चलो अच्छा हुआ कि तुम बहुत ही बेरहम निकले
मैं जितना सोचता था उससे तुम बहुत कम निकले.
मुझे वह लगती थी मधुशाला जिसे पीने से डरता था
मगर जब पी के देखा तो जहर के बदले रम निकले.
अच्छा हुआ जो बेवफ़ाई ने मार डाला आशिकी को
तुम्हारी गोद में हमनें था चाहा कि मेरा दम निकले .
मैंने समझा कोई तोप है तेरे गोरे बदन को देखकर
आगोश में जो पाया तुमको खिलौने सा बम निकले.
तुम्हारे साथ बिस्तर पर अकेले ही मैं सोया था
"मेरी जगह" पर सुबह देखा था कि "हम" निकले.
तेरी दरियादिली के खूब चर्चे अब भी शहर में है
मेरे घर से जो तू निकली तो सारे गम निकले.
जब अपने दोस्तों को मैंने बताया प्यार के किस्से
उनकी जेब से उपहार के बदले मरहम निकले.
क्रांतिदूत अब ठहाके मारता है वफ़ा के खेल पर
जिंदादिल तू मौज कर इससे पहले कि यम निकले.
11 comments:
तुम्हारे साथ बिस्तर पर अकेले ही मैं सोया था
"मेरी जगह" पर सुबह देखा था कि "हम" निकले......चलो अच्छा हुआ ......
... क्या बात है, बधाई!!!
baahyi jaan he naa mzedaar baat tumhaari soch kiyaa he or hqiqt kiya he yeh to frq ptaa chl gyaa naa lekin yeh mzaaq he sch to yhi he ke aapne bhut achchaa or dil ki ghraaiyon se likhaa he bdhaayi ho mubarkbaad. akhtar khan akela kota rajsthan
अरे वाह, बहुत गजब की रचना रची है आपने। हमें पसंद आई। बधाई।
………….
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
बड़े-बड़े ब्लॉगर छक गये इस बार।
bahut badhiya...........
वाह भाई झा जी! आपकी कलम से सुन्दर गज़ल हरदम निकले।
अरविंद भाई, दिल में उतर गये आपके भाव।
ohho ho..kya nayab likha hai..maja aa gaya :)
bahut achha, arvind bhai... baht hi beraham nikle, me maza bandh diya aapne. bahut khub.
sushil dev
मुझे वह लगती थी मधुशाला जिसे पीने से डरता था
मगर जब पी के देखा तो जहर के बदले रम निकले...
लाजवाब .... क्या ग़ज़ब का शेर है ....
bahut achha, arvind sir
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