Wednesday, April 21, 2010

पूरी मधुशाला पी लो तुम.

("अब नहीं चाहिये मधुशाला" पर प्रेमिका की रचना.)

मैं तो हूं एक निर्मल धारा
कैसे पिलाऊं मदिरा की प्याला.
पता नहीं मेरा यह यौवन
तुमको क्यों लगता मधुशाला.

निर्दोष हूं मैं,हूं अल्हङ सी
बस चाहूं तेरी प्यास बुझा दूं.
मैं समेट यौवन की धारा
बन जाऊं एक छोटी प्याला.
एक प्याले में पूरी मधुशाला
मैं चाहूं कि तुझे पिला दूं.

पूरी मधुशाला एक प्याले में
लेकर क्या तुम पी सकते हो ?
एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ?

है प्रकृर्ति का यह अमृत रस
अर्पित है लो पी लो तुम,
मरकर भी अब जी लो तुम.

13 comments:

रश्मि प्रभा... said...

पूरी मधुशाला एक प्याले में
लेकर क्या तुम पी सकते हो ?
एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ?
anuttarit prashn, bahut badhiyaa

संजय भास्‍कर said...

एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ?


..........बहुत खूब, लाजबाब !

kshama said...

है प्रकृर्ति का यह अमृत रस
अर्पित है लो पी लो तुम,
मरकर भी अब जी लो तुम.
Poori rachana behad sundar hai!

aarya said...

कमाल है जी !
रत्नेश

कडुवासच said...

...bahut sundar, badhaai !!!

दिगम्बर नासवा said...

पूरी मधुशाला एक प्याले में
लेकर क्या तुम पी सकते हो ?
एक प्याले से प्यास बुझाकर
क्या तुम जीवन जी सकते हो ..

Vaah ... aanand aa gaya aaoki rachna padh kar .. laybadh .. mahakti huyi ..

देवेन्द्र पाण्डेय said...

प्रश्न-उत्तर हो गया अब देखें इन दो कविताओं के आगे आप क्या लिखते हैं..!

Harshvardhan said...

bahut khoob arvind babu.......

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बढ रहा है जीवन का झंझावात,
इसलिए जाम से काम चला रहे हैं
पूरी मधुशाला नही पी पाएगें कभी
तो एक बोतल से काम चला रहे हैं

बहुत अच्छी रचना, एकदम झकास

अरुणेश मिश्र said...

अच्छा लिखा ।

Urmi said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने! लाजवाब! बधाई!

शरद कोकास said...

वाह अरविन्द जी।

आपका अख्तर खान अकेला said...

jhaa saahb yaad krne ke liyen bhut bhut shukriyaa aapki slaah ke mutaabiq men ab typing mistack sudhaarne ki koshishon men lgaa hun ummid he aage bhi aap maargdrshn krte rhenge. akhtar khan akela kota rajasthan