("अब नहीं चाहिये मधुशाला" पर प्रेमिका की रचना.)
मैं तो हूं एक निर्मल धारा
कैसे पिलाऊं मदिरा की प्याला.
पता नहीं मेरा यह यौवन
तुमको क्यों लगता मधुशाला.
निर्दोष हूं मैं,हूं अल्हङ सी
बस चाहूं तेरी प्यास बुझा दूं.
मैं समेट यौवन की धारा
बन जाऊं एक छोटी प्याला.
एक प्याले में पूरी मधुशाला
मैं चाहूं कि तुझे पिला दूं.
पूरी मधुशाला एक प्याले में
लेकर क्या तुम पी सकते हो ?
एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ?
है प्रकृर्ति का यह अमृत रस
अर्पित है लो पी लो तुम,
मरकर भी अब जी लो तुम.
13 comments:
पूरी मधुशाला एक प्याले में
लेकर क्या तुम पी सकते हो ?
एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ?
anuttarit prashn, bahut badhiyaa
एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ?
..........बहुत खूब, लाजबाब !
है प्रकृर्ति का यह अमृत रस
अर्पित है लो पी लो तुम,
मरकर भी अब जी लो तुम.
Poori rachana behad sundar hai!
कमाल है जी !
रत्नेश
...bahut sundar, badhaai !!!
पूरी मधुशाला एक प्याले में
लेकर क्या तुम पी सकते हो ?
एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ..
Vaah ... aanand aa gaya aaoki rachna padh kar .. laybadh .. mahakti huyi ..
प्रश्न-उत्तर हो गया अब देखें इन दो कविताओं के आगे आप क्या लिखते हैं..!
bahut khoob arvind babu.......
बढ रहा है जीवन का झंझावात,
इसलिए जाम से काम चला रहे हैं
पूरी मधुशाला नही पी पाएगें कभी
तो एक बोतल से काम चला रहे हैं
बहुत अच्छी रचना, एकदम झकास
अच्छा लिखा ।
वाह बहुत खूब लिखा है आपने! लाजवाब! बधाई!
वाह अरविन्द जी।
jhaa saahb yaad krne ke liyen bhut bhut shukriyaa aapki slaah ke mutaabiq men ab typing mistack sudhaarne ki koshishon men lgaa hun ummid he aage bhi aap maargdrshn krte rhenge. akhtar khan akela kota rajasthan
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