इस कदर व्यस्त है जिन्दगी चाय भी पीता हूं किस्तों में.
काटकर अपने चंद टुकङों को बांट डाला है मैंने रिश्तों में.
बचपन में भी एक बचपन था जवानी में भी एक बचपन था .
छिपा रखा है मैंने लम्हों को वक्त कटता है उनकी गस्तों में.
जिसने पकङा था उंगलियां मेरी कबका छोङा है मेरे हाथों को
जो मिले थे कभी चौराहे पर भुला दिया है उनको रास्तों में.
महबूब के हाथों को पराठा खाकर पढता हूं अब नक्सली खबरें
मां के हाथों का मयस्सर ही नहीं रोटी जो मिलती थी नास्तों में.
मेरे घर की दीवारों से भी गंध आती है आजकल ईर्ष्या की.
मुस्कुराहट भी इतनी मैली है ईत्र मिलाता हूं अब गुलदस्तों मे.
रोने के लिये भी अब वक्त नहीं बचपन को खुदी ने मारा है.
कुछ न पाकर भी अरविंद खुश है मिल गया है वो फ़रिश्तों में.
इस कदर व्यस्त है जिन्दगी चाय भी पीता हुं किस्तों में.
काटकर अपने चंद टुकङों को बांट डाला है मैंने रिस्तों में.
11 comments:
waaaaaah !
वाह! बहुत ही सुन्दर! कहीं कहीं कुछ गलतिय है, सुधार लें!
इस कदर व्यस्त है जिन्दगी चाय भी पीता हुं किस्तों में.
काटकर अपने चंद टुकङों को बांट डाला है मैंने रिस्तों में.
waah........bahut hi sundar alfaaz.........sundar bhaav.
इस कदर व्यस्त है जिन्दगी चाय भी पीता हुं किस्तों में.
काटकर अपने चंद टुकङों को बांट डाला है मैंने रिस्तों
Aisi wyast zindagi me jab khalipan aata hai,to shayad wo aurbhi bhayankar hota hai!
बहुत खूब..
बहुत शानदार...
बहुत जानदार...।
chay bhi kishton me... bahut sare ehsaas hain in kishton me
रोने के लिये भी अब वक्त नहीं बचपन को खुदी ने मारा है.
कुछ न पाकर भी अरविंद खुश है मिल गया है वो फ़रिश्तों में
....बहुत सुन्दर,प्रसंशनीय !!!
waah badi hi shaandaar rachna
जिन्दगी चाय भी पीता हुं किस्तों में.
बहुत खूब, लाजबाब !
रोने के लिये भी अब वक्त नहीं बचपन को खुदी ने मारा है.
कुछ न पाकर भी अरविंद खुश है मिल गया है वो फ़रिश्तों में.
Ek Vebfa ke Liye kitne khoobsurat Alfaax Likhe Hai, Padhkar Ashko Me Aansoo Chalak Aaye....
रोने के लिये भी अब वक्त नहीं बचपन को खुदी ने मारा है.
कुछ न पाकर भी अरविंद खुश है मिल गया है वो फ़रिश्तों में.
Ek Vebfa ke Liye kitne khoobsurat Alfaax Likhe Hai, Padhkar Ashko Me Aansoo Chalak Aaye...
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