैंने तुम्हें दिल दिया था.. नेताओं की तरह घरियाली आंसू बहाकर कितने वादे किये थे तुमने....."

------" वादे किये थे तो क्या...."

-------" जानती हूं सारे वादे चुनावी थे....कौन सी तुम्हारी सरकार गिरनेवाली है जो वादे याद रक्खोगे."



वह जोली मूड में थी---ये औरतों का एक विशेष मूड होता है जिसमें वह भीतर से खुश होती है पर बाहर से खुश न होने का नाटक करते हुए एमोशनल अटेक करती है ताकि वह और कुछ हासिल कर सके...ऐसे में यदि पुरुष थोङा भी इधर-उधर करे तो इमोसनल अत्याचार का आरोप लगाती है.



मध्यान्तर----

10 comments:

संजय भास्‍कर said...

वादे किये थे तो क्या
जानती हूं सारे वादे चुनावी थे.
.........वर्तमान हालात पर सटीक व्यंग्य
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए ...बधाई

कडुवासच said...

... kyaa baat hai ... shaandaar-shaandaar !!!

monali said...

Emotional Atyachar.. :D

Khair atyachar aap par ho raha h aur padh k maze hum log le rahe hain.. jhelte rahiye ye chashni me lipte pattharo ka prahar :)

Dr.J.P.Tiwari said...

Bahut hi gahra vyang. Uchaiyon ko sanparsh karte huye gudgudaane ke saath hi saath sochne ko majboor karta saargarbhit post. Thanks

vijai Rajbali Mathur said...

सरकारी नौकरी करते हुए सरकार की कड़ी आलोचना करने का सरल उपाय .

केवल राम said...

अपने इस क्रम को जारी रखिये ...अच्छा सन्देश सामने आएगा ...शुभकामनायें

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही गहरा व्यंग्य

निर्मला कपिला said...

रोचक पोस्ट जारी रखिये। शुभकामनायें।

माधव( Madhav) said...

बहुत ही गहरा व्यंग्य

Akshitaa (Pakhi) said...

आपने तो बहुत सुन्दर व्यंग्य लिखा..बधाई.
'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.