Friday, May 28, 2010

मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

लहलह आंखि ललाट भयावह
फ़ट-फ़ट होठ करय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

हिंसक बुद्धि विवेक पराजित
सिर संग पाद हिलय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

निर्मल हृदय बनय अति चंचल
प्रदुषित रक्त बहय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

भय अपमानित सर्वत्र जगत में
अर्थ-अनर्थ करय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

भङकय क्रोध शीतलता छीनय
तन मन नाश करय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

तन मोरा कंचन सम काया
प्याला त्याग छुबय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

नारी मदिरा से अति मादक
सुधा प्रेम पीबय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.

13 comments:

Ra said...

लगता है हम जैसो के लिये ही लिखी है ,,,,प्रेरक और विचारणीय , रोचक रचना

रश्मि प्रभा... said...

bahut badhiyaa

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर!
www.vandematarama.blogspot.com

कडुवासच said...

...बहुत खूब ... प्रसंशनीय रचना !!!

36solutions said...

मत पीयब शराब .... संदेश से परिपूर्ण कविता. धन्‍यवाद भाई जी.

माधव( Madhav) said...

nice

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Umda rachna!

aarya said...

सादर वन्दे !
बहुत ही सुन्दर रचना !
रत्नेश

Anonymous said...

bahut khub....
lekin shayad kavita likhne se nahi hoga...
yuva warg ko pehal karne ki jaroorat hai....

माधव( Madhav) said...

thanx for visiting my Blog

दिगम्बर नासवा said...

हिंसक बुद्धि विवेक पराजित
सिर संग पाद हिलय सजना रे...

सच कहा ... मदिर मद कर देती है ... पागल कर देती है ...

Urmi said...

भय अपमानित सर्वत्र जगत में
अर्थ-अनर्थ करय सजना रे.
मत पीबय शराब सजना रे, मति पीबय.
बहुत सुन्दर सन्देश देती हुई लाजवाब रचना! मुझे बेहद पसंद आया! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई!

संजय भास्‍कर said...

बेहतरीन पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई!