कार्यालय से घर जा रहा था तो सोचा सब्जियां खरीद लूं. जेब मे हाथ डाला तो पांच रुपये का एक सिक्का निकला.वैसे ही मेरा जेब इतना तंग रहता है कि आजकल कपङे सिलवाते समय मेरी धर्मपत्नी छोटा सा एक ही जेब डलवाती है ताकि यह खाली-खाली न लगे. आज के मंहगाई के जमाने में पांच रुपये की सब्जी क्या होती, सोचा टमाटर ले लेते है. मैंने पांच रुपये देकर दुकानदार को टमाटर देने को कहा. वह मुझे घुरकर देखने लगा मानो कच्चा चबा जायेगा.लगा जैसे वह कह रहा हो अच्छे परिवार के दिखते हि इसलिये छोङ दिया वरना कमर पे ऐसे लात मारता कि उन लोगों के बीच गिरते जिनका मंहगाइ के चलते पहले ही कमर टूट चुका है.लेकिन मैंने स्वयं को संयत रखा.
कहा--"कृपया जितना होता है उतना ही दे दीजिये".
वह मुझे ऐसे देखने लगा जैसे मैं पागल होऊं..
मैंने धीरे से कहा- "प्लीज...."
अब वह लगा जैसे मेरे पागल होने के बारे मे कन्फ़र्म था. उसने धीरे एक बङा टमाटर उठाया और मेरी हथेली पर रख दिया.,मैं चकित हुआ.
"सिर्फ़ एक टमाटर ?"
"अस्सी रुपये किलो चल रहा है.खुदरा लोगे तो सौ रुपये. आपके पचास ग्राम बनते हैं और इस टमाटर का वजन कम से कम साठ ग्राम होंगे. चाकू नहीं है नहीं तो दस ग्राम काटकर निकाल लेता."
मैं उस टमाटर को दोनो हाथों में लेकर वहीं खङा हो गया....उसे देखता रहा जैसे यह टमाटर नहीं कोई कीमती हीरा हो.फ़िर धीरे से उसे जेब में डाल लिया.घर पहुंचा तो श्रीमती जी दर्बाजे पर खङी मेरा रास्ता देख रही थी. उसका दरबाजे पर इंतजार करना मेरे लिये सदा ही अशुभ रहा है.इससे पहले कई बार ऐसी घटना मुझे कंगाल बना चुकी थी. लेकिन चुकी आज मैं पहले से लुटा हुआ था इसलिये यह सोचकर खुश हुआ कि आज यह डायन भी मेरा कुछ नहीं बिगाङ पायेगी..घर पहुंचते ही मुस्कुराहट का आदान-प्रदान हुआ. उसकी यही मुस्कुराहट पहले द्वितिया के चांद की तरह नेचुरल हुआ करती थी आजकल प्लास्टिक के बने लाल-मिर्च की तरह आर्टिफ़िसियल हो गयी है.
वह बोली---- "आज क्या है.?."
"महिने का अंतिम दिन है और क्या."
"मेरा जन्म-दिन भी है. तुम्हें तो मेरा जन्म-दिन याद ही नहीं रहता."
" मुबारक हो...हैप्पी बर्डे टू यू......मेनी मेनी रिटर्न्स ओफ़ द डे....." मैने थोङा सा एक्टिंग किया.सच तो यह है उसके जन्म-दिन इतने खर्चीले होते हैं कि दो तीन महिने तक मुझे होश नही रहता.फ़िर सदा की तरह उसने गिफ़्ट मांगा. मना करता तो पानीपत की लङाई पक्की थी.. इसलिये जेब में हाथ डाला और टमाटर निकालकर अपना गिफ़्ट प्रस्तुत कर दिया.प्रस्तुतिकरण रोचक था और प्रतिक्रिया भी देखने लायक थी.
" टमाटर........???? ये टमाटर मुझे गिफ़्ट दे रहे हो ?? तुम्हारा दिमाग तो नहीं फ़िर गया है ?....तुम तो दुनियां के पहले आदमी हो जो टमाटर गिफ़्ट कर रहे हो?
