रातों की तन्हाई से शिकवे है मुझे,
उजाले भी अब साजिश नजर आते है.
चांदनी जो अक्सर बादलों में छुपी होती है,
जब उसे देखता हूँ तो तारे मुस्कुराते है.
कहती थी खूब है दुनियां की हर सूरत ,
फ़िर क्यों इंसान यहाँ पत्थर बन जाते है.
कहते हैं लोग कि हर फूल बहुत प्यारा है,
दिलों पे फिर वो क्यों नस्तर चुभाते है .
चाहता था मैं भी कि खुश होके जिन्दा रहूँ,
गमों में मंजर मगर दिल को दुखाते है.
यों मार चुके है वो पहले भी कई बार मुझे ,
मगर हर बार मेरी मौत पे रोने को आते है .
15 comments:
sir bahut sundar bhaav bas pehli pankti me saajish nazar aata hai ...atpata laga kyunki saajish nazar aati hai...aisa likha ho to jyada badhiya...
समाज और देश में फैले आतंक और भय तथा अविश्वास को दर्शाती कविता / सराहनीय प्रस्तुती /
हर रात के बाद सुबह होती है... हर निराशा के बाद इक नई उम्मीद जगती है....
गजलनुमा कविता में भाव बहुत अच्छे है , अरविन्द जी
...बेहतरीन रचना,बधाई !!!
वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
यों मार चुके है वो पहले भी कई बार मुझे ,
मगर हर बार मेरी मौत पे रोने को आते है .
bahut pyari rachana hai................
क्या बात है दोस्त.. बहुत ही जबरदस्त। बड़े दिनों के बाद अच्छी रचना पढ़ी।
कहते हैं लोग कि हर फूल बहुत प्यारा है,
दिलों पे फिर वो क्यों नस्तर चुभाते है .
लाजवाब! खुशी के साथ दर्द भी समाया है दिल मे, अपनी गज़ल मे इसका एहसास दिला जाते हैं। सुन्दर्। और हमेशा की तरह जय जोहार्………
यों मार चुके है वो पहले भी कई बार मुझे ,
मगर हर बार मेरी मौत पे रोने को आते है .
वाह ! शानदार प्रस्तुति ....अच्छा लिखते है .....यह रचना वाकई लाजवाब है ......सभी पंक्तिया असरदार
कहती थी खूब है दुनियां की हर सूरत ,
फ़िर क्यों इंसान यहाँ पत्थर बन जाते है.
यही दुनिया का चलन है...खूबसूरत अभिव्यक्ति
वाह ! शानदार प्रस्तुति ....अच्छा लिखते है .....यह रचना वाकई लाजवाब है ......सभी पंक्तिया असरदार
यों मार चुके है वो पहले भी कई बार मुझे ,
मगर हर बार मेरी मौत पे रोने को आते है .
वाह बहुत खुब ,अच्छी प्रस्तुति...
यों मार चुके है वो पहले भी कई बार मुझे ,
मगर हर बार मेरी मौत पे रोने को आते है .
ये तो इस दुनिया का दस्तूर है ... वो दस्तूर निभाने ही तो आते हैं ... अच्छा लिखा है भाई ...
Post a Comment