मित्रों, क्रांतिदूत की कलम चलती ही रहेगी. यह कलम अपने शब्दों को लघुकथा, कविता या किसी अन्य वर्गीकरण में नहीं रखना चाहती. वर्गीकरण शब्द का साकारात्मक उद्देश्य सिर्फ़ विवाद की संभावना को निरस्त करना होता. यदि विवाद की संभावना वर्गीकरण के कारण बढ जाये तो वर्गीकरण को नाकारात्मक मानकर वर्गों को समाप्त कर देना चाहिये. इसी नजरिये से जब समाज की ओर देखें तो जातिवाद की ओर ध्यान जाता है. एक ही धार्मिक मान्यताओं के बीच लोगों को कितनी जातियों में बांट दिया गया. बांटते समय वर्गीकरण का उद्देश्य साकारात्मक था यह सभी जानते हैं. यह भी सभी लोग मानते हैं कि जातिवाद आज हजारों विवादों को जन्म दे रही है. सभी चाहते हैं कि काश, जातिवाद नहीं होता.......सिर्फ़ यह चाहना भी पर्याप्त है...क्योंकि इसके बाद का जो रास्ता है उसे विजय की संभावना कहते हैं और फ़िर अंत मे जो जाति-विहीन समाज का लक्ष्य है वह विजय है..
निश्चय ही जाति-विहीन समाज का निर्माण बहुत ही सुखमय होगा और उससे भी अधिक सुखमय होगा वहां तक पहुंचने का रास्ता. फ़ुलवारी से अधिक रमणीय फ़ुलवारी तक पहुंचने का रास्ता होता है. उत्साह ,जिग्याशा , खुश होने की ईच्छा आदि भावनायें फ़ुलवारी तक पहुंचने के रास्ते को फ़ुलवारी से भी अधिक प्यारा बना देता है. यदि कोई आकाश छुना चाहता है तो छू कर देखे उसे पता चल जायेगा कि आकाश मे होने की खुशी से ज्यादा खुशी जमीन से आसमान की ओर छलांग मारने में मिलता है. जब रास्ता भी सुन्दर और लक्ष्य भी तो हमें जरुर आगे बढना चाहिये. हमारी सोच के जिस हिस्से में जातिवाद जम चुका है उस हिस्से से जातिवाद निकालकर फ़ेंक देना चाहिये. न ही कोई अगङा न ही कोई पिछङा, न ही कोई ब्राह्मण न ही कोई दलित. जाति बने तो किसानों कि, मजदूरों की, डाक्टरों की, ईंजिनियरों की...जो अपनी जाति को समाज के निर्माण हेतु समर्पित कर दे.
इस बार जाति-आधारित जनगणना की जा रही है.पृष्ठभूमि की ओर देखें तो सन उन्नीस सौ एकतीस में जाति-आधारित जनगणना की गयी थी. फ़लतः अंग्रेजी सरकार को कम से कम अतिरिक्त दस वर्ष का जीवनदान मिला था. यदि आज के शासकों में अंग्रेजों की तरह उत्कट कुटिल इच्छा-शक्ति होगी तो उनका शासन अमरत्व प्राप्त कर सकेगा. मुझे यह गंभीर आशंका है कि जातियों के प्रमाणिक और सत्यपूर्ण आंकङे ऐसे विषैले बीजों की तरह होंगे जो पूरे देश को जहरीला कर देगी........सभी जातियों को मिलाकर कई सारी जातियां बनेगी जिसमे से कोई जाति फ़िर से देश पर राज करेगा,कोई जाति आध्यात्म और पाखंड का सहारा लेकर सबको नचायेगा, कोई जाति अपनी मर्जी से व्यवसाय करेगा और किसी जाति को पांव से कुचक दिया जायेगा.
मुझे देश के जन-प्रतिनिधियों से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि यह कलम खामोश नहीं होना चाहती.....लेकिन यह जरुर कहुंगा कि दूर-दृष्टि की कमी अवश्य दिखता है. निकट परे मोतियों को चुनने के लिये दूर परे हीरों की अनदेखी की जा रही है.जाति-आधारित जनगणना से सत्ता तक पहुंचने का रास्ता सुलभ हो सकता है लेकिन सत्ता संभालना नहीं. इस जनगणना के दुष्परिणामों की अनदेखी करना अनुचित और मूर्खतापुर्ण है.जातिवाद के परिणाम नक्सलवाद, जातिय हिंसा, भेद-भाव, छुआछुत , वोट की राजनीति आदि रुपों मे पहले से ही दिख रहा है.अब मिट्टी की कच्ची दीवारों का पक्कीकरण किया जा रहा है जिसकी छतों से कूदकर समाजिकता दम तोङ देगी...
