जंगल का राजा शेर ही होता है लेकिन शेर के लिये भी वेश-बदलकर राज करना संभव नहीं होता.उसने अपना वेश बदल तो लिया पर राज-काज चालु नहीं रख पाया.अग्यातवास में रहकर राज-काज की जानकारी लेते रहना...उसे उचित लगा.
कुछ दिनों के बाद अचानक एक बूढा शेर सत्ता की कुर्सी पर आसीन हुआ.उसने स्वयं को पुर्व के राजा शेर का उत्तराधिकारी बताया.अपने दो प्रमुख चमचों भेङिया और सांप को सबसे महत्वपुर्ण मंत्रालय की चाबी थमा दिया. जब पशु-संसाधन और गृह मंत्रालय जैसे विभाग भेङिये को और रक्षा मंत्रालय का प्रभार सांप को सौंप दिया जाये तो..........जिसके एक डंक से बङे से बङे जानवर स्वर्गलोक सिधार जाते....वह रक्षा क्या करता. गीदङ भी पशु-संसाधन का उपयोग अपनी सेवा में करता रहा.दोनों चमचों की चांदी हो गयी.जंगल के सभी जानवर परेशान रहने लगे.रोज ही वह सांप किसी न किसी को डसता और भेङिया सभी जानवरों का चारा चट कर जाता.
तभी एक दिन एक तोता अग्यातवास में रह रहे शेर के पास गया और कहने लगा-"हुजूर, सभी जानवर भेङिया और सांप को दोषी मान रहे हैं लेकिन मुझे लगता है महाराज शेर ही असली गुनाहगार हैं". शेर ने पुछा- " कैसे....?".तोता ने कहा-"हुजूर उनमें राजा के लक्षण नहीं दिखते,न ही उनके चेहरे में तेज है, न ही शेर वाली गुर्राहट और न ही वीरता के कोई चिह्न.
अगले ही दिन अग्यातवासी शेर ने अपना प्रतिनिधि हाथी को राजा शेर के मांद में भेजा. मांद में थोङी सी रोशनी थी. राजा शेर मरा हुआ मांस खा रहा था.....आश्चर्य की बात थी.हाथी ने जैसे ही उसको पकङकर खींचा,उसकी खाल बाहर आ गयी.वह शेर की खाल में नकली मूंछ लगाये गीदङ निकला.उसका मुंह काला कर उसकी मरम्मत की गयी.चुपचाप सारी जानकारी असली शेर के पास पहुंचा दी गयी.
इधर जंगल के अन्य पशुओं को इस बात की भनक लग गयी कि शेर के खाल में गीदङ राज चला रहा है.अगले दिन सभी जानवर राज-भवन में एकत्रित होकर राजा का विरोध करने लगे. तभी शेर अपनी कुर्सी पर आराम से बैथकर जोरदार ढंग से गुर्राया.वह असली शेर था.फ़िर मुस्कुराते हुए हाथी के कान में कहा-"शेर की खाल पहनकर कोई शेर नहीं हो जाता.शेर मरा हुआ मांस नहीं खाता.जंगल में भी प्रजातंत्र होने के कारण राजनीति उसकी मजबूरी है लेकिन चमचागिरी उसे कतई पसंद नही."
7 comments:
kitna samyik prasang hai desh par raj karne walon ka yahi to haal hai...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
सामयिक प्रसंग है, गीदड़ नकली मुंछ लगा कर शेर नही बन सकता, रावणी प्रवृत्ति कभी छुप नही सकती, एक दिन सत्य सामने आता ही, फ़िर झुठे पाखंडी को मुंह छुपाने की भी जगह नही मिलती हैं, चाहे वह चमचागिरी से अपनी झुठी हैसियत बना ले। लेकिन एक दिन भांडा फ़ुट ही जाता है। प्रेरक कथा है।
हर जगह ये राज है अब कोई करे तो क्या करे
... क्या बात है दो-तीन दिनों से नकली शेर के पीछे हाथ धो के पड गये हो ... आखिर जंगल के हर जानवर की दिली इच्छा होती होगी कि वह भी एक दिन राजा की कुर्सी पर बैठे ... जो ज्यादा चतुर व चालाक होता है वह बैठने की कोशिश करता है कभी-कभी किसी को बैठने का मौका भी मिल जाता है ये और बात है कि कुर्सी अपात्र को पटक देती है !!
.... प्रसंशनीय कहानी है,बधाई !!!
कभी कभी गीदड़ भी शेर होने होने का भ्रम पाल लेते हैं। लेकिन हुंआ हुआ करते ही कलई खुल जाती है। आपने तो पंचत्रत जैसी कहानी लिख दी है।
क्या बात है दो-तीन दिनों से नकली शेर के पीछे हाथ धो के पड गये हो ... आखिर जंगल के हर जानवर की दिली इच्छा होती होगी कि वह भी एक दिन राजा की कुर्सी पर बैठे।
testing.
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