पता चल गया होता
कि तू बेटी है
तो दफ़न कर दी जाती
भ्रुण में ही.
या पैदा होने के बाद
बचपन को खंरोच दिया जाता
और साट दी जाती
जलते हुए चुल्हे और काली बरतनों से.
जवान होते ही
बांध दी जाती
मर्यादा के खूंटे से
या फ़िर
जला दी जाती
दहेज के बदले इस तरह
की श्मशान तक
अर्थी के बदले धूआं पहुंचता.
फ़िर भी बच जाती तो
सुला दी जाती जीते-जी
संबंधों से निकले शूलों पर.
फ़िर भावनाओं
और तुम्हारे शरीर के साथ
हजारो बार खेला जाता.
उन तथाकथित मर्दों के हाथों
जो आज भी नहीं समझते
जो औरत पैदा हो रही है
वह सिर्फ़ दुनियां की
बेटी ही नहीं
मां भी है.
4 comments:
महिला दिवस पर सत्य कविता.
महिला दिवस की शुभकामनाएं.
सुंदर ....सार्थक ख्याल ...एक प्रभावी रचना
सही लिखा है जनाब.. काश ऐसा लोग समझ पाते..
वाह..क्या खूब लिखा है आपने। लाजवाब है...
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