शेर भले ही जंगल का राजा था लेकिन उसकी मुश्किलें भी कम नहीं थी.राजा भले ही कोई बने ,प्रजातंत्र में चलती तो प्रजा की ही है...और जब प्रजा जानवर हो तो राजा को पङेशानी तो होगी ही.शेर पङेशान था.विपक्ष में बैठे जानवरों के वार को सहते-सहते थक गया था। पशुमत शेर के पक्ष में लेकिन कुटिलता विपक्ष की ओर,सद्भावना शेर के पक्ष में लेकिन धुर्तता विरोधी खेमें में.....शेर करे तो क्या करे...?.यही हाल विपक्ष का भी.शेर के शरीर का तो खून ही राजसी था.विपक्ष को कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा था.तलवार से मुकाबला करो तो भी शेर आगे, षङयंत्र करो तो भी शेर विजयी, विद्वता में भी शेर किसी से कम न था.....आखिर शेर को हरायें कैसे? अंत में विपक्ष ने शेर की कमजोरी पकङ ही ली।
एक लोमङी ने विपक्ष के नेता से कहा "महोदय, शेर दिलदार है, महान है, स्वाभिमानी है, उदार है..........".नेता ने टोका -"मेरे शत्रु की प्रशंसा कर रही हो?" लोमङी ने जबाब दिया"-नहीं हुजूर.....मैं शेर की कमजोरी बता रही हूं.उसके स्वाभिमान पर चोट करो. वह अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिये दरियादिली दिखायेगा और महान कहलाने के लिये उदारतापूर्वक गद्दी छोङ देगा.".विपक्ष के नेता ने ऐसा ही किया.शेर ने गद्दी छोङ दिया.यह खबर जंगल में लगे आग की तरह फ़ैल गयी।
जैसे ही यह समाचार हाथी को मिला वह चिंतित हो गया.वह शेर के मांद तक पहुंचा.लेकिन शेर जो ठान ले उसे करने से कौन रोक सकता है?.शेर के पास भी तेज दिमाग था,वह पानी के टंकी पर चढ गया,यह सोचकर की हाथी वहां नहीं चढ पायेगा. हाथी भी आखिर हाथी था उसने अपनी ऊंचाई का फ़ायदा उठाकर शेर को नीचे उतारा.समझाया-"राज नही करना है तो मत कर.आराम कर. मस्ती से देख,राज तो चलेगा ही।
शेर आराम करे और राज चलता हुआ देखे, यह कैसे हो सकता है?.......और शेर को छोङकर क्या लोमङी राज चलायेगी ? अंत में शेर ने अपनी खाल बदल ली.वेश- भूषा भी पूरी तरह बदल डाला,बिना किसी को बताये. वह नये रुप में फ़िर से राज करने लगा.कुर्सी पर बैठते ही उसने धीरे से अपने मंत्री को कहा"लोमङी कितना भी चालाक हो जाये जंगल का राजा शेर ही होता है
10 comments:
आपकी कहानी में दम है!
बहुत ही सुन्दर, शानदार और दमदार कहानी लिखा है आपने! आखिर शेर हमेशा से जंगल का राजा रहा है और हमेशा रहेगा भी और उसकी जगह वो लोमड़ी हो या कोई और कभी नहीं ले सकता!
अच्छा व्यंग है ... मजेदार ...
bahut khub
badhai aap ko ios ke liye
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
शेर की कहानी है बहुत दिलचस्पी से पढ़ी।
लोमड़ी स्त्रीलिंग है , सुधार कर लें ।
अरे वाह! बहुत बढिया कहानी लिखी है।
लोमड़ी को तो आपकी कहानी बहुत दम नजर आया/
शेर आराम कर रहा है।
हा हा हा बहुत बढिया, इस कहानी में तो
मुझे सरदार जी भी नजर आ रहे है।
कहानी कि लम्बाई - चोराई बेशक काम हो, लेकिन है गंभर भाव लेकर....दमदार...इस गति को बरक़रार रखें....
शरदजी आपके कहे अनुसार मैंने सुधर कर दिया है.
मैं जुड़ी हुई जमीन से
किस तरह यह नाता तोडू ,
अम्बर की चाहत में बतला
किस तरह यह दामन छोड़ू ।
Wah! Kya damdar vyang hai!
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