मुझ से दूर
गगन-पटल पर
अपनी चाल से चलते हुए
जग के तम को निगलते हुए
हल्की सी रोशनी लिये
गुलाब की पंखुङियों सी
हंसनेवाली.
दाग होते हुए भी
खूबसूरत
बादलों से घिरकर भी
निर्मल
पवित्र फ़िर भी मादक
ऎसा स्तित्व कि मिट नही सकता।
फ़िर भी
चांद और तुम
दोनों को
मेरे होने या ना होने
का अहसास भी नही...?
9 comments:
बहुत बढ़िया प्रवाहमयी......."
सुन्दर प्रवाह और अंत में निराशा का भाव मानसिक व्यथा को उजागर करता है ।
फ़िर भी
चांद और तुम
दोनों को
मेरे होने या ना होने
का अहसास भी नही...?
Behad sundar rachna jo antme ek tees chhod deti hai!
दाग होते हुए भी
खूबसूरत
बादलों से घिरकर भी
निर्मल
पवित्र फ़िर भी मादक
वाह!क्या बात कह दी अरविंद जी,
हम तो आपके लेखन के कायल हैं,
आभार
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
फ़िर भी
चांद और तुम
दोनों को
मेरे होने या ना होने
का अहसास भी नही...?
waqay me bahut sundar
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
bahut hi sahaj rachna hai....
अच्छी अभिव्यक्ति !!
....bahut sundar, prabhaavashali rachanaa!!!
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