यौन-रण में वीर जैसा
मैं भी होता हूं स्खलित
जानवर जैसा ही कामुक
उनके जैसा ही पतित
एड्स से सबको बचाने
बिंदास कंडोम बोलता हूं.
हां मैं कंडोम बेचता हूं.
है जिन्दगी लंबी बहुत
रोटी सबकी है जरुरत
प्यार -मोहब्बत -सेक्स
तो है इंसां कि फ़ितरत
तेरे जैसा अश्लील मैं भी
कविदिल की राज खोलता हूं
हां मैं कंडोम बेचता हूं.
लानत है उस लेखनी पर
जो कलम सच को न उगले
काम गर आजाद हो तो
एड्स दुनियां को न उगले
कंडोम लगा मैं काम के लिये
निर्भय अवसर ढूंढता हूं
हां मैं कंडोम बेचता हूं.
10 comments:
... bahut khoob ... shaandaar !!!
मकसद तो समझ आ गया साहब, पर कविता का मतलब समझने में थोड़ी मुश्किल हो रही है.
maksad aids awareness hai our matlab sex expectations our reality ko chhipaana other barriars ke chalte yah bimaari bhayaavah rup le rahi hai....main khule sex our fear factor ko hataate hue prostitutin ko maanyataa dene ke paksh me hun...ise rape our chhedkhaani jaisi samasyaa kaa bhi samaadhaan ho sakta hai.
kaam kaa arth seedhe tour per sex se hai.
अजीब सी रचना, पहली बार ऐसी कविता पढ़ी है...
सुन्दर...
मैंने अपना पुराना ब्लॉग खो दिया है..
कृपया मेरे नए ब्लॉग को फोलो करें... मेरा नया बसेरा.......
इसका प्रचार भी जरूरी है।
Very bold step u took in takin da decision of publishing dis poem over ur blog n i salute ur effort.. very few ppl have dis much courage
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
जरुरी स्पष्टवादीता. बहुत खूब...
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