जाति के आधार पर जन-गणना की सोच जिस महान आधुनिक नेता के दिमाग की उपज है उनकी कुटिल सोच को मैं नमस्कार करता हूं. यह जरूर ही किसी तिक्ष्ण बुद्धि और मंद विवेक की उपज है. उनसे पुछा जाना चाहिये कि जाति के आधार पर आंकङे लेकर क्या किया जायेगा ? किस तरह का आचार बनाने की योजना है ? किस जाति के आरक्षित पदों को काटकर किस जाति के आरक्षण की सीमा बढाई जायेगी ?अब किस जाति की बहू-बेटियों को नीलाम किया जायेगा ? अब किस जाति को पांव से कुचला जायेगा ? और किस जाति को सत्ता की कुर्सी सौंपी जायेगी ? ढेर सारे सवाल.....लेकिन उन्हें इन सवालों से क्या मतलब. वे तो जल्दी से जल्दी आंकङे पाना चाहते हैं ताकि समय निकालकर संतुलित भाषण तैयार किया जा सके जिसमे लगे कि सभी जातियों को लाभ होगा,लेकिन फ़ायदा दिल्ली में बैठे नेता लोग आपस में बांट लें. दुख तो तब होता है जब विपक्ष भी हां में हां मिला देता है.शायद सभी यह सोच रहे हों कि विकास की राजनीति का जबाव जाति की राजनीति ही हो सकता है.
सत्ता की कुर्सी और विपक्ष के सोफ़े पर कुन्डली मारकर बैठ चुके लोगों से मैं सादर कहना चाहता हूं कि यदि उन्हें बैठना ही था तो चुनाव में खङे क्यों हुए थे..??कहां गया वो इच्छा-शक्ति..?हमारा वह विश्वास और सम्मान जो हम वोट के जरिये देते रहे हैं. क्या इसीलिये हमने वोट दिया था ? घोटाला करने के लिये ? आतंकी और नक्सली के सामने दुम हिलाने के लिये ? कुर्सी के लिये हम सबको आपस में लङाने के लिये ? भगदङ कराने के लिये और भारत बंद करने कि लिये ?........जानता हूं प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलेगा....इन प्रश्नों का उत्तर सरकारी गोली के शिकार हुए निर्दोष लोगों को छातियां देती है, भूख से तङपते पेट की आग देती है, बलात्कार की शिकार हुई औरतों की आंखे देती है, न्यायालय के चक्कर काटनेवालों के फुले हुए पांव देते है और मजहबी एवं जातिगत हिंसा के भय से फ़ङफ़ङाते होठ देते हैं.
हमें अपने प्रश्नों का उत्तर मिल रहा है. मैं अपना वोट वापस चाहता हूं.........
हमने वोट दिया था
संस्कृति और सम्मन की रक्षा के लिये
राष्ट्र और संविधान की सुरक्षा के लिये
देश चलाने के लिये
विपक्ष की भूमिका निभाने के लिये
रोटी उपलब्ध कराने के लिये
इज्जत बचाने के लिए.
विश्वास था
नहीं लूटोगे खजाने से एक कौङी भी
नहीं बढने दोगे सामानों की बेलगाम कीमत
नहीं खाओगे हमारा रोजगार
नहीं चढने दोगे देशद्रोहियों को सिर पर.
हमारा वोट विश्वास था
आशा थी.......
सभावना थी.....
प्यार था.....
सम्मान था.....
हमारा वोट वापस करो. क्रमशः...........
13 comments:
हमने वोट दिया था
संस्कृति और सम्मन की रक्षा के लिये
राष्ट्र और संविधान की सुरक्षा के लिये
देश चलाने के लिये
विपक्ष की भूमिका निभाने के लिये
रोटी उपलब्ध कराने के लिये
इज्जत बचाने के लिए.......bulkul sahi....
masha ALLAH
Kaash, vote wapas liya ja sakta!Par phir diya kise jana chahiye? Koyi to nazar nahi aata is qaabil!
आपने यह नई तरकीब निकाली है
वैसे वोट वापस तो नहीं होता लेकिन अब एक नई व्यवस्था के तहत प्रत्याशी को नापंसद और पंसद करने का अधिकार आ गया है.
आम की याद मत दिलाओ..
दिमाग खराब हो जाएगा..
अकेले-अकेले चट कर गए हो भाई और जान जला रहे हो।
bahut hi badhiyaa
...बहुत बढिया!
...बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!
इन नेताओं की नींद नही खुलेगी ..... अपने वातानुकूलित कमरों में बंद .....
जानदार और शानदार है।
हम जातिगत जनगणना के समर्थक हैं भाई
दूध का दूध और पानी का पानी इसी से होगा।
आपके विचारों का स्वागत है।
नमस्कार
@अरविन्द झा जी
मैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,
http://blog-parliament.blogspot.com/
कृपया इस ब्लॉग का member व् follower बन्ने से पहले इस ब्लॉग की सबसे पहली पोस्ट को ज़रूर पढ़ें
धन्यवाद
महक
@अरविन्द झा जी
मैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,
http://blog-parliament.blogspot.com/
कृपया इस ब्लॉग का member व् follower बन्ने से पहले इस ब्लॉग की सबसे पहली पोस्ट को ज़रूर पढ़ें
धन्यवाद
महक
@अरविन्द झा जी
मैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,
http://blog-parliament.blogspot.com/
कृपया इस ब्लॉग का member व् follower बन्ने से पहले इस ब्लॉग की सबसे पहली पोस्ट को ज़रूर पढ़ें
धन्यवाद
महक
Post a Comment