कुत्तों का नसीब तो देखिये कि खूबसूरत मैडम लोग उसे कारों में अपने साथ घुमाती हैं और मुफ़्त में पप्पी भी देती है.अकेले होते हुए भी वह गृहस्थ जीवन का आनन्द उठाता है.आजकल तो ईंसानों में भी कुत्तापन नामका रोग पाया जाने लगा है. जिसमें कुत्तापन जितना ज्यादा वह उतना ही महान, उतना ही बङा और उतना ही उंचा. जिसमें कुत्तापन नहीं है वह बेचारा गरीब बनकर कुत्तों सी जिन्दगी जी रहा है. मुझे तो लगता है जल्दी ही कुत्तो को पूरा सम्मान मिलने लगेगा क्योंकि लगभग सभी क्षेत्रों मे उनका वर्चस्व स्थापित हो रहा है.
आज-कल तो कुत्तों के लिये स्वर्णिम युग चल रहा है. आज यदि शोले जैसी पिक्चर बनायी गयी तो वही वीरू जो कहता था--"कुत्ते मैं तुम्हारा खून पी जाउंगा" अब बदल सा जायेगा. आज तो वीरू भी उतना ही कुत्ता है जितना कि गब्बर और एक कुत्ता कभी भी दूसरे कुत्ता का खून नहीं पीता. आज का वीरू प्यार से कहेगा---" कुत्ते...इधर आओ कुत्ते. बैठो...मेरे पास बैठो. डरो मत मैं कुछ नहीं करुंगा क्योंकि मैं भी तुम्हारी तरह एक आम कुत्ता हूं...तुम्हारे ही जाति का, तुम्हारे ही मजहब का कुत्ता. दल बदल जाने से कुत्ता शेर नहीं हो जाता डरो मत. अब किस बसंती के लिये मैं तुमसे लङूं. अब तो बसंती भी कुतिया बन गयी है. हम कुत्ते तो कमसे कम बफ़ादार होते हैं कुतिया तो अक्सर बेवफ़ा ही होती है. उसके लिये वीरू और गब्बर में क्या फ़र्क...?"
अब तो शोले की जगह हथगोले चलते हैं कुत्तों की तरह जीनेवाले लोग कुत्तों की तरह विचारवान लोगों से लङ रहे है और वह युद्ध-भूमि है नक्सलवाद, मंहगायी, भ्रष्टाचार. मंहगाइ डायन बन चुकी है, भ्रष्टाचार दीमक, आतंकवाद पिशांच बनी हुई है और नक्सलवाद तो सिर्फ़ गले रेतना जानती है. इस सब के चक्कर में आम जनता कुत्तों की तरह जीने के लिये वाध्य है. अब तो स्थिति ऐसी आ चुकी है कि गुरु-शिष्य परम्परा में भी जब चेला गुरू को "कुक्कुराय नमः " कहकर पांव छूएंगे और गुरू "श्वानो भवः " का आशिर्वाद देंगे.अब लङकियां अपने ब्वायफ़्रेंड के बारे में कहा करेंगी---"वो देखने में बहुत ही अच्छा है बिल्कुल कुत्ते की तरह और वह कुत्ते की तरह मुझे प्यार भी बहुत करता है." औरतें अपने पति से कहा करेंगी---"देखोजी मेरा दामाद बिल्कुल कुत्ते की तरह होना चाहिये जैसे तुम हो.." और पति भी अपनी पत्नी को वचन देगा कि चाहे जो भी हो जाये वह कुत्ते की तरह वफ़ादार बना रहेगा.
क्या जमाना आ गया है. शेरों को संरक्षण दिया गया और संख्या बढ रही है कुत्तों की. शेर तो लुप्त होते जा रहे हैं. अब तो जंगलों में भी वह सुरक्षित नहीं है.समाज और साहित्य ने तो शेरों को पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया है. मैं तो कहता हूं बहुमत के आधार पर कुत्ता को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दे दिया जाये. हर कोई कुत्तों की तरह भोंकना चालू करे फ़िर तो सबकी मौज है. चलिये खुद से शुरुआत करते है.".....भौं...भौ............" श्रीमतीजी ने बीच में ही टोका----" क्या हो गया जी कुत्ते की तरह भौंक क्यों रहे हैं....मैंने ऐसी कौन सी गलती कर दी जो अपने असली रुप में आ गये ?"
क्रमशः
10 comments:
श्वान महिमा संस्कृत के श्लोकों में भी वर्णित है-बचपन में एक श्लोक पढ़ा था-
"काक चेष्टा,वाको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च
अल्पाहारी,गृह त्यागी ,विद्यार्थी पञ्च लक्षणं"
इस में विद्यार्थियों को कुत्ते की तरह नींद लेने को कहा गया है.
लेकिन आज के परिद्रश्य में आपने जो व्यंग्य चित्र उपस्थित किया है वह बहुत ही सामयिक है.
सादर
बिलकुल ठीक व्यंग्य किया है .आपको याद ही होगा पूर्व पी .एम् .राजीव जी ने राम जेठमलानी जी को जब कुत्ता कहा था तो उन्होंने जवाब दिया था कि कुत्ता चोर को देख कर ही भोंकता है.
बड़ी तीखी -तीखी बातें आपने बड़े आराम से सहज रूप में प्रस्तुत कर दीं.धन्यवाद.
ये तो श्वान लघु पुराण हो गया.
बहुत अच्छे, जारी रखिये ...
" क्या हो गया जी कुत्ते की तरह भौंक क्यों रहे हैं....मैंने ऐसी कौन सी गलती कर दी जो अपने असली रुप में आ गये ?"
... kyaa baat hai ... dhamaakaa jaaree rakhen !!!
बहुत ही सामयिक है.
रोचक लगता है व्यंग मे भी बहुत कुछ गम्भीर समझने लायक है। अब तो ये व्यंग पुस्तक का रूप बन जायेगा। बधाई।
@nirmala kapila.
maa..अब तो ये व्यंग पुस्तक का रूप बन जायेगा..aapke ek aise hi prerak comments se aashirvaad paakar maine pahli poetry book...maa ne kahaa thaa...publish kar liya hai...aapke ashirvaad se ye bhi ek vyangya upanyaas kaa rup jarur legi.
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बहुत ही तीखा व्यंग है इंसानों में छुपे कुत्तेपन पर। सही कहा आपने, जिसका संरक्षण करते है वो घट रहा है और जो नहीं होना चाहिए, वो बढ़ रहा है। बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए ।
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वर्तमान हालात पर सटीक व्यंग्य !
साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
accha vyang hai aapka..
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