मिले अगर कोई विशाल
दुख में भी जो साथ रहे
संग चलूं , मारूं ठहाका.
चुल्हा यदि जला दे तो
साथ क्यों न दूं हवा का.
दिखे कहीं भी शक्ति-पुंज
तो क्षमा-याचना मैं कर लूं.
निर्मल कर से स्पर्श करे
तो मानूं उसकी सत्ता भी.
हो घना यदि कोई दरख्त
तो मांगूं एक पत्ता भी.
देखूं लहराता भुजा वीर की
सहर्ष कटा लूं अपना सिर.
मिल जाये कोई सच्चा दिल
तो मानूं खुद को काफ़िर.
अग्नि-पथ पर साथ चले
तो संग चलूं जीवन भर मैं.
"क्रांतिदूत" पथ चलूं अकेला
भांङ में जाये जत्था भी.
हो घना यदि कोई दरख्त
तो मांगूं एक पत्ता भी.
6 comments:
beautiful post. THis poem touched my heart,
excellent write!
बहुत सुन्दर भाव को प्रकट किया है आपने .सच में घने वृक्ष से ही एक पत्ता माँगा जा सकता है .
sahi kaha ...ghanatv kahin dikhe to koi kuchh maange bhi , varna kya fayada ?
एक दम सही लिखा है आपने
सुन्दर भाव को प्रकट किया है आपने
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा रचना लिखा है आपने !ज़बरदस्त प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
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