Thursday, July 1, 2010

कोठा (भाग-एक)----काश तुम हिजङे होते.

आज बाप और बेटा दोनो एक साथ कोठे पर आया. पुतलीबाई से लङकी देने को कहा. किसी एक के साथ बेटा एक कमरे में चला गया. पुतलीबाई ने उसके बाप से कहा--" बेटा को तो सही जगह पे पहुंचा ही दिया. अब तुम यहां क्या कर रहे हो...?...जाओ अपने घर ". बाप खिसियाकर बोला-" मैं तुम्हें हिजङा नजर आता हूं क्या? ". पुतलीबाई का गुस्से से खून खौल उठा---"अरे जा जा हिजङों की बराबङी करता है. तुम मर्दों ने भगवान के दिये हुए हथियार को भांजने के सिवा किया ही क्या है, हिजङों से अलग. इतने महान तो हिजङे ही होते हैं जो यह जानते हैं कि हम भी किसी के मां, बहन और बेटी होते हैं. काश... तुम हिजङे होते तो किसी भी सूरत मे अपने बेटे के साथ कोठे पर नही आते".

क्रमशः.........

(मित्रों मुख्य शीर्षक "कोठा" के अन्तर्गत एक लघुकथा शृंखला लिख रहा हूं जिसके एक भाग दुसरे भाग से संबद्ध नहीं है.एक प्रयास है कुछ अनछुए पहलुओं को बाहर लाने का, वेश्या-वृति को हतोत्साहित करने का और पुरुषों के मानसिक विकृतियों को सही पुरुषार्थ की ओर दिशा देने का...........कृपया अपने टिप्पणियों के जरिये उचित सलाह देते रहें)

10 comments:

Dr.J.P.Tiwari said...

बहुत करार व्यंग, गहरी अर्थवत्ता लिए हुए. एक बात है यदि उनके अन्दर पुशात्व थोदा सा भी होगा तो सुधर जायेंगे. समाज को सुधरने हेतु इस प्रकार की कडवी गोली की आवश्यकता है . मुझे इस मुहीम में अपने साथ ही समझें. कभी हतोत्साहित न हीन. यही कामना है और सहयोग का वडाभी.

आचार्य उदय said...

सार्थक लेखन।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

भाई ये तो आपने गजब ही कर दिया
चचा-भतीजे एक साथ कोठे पर जाते तो
सुने थे, लेकिन बाप और बेटे एक साथ
पहुंचा दिए।

वैसे काफ़ी धार है। आधुनिक युग में
बाप बेटों को एक साथ कोठे पर देखकर
कोई आश्चर्य नहीं होगा।

आभार

सूर्यकान्त गुप्ता said...

ललित भाई की टिप्पणी से सहमत।

निर्मला कपिला said...

सटीक प्रहार करती लघु कथा बधाई

soni garg goyal said...

बड़ी करारी मार मारी है जो की बिलकुल सही है !!!

PARAM ARYA said...

हिजड़े भी एँज्वाय करते कराते हैं ।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

आपकी पोस्ट ब्लाग4वार्ता में

विद्यार्थियों को मस्ती से पढाएं-बचपन बचाएं-बचपन बचाएं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत करारा व्यंग

राजकुमार सोनी said...

समाज का पतन तो हो ही चुका है। जब बाप और बेटे साथ बैठकर शराब पी सकते हैं तो फिर कोठे पर जाएंगे ही।
आपने तो चिन्दी-चिन्दी कर दिया इस अभ्रद समाज को। आपको बधाई।