Wednesday, October 12, 2011

मेरी कविता -2

सुबह ओंस की बूंदों से ,सबसे पहले मिलती है

सुनहली किरणों मे तो वह फ़ूलों सी खिलती है.

सूरज के संग आसमान में चढती है मेरी कविता

नये दिवस की नई कहानी गढती है मेरी कविता



रोज गगन में छू लेती है ऊंचाई की नयी बुलन्दी

जब भी होती है दोपहर में रोशनी से जुगलबन्दी

पूरी ताकत मेहनतकश में भरती है मेरी कविता

सूरज की गर्मीं से भी कब डरती है मेरी कविता.


न ही गिर जाने का दुख नहीं ढल जाने का गम

कर देती थकान वह पल भर में ही कितना कम

सांझ के अंधियारे में दीप सजाती है मेरी कविता

मुरझाये चेहरों पर संगीत बजाती है मेरी कविता.



3 comments:

Satish Saxena said...

आनंद आ गया ....
शुभकामनायें !

Pratik Maheshwari said...

कौन है ये कविता? :)

Unknown said...

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