सूरज की भीषण गर्मी खाकर
बंजर खेतों को खोद-खोद
अपने शोणित से सींच-सींच
जो रोटी पैदा करता है.
वह क्रांतिदूत कहलाता है.
लङता है जो तूफ़ानों से
तनिक नहीं घबराता है.
दिशा बदल देता है उसकी
मंद-मंद मुस्काता है.
वह क्रांतिदूत कहलाता है.
सपनों की तलवार लिये
निज स्वारथ से जो लङता है.
पाषाणों की छाती चढकर
पीयुष दुग्ध जो पीता है.
वह क्रांतिदूत कहलाता है.
5 comments:
अच्छी अभिव्यक्ति!
bahut khub
shkehar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बहुत बहुत धन्यवाद आपकी टिपण्णी के लिए!
लङता है जो तूफ़ानों से
तनिक नहीं घबराता है.
दिशा बदल देता है उसकी
मंद-मंद मुस्काता है.
वह क्रांतिदूत कहलाता है.
वाह! बहुत बढ़िया! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है!
...बहुत खूब, प्रसंशनीय रचना !!
Badi krantikari rachana hai...Badi anoothi!
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