गलती तो हो ही गयी थी. पर ब्लोगिंग और निस्वार्थ साहित्य की सेवा इतना कुशल तो बना ही दिया था कि अपने कार्य को हर समय जस्टिफ़ाइ कर सकुं.
" प्रिये..गिफ़्ट तो अनोखा होना चाहिये और यह तुम स्वयं कह चुकी हो कि मैं पहला आदमी हूं जो टमाटर गिफ़्ट कर रहा हूं"
वह बोली-------" कोई प्यारा सा गिफ़्ट देना चाहिये जो हर कोई देखना चाहे"
मैंने कहा--------" प्रिये. देश की सवा सौ करोङ जनता इस टमाटर पे नजर रख रही है. पता नहीं इसे किसकी नजर लग गयी कि ये आजकल मुश्किल से नजर आ रहा है..पत्र पत्रिकाओं की सुर्खियों में यह टमाटर छाया हुआ है.सब्जी मंडियों में इसे देखने के लिये लोग लालायित रहते हैं.इस टमाटर ने सरकार के चेहरे का रंग लाल कर दिया है. अब विपक्ष भी राम और रोटी के बदले राम और टमाटर का नारा लगाने लगी है.देखना इस टमाटर की कीमत जाननेवाले मेरे जैसे लोग अब दिल्ली पर राज करेंगे.अब अमीर लोग उंगलेयों में हीरे की अंगूठी के बदले गले मे टमाटर की हार पहनेंगे.बङे-बङे नेताओं को सोने के सिक्कों के बदले टमाटर से तौला जायेगा,.मंदिरों मे फ़ल और मिठाइयां चढानेवाले भक्त अब माता के चरणों में टमाटर चढाया करेंगे. अब तो बैंक ओफ़ इंडिया के तर्ज पर बैंक ओफ़ टमाटर..."
उसने बीच में ही टोका---" पागल हो गये हो तुम"
"भविष्य में टमाटर पाने की चाह में बहुत से लोग पागल भी हो जायेंगे"
वह बोली------------"मजाक मत करो सही सही बताओ कि तुमने टमाटर क्यों गिफ़्ट किया..?
मेरे सारे तर्क बेकार गये थे. औरतें बहुत ही व्यवहारिक होती हैं....लेकिन उसके सूरत की झूठी प्रशंसा उसे इतना अच्छा लगता है कि वह सहज ही विश्वास कर लेती है. मैंने इसी हथियार का सहारा लिया.
मैंने कहा------"प्रिये मैं तुम्हें ऐसा गिफ़्ट देना चाहता था जिसका रंग तुम्हारे होठों की तरह लाल और गालों की तरह फ़ुला हुआ हो.तुम्हारे शरीर में जितना यौवन रस भरा हुआ है वह उतना ही रसीला हो. वह तुम्हारी तरह मुलायम हो और तुम्हारे सौंदर्य में ईजाफ़ा करने के लिये उसमे पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी भरा हुआ हो.....यही सब सोचकर मैं तुम्हें यह गिफ़्ट कर रहा हूं."
तीर निशाने पर लगा था. श्रीमतिजी ने टमाटर अपने हाथ में लेकर उसे चूम लिया था
11 comments:
शोभनम्
बेहतरीन व्यंग्य :-)
...behatareen ... laajawaab .... badhaai !!!
Tamatar heera nahi manuk hai..laal,laal..heere se zyada mahanga!
bahut teekha vyangy lekin hansi bhi nahi ruk rahi.
आप की रचना 30 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
वाह भाई बहुत बढिया लिखा है।
सैंया तो खुब ही कमात है
मंहगाई डायन खाए जात है।
जय हो
अरविंद भाई, आपकी सलाह तो उचित है। पर कमबख्त टमाटर भी तो 60 रू० किलो बिक रहा है।
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
behatareen ... laajawaab ....sundar....
वाह बहुत ही सुन्दर और लाजवाब व्यंग्य किया है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
खा नहीं लिया..?
मजेदार व सार्थक व्यंग्य. ढेरों टमाटर..अरे मेरा मतलब बधाई.
टमाटर के साथ साथ और भी बहुत कुछ इस हालात में पहुँच जायगा की गिफ्ट बन जाए .... जे हो सरकार की ...
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