Sunday, May 9, 2010
जख्म
"लो पहले इससे अपना बदन ढक लो" कहते हुए ठाकुर ने उसके फ़टे हुए कपङे से निकल आये अंगों पर एक तौलिया डाल दिया.फ़िर उसके एक गाल पर अपना हाथ रखकर अपनी ऊंगलियों से उसके आंसू पोछते हुए कहा-"जानवर था वह जो इतनी प्यारी कोमल बच्ची के साथ बलात्कार किया, छी......,लेकिन ठाकुर की हवेली में तुम सुरक्षित हो." वह सोच रही थी कि कुछ लोग ठाकुर की तरह अच्छे भी होते हैं.वह ठाकुर के साथ उसकी हवेली में सचमुच सुरक्षित महसुस कर रही थी.तभी ठाकुर के दो-तीन दोस्त आ गये.कुछ देर के बाद ठाकुर के कक्ष से वह निर्वस्त्र होकर कराहते हुए बाहर निकली.बाहर के बगीचे में एक जख्मी बिल्ली के उपर कई सारे गिद्ध झपट्टे मार रहे थे.वह भी अपने स्वर में चिल्ला रही थी.आवाजें अलग-अलग पर जख्म एक सा था और दर्द भी.
7 comments:
भेड़िए हर जगह पाए जाते हैं
हर रुप में मिलते हैं।
लघुकथा के माध्यम से आपने
सच्चाई को सामने रखा है
आभार
ऐसे जख्म हर रोज कई-कई लोगों को मिल रहे हैं।
दुर्भाग्य है कि विकासशील यह देश, विकसित होने के सपने देख रहा है।
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आपने सच्चाई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है ! बहुत ही दुःख होता है ऐसे हादसे के बारे में सुनकर!
... अब क्या कहें, सब कुछ तो बयां ही है ... हैवान और हैवानियत का चारों ओर बोलबाला है !!!
निःशब्द हूं!
दुर्भाग्य है कि विकासशील यह देश,
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