जानती हूं परेशान हो
मेरे बह निकलने की आदत से.
आंखों से निकलते ही
फ़ेंक डालते हो
सूखी जमीन पर कचङों के जैसे.
पर मेरी बफ़ादारी तो देखो
जब भी तुम तन्हा होते हो
आ जाती हूं बिना बुलाए.
अक्सर भरी महफ़िल में भी
मैं तुम्हें तन्हा पाती हूं
तब भी चली आती हूं.
मुझ पर तरस खाकर
एक बार मुझसे प्यार करके देखो
तन्हाई में भी
तुम्हें महफ़िल नजर आयेगी.
12 comments:
मुझ पर तरस खाकर
एक बार मुझसे प्यार करके देखो
तन्हाई में भी
तुम्हें महफ़िल नजर आयेगी....bahut sundar
इन आँसुओं की दास्तान बहुत दर्द भरी है ... ये हमेशा साथ देते हैं ...
भावपूर्ण लेखन।
मुझ पर तरस खाकर
एक बार मुझसे प्यार करके देखो
तन्हाई में भी
तुम्हें महफ़िल नजर आयेगी.
Badi nafasat se apni baat kahi hai...! Bahut sundar!
प्रशंसनीय ।
kraanti dut ji yeh aapki kranti ki hi kraamaat he ke aapne aansu ko striling bnaa diyaa vrnaa bechaaaraa aansu to purling ke roop men istemaal kiyaa jaataa rha he ab aansu zimn pr nhin giregaa aek mulaym saa rumaal use ponchne ke liyen hmne haath men le liya he achche lekn k liyen bdhaayi. akhtar khan akela kota rajsthan
Aksar jinhein bilkul tavajjo nahi dete wo hi tanhaayi k saathi bante hain////
Aksar jinhein bilkul tavajjo nahi dete wo hi tanhaayi k saathi bante hain////
sukh , dukh dono ke saathi...aansoo
Behad khoobsurat rachna.
nice one again!
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
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