क्रमशः...........
14 comments:
जातिवाद के परिणाम नक्सलवाद, जातिय हिंसा, भेद-भाव, छुआछुत , वोट की राजनीति आदि रुपों मे पहले से ही दिख रहा है.अब मिट्टी की कच्ची दीवारों का पक्कीकरण किया जा रहा है जिसकी छतों से कूदकर समाजिकता दम तोङ देगी.............bilkul sahi....sahmat
Nishchay hi yah safar aur uski manzil,dono sukhmay honge....bahut kam log hain,jo is bhed ko nahi mante,warna jatibhed,wargikaran yah sab phal phool raha hai..badhtahi jaa raha hai..
जाति-आधारित जनगणना से सत्ता तक पहुंचने का रास्ता सुलभ हो सकता है लेकिन सत्ता संभालना नहीं.
जातिगण जनगणना नहीं होने के बाद भी जातिगत राजनीति का कुचक्र चल रहा है और इसकी चक्की में निरीह लोग पिस रहे हैं। अगर जातिगत जनगणना हो जाती है तो एक सत्य सामने निकल कर आएगा। जिससे जो जातियां विकास से विमुख हो रही हैं जिनको कोई पुछ नहीं रहा है उन्हे भी पूछा जाएगा। ऐसा मेरा मानना है। विकास की मुख्य धारा में वे भी सम्मिलित हो्गें।
अब मिट्टी की कच्ची दीवारों का पक्कीकरण किया जा रहा है जिसकी छतों से कूदकर समाजिकता दम तोङ देगी...
very true !
It's a wrong decision indeed. It is something antisocial.
भावपूर्ण लेखन।
Aapke krantikari vichar man ko jhankrat karte hain....
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चिर यौवन की अभिलाषा..
क्यों बढ रहा है यौन शोषण?
@ lalit sharma
जातिगण जनगणना नहीं होने के बाद भी जातिगत राजनीति का कुचक्र चल रहा है .....yah kuchakra kaafi tej ho sakata hai.और इसकी चक्की में निरीह लोग पिस रहे हैं। .....nirih logon ki jaati nahi hoti ve gareeb jaati ke hainअगर जातिगत जनगणना हो जाती है तो एक सत्य सामने निकल कर आएगा। .....kaisaa satya? aap kisee nange vyakti ko dekhakar usaki jaati bataa sakate hain?जिससे जो जातियां विकास से विमुख हो रही हैं जिनको कोई पुछ नहीं रहा है उन्हे भी पूछा जाएगा।.....kabhi koI jaati vishesh vikaas se vimukh nahi hota...bramhano me bhi our dalito me bhi vikaas se vimukh log hain...unki laachaari ko jaati se jorana galat hai. ऐसा मेरा मानना है। विकास की मुख्य धारा में वे भी सम्मिलित हो्गें।....mukhya dhaaraa ek hi hoti hai jaise hi jaati bhed karenge kai chhoti-chhoti dhaaraaen banengi...mukhya dhaaraa lupt ho jaayege.
aapke bevaak our saarthak virodhpurn vichar hetu dhanyavaad.
जाति-आधारित जनगणना से सत्ता तक पहुंचने का रास्ता सुलभ हो सकता है लेकिन सत्ता संभालना नहीं.
क्या उम्दा बात कही है अरविंद जी आपने
वैसे पूरी पोस्ट कुछ सुगबुगाते सवाल खड़ी करती है
यूं ही लिखते रहिए.
अब मिट्टी की कच्ची दीवारों का पक्कीकरण किया जा रहा है जिसकी छतों से कूदकर समाजिकता दम तोङ देगी...
your words strike straight...it's good to see that atleast the coming generetaion is against casteism...
umdaa vichaar
बहुत बढिया!
वर्तमान में जातिभेद बढाने में समाज कम, सरकार अधिक सक्रिय है. विकास जातियों का नहीं वंचित व्यक्ति का होना चाहिए
क्या उम्दा बात कही है अरविंद जी आपने
lalit ji nae bilkul sahi likha hai,.
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