Friday, May 14, 2010

लोमङी की चतुराई

जंगल में प्रजातंत्र हो जाने के बाद राजा शेर भी ब्लोगिंग करने लगा.जंगल में ही एक गीदङ अपनी पत्नी लोमङी के साथ रहता था.गीदङ और लोमङी भी ब्लोगिंग करते थे.लोमङी किसी तरह शेर को नींचा दिखाना चाहती थी.वह अक्सर गीदङ से कहा करती थी कि शेर उस पर बुरी नजर रखता है.

गीदङ इन बातों से परेशान था.वह शेर से डरता था.अंत में परेशान होकर वह शराब पीने लगा.जब भी वह शराब पीकर आता तो उसे लोमङी शेर के खिलाफ़ उकसाती और उसकी चुगली करती थी.लोमङी गीदङ के हिस्से क खाना पाने के लिये उसे मारकर और शेर को नींचा दिखाकर-एक ही तीर से दो निशाना साधना चाहती थी.एक दिन जब गीदङ शराब पीकर घर आया और खाना मांगा तो लोमङी बोली-"आज तो मैं बहुत अच्छा खाना पकायी थी ,पर सारा खाना तो शेर खा गया.अब मैं कहां से खाना लाऊं, तुम गुफ़ा में जाकर शेर को धमकाओ ?". जब गीदङ नहीं माना तो फ़िर कहने लगी-"अगर तुम मर्द नहीं हो तो मैं जाती हूं.क्या करेगा ज्यादा से ज्यादा मुझे खा ही लेगा ना ? तुमने तो चूङियां पहन रखी है."

.इन बातों से गीदङ का स्वाभिमान जाग गया.वह गुफ़ा में जाकर शेर को ललकारने लगा-"मर्द है तो बाहर निकल हरामी.रोज मेरा खाना खा जाता है.".शेर ने देखा कि उसने दारू पी लिया है.उसने मुस्कुराते हुए कहा-"तेरा खाना मैंने नहीं खाया.यदि तुम्हें खाना चाहिये तो ले जाओ मेरी गुफ़ा से.".गीदङ ने कहा-" तुम मेरी लोमङी पर बुरी नजर रखते हो ... .बाहर निकल....आज मैं अपनें अपमान का बदला लेना चाहता हूं..". इस पर शेर को गुस्सा आ गया.उसने अपना पंजा हिला दिया और गीदङ की मौत हो गया. अगले ही दिन पुरे जंगल में शेर बदनाम हो गया कि उसने बेचारे गीदङ को मार दिया. इस बदनामी से शेर के स्वाभिमान को ठेंस पहुंचा.वह उस गुफ़ा को छोङकर चला गया और चालाकी से उसमे लोमङी रहने लगी.अपने किसी मित्र के पूछने पर शेर ने बताया- "लोमङी गलत थी फ़िर भी आसानी से उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया क्योंकि उसने अपना मूल स्वभाव नहीं बदला.इसलिये अपना मूल स्वभाव कभी नहीं बदलना चाहिये."

10 comments:

दिलीप said...

sahi kaha bas kuch jagah vyakaran ki ashuddhiyan dikhi...unhe sudhaar lijiyega...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत बढिया कहानी है
प्रतीकों के माध्यम से संदेश देने की आपकी कला का कोई जवाब नही हैं

आभार

Udan Tashtari said...

बहुत प्रेरक प्रसंग. आभार!!

कडुवासच said...

..... लाजवाब ... रोचक ... प्रसंशनीय !!!

M VERMA said...

अपना मूल स्वभाव कभी नहीं बदलना चाहिये."
साधुवचन

kshama said...

Bahut badhiya kathan!

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

bahut sahi likha hai aapne, mera mail id- drsatyajitsahu@gmail.com

Urmi said...

बहुत सