मेरे बिस्तर पर
गर्म भट्ठी की तरह
सांसें छोङना
फ़िर
कुछ ही पल में
मेरी बांहों में पिघलकर
सर्द हो जाना.
बेशर्म होकर
मेरे जिस्म के हिस्सों को
अपनी नजरों से शिकार करना
फ़िर
अपनी ही आंखों पर
खुद की हथेली से
पर्दा डाल देना.
हजारों की भीङ में
मदहोश कर देनेवाली
कामुक चुंबन
फ़िर
प्रणय निवेदन करने पर
पलकें झुकाकर
मूक होते हुए
नाकारात्मक संकेत.
तुम प्यार की परिभाषा हो.....
13 comments:
ek khamoshi ... sunti hai, kahti hai
... bahut khoob !!!
Jajbaaton ke bharpurn prastuti..
बहुत कुछ कह गए
नकारात्मकता में सकारात्मक्ता
sundar rachanaa !
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
achhi kavita ......
bhbut khub is pyaar ki pribhashaa pr sdqe jaaun. akhtar khan akela kota rajsthan
अश्लीलता साफ दिख रही है, मुझे नहीं लगता की प्यार की कोई ऐसी परिभाषा हो सकती है , नीचे की लाईन में आप पता नहीं क्या कहना चाहते हैं मई तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ,
@ mithilesh Dubey
is kavita me mujhe kahi bhi aslilata nahi dikhta.yadi aap bhaavaarth hi nahi samajh rahe to kaise kah sakate hain ki yah aslil hai.aslilata shabdon se nahi balki usake bhaavaarth se hota hai.......
प्यार की एक नयी परिभाषा.
Very beautiful poem...
pyaar ki paribhasha ko bahot sundar tarikese pesh kiya...
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