यह कलम आग ही उगलती है. अन्य कलमों की तरह इसमें भी स्याही ही डाली गयी है, फ़िर भी पता नहीं क्यों यह आग ही उगलती है. शायद चिंगारी बनना चाहती हो, खुद जलकर भी. एक ऐसी चिंगारी जो घरों में रोशनी पैदा करे, चेहरों पे चमक लाये, कमजोरों को रास्ता दिखा सके और भूखे चुल्हों को थोङी सी गर्मी दे सके. एक ऐसी चिंगारी जो क्रांति की आग का केन्द्रक बन जाये. एक ऐसी चिंगारी जो देश-भक्ति की आग को जन्म दे. एक ऐसी चिंगारी जिसकी लपटों से सारी बुराईयां जलकर खाक हो जाये.........पर कमवख्त नहीं जानती कि ऐसी कलमें जो चिंगारी पैदा करती है उन्हें जमीन के नींचे दबाकर उसके वजूद को ही खत्म कर दिया जाता है ताकि वह फ़िर किसी आग के लिये चिंगारी न बन पाये. इसलिये इसका भी हश्र वही होगा पर यह भी सच है कि यह जितना सोना होगा उतना ही खङा उतरेगा. कितनी अजीब बात है कि कोई कितना भी सोना हो जाये मरने के बाद तो जलना ही होता है..आग के बीचों-बीच आग बनकर. यदि जीते-जी कोई अपने भीतर थोङी सी आग ले ले तो पता नहीं कितनी रोशनी पैदा हो जायेगी. मरते वक्त इंसान की मजबूरी, नंगी जमीन पर लेट जाने की बाध्यता, अपाहिज की तरह चार कंधों पर उठकर जाने की लाचारी और जलकर खाक हो जाने जैसा अंत होना ही है तो फ़िर जीते-जी डर कैसा, मजबूरी और लाचारी कैसी...?
जिंदा हो पर मुर्दा क्यों ?
क्यों डर से सहमी हैं आंखें.
पिंजरों मे क्यों कैद हैं पांखें.
बेचा दिल और गुर्दा क्यों?
जिंदा हो पर मुर्दा क्यों ?
ऐसी भी क्या थी मजबूरी
कि इतनी बङी जिंदगी हारी.
ऐसे क्यों लाचार हुए
इतने कंधों पर बैठ गये.
जब भीख मांगकर ही खाना था
फ़िर पायी इतनी उर्जा क्यों?
जिंदा हो पर मुर्दा क्यों ?
बन सकते हो किसी का सहारा
मां का प्यारा राज दुलारा
झुकाकर ही सर जब जीना था
तो खाया दूध का कर्जा क्यों?
जिंदा हो पर मुर्दा क्यों ? क्रमशः...........
12 comments:
झकझोरती सी अच्छी रचना ..
nice
बन सकते हो किसी का सहारा
मां का प्यारा राज दुलारा
झुकाकर ही सर जब जीना था
तो खाया दूध का कर्जा क्यों?
जिंदा हो पर मुर्दा क्यों ?
Yah waaqayi ek chingari hai!
बन सकते हो किसी का सहारा
मां का प्यारा राज दुलारा
झुकाकर ही सर जब जीना था
तो खाया दूध का कर्जा क्यों?
जिंदा हो पर मुर्दा क्यों ?
बहुत सुन्दर और सार्थक सन्देश । बहुत बहुत शुभकामनायें।
very nice!
Sach hai jeena ho to shaan se jeena chaahiye ...... samvednaayen jeevit rahni chaahiyen ...
जिंदा हो पर मुर्दा क्यों? क्रांति दूत की जीवन मे सद्विचारों की क्रान्ति ला देने वाली रचना। सुन्दर।
अपने नाम के मुताबिक क्रांति जगाती रचना.
बहुत बढ़िया.
अतिसुन्दर ।
यलगार हो-क्रांति का उद्घोष
जानदार रचना के लिए शानदार बधाई
लेखन कर्म में इसी तरह लगे रहो भाई
बन सकते हो किसी का सहारा
मां का प्यारा राज दुलारा
झुकाकर ही सर जब जीना था
तो खाया दूध का कर्जा क्यों?....very nice...
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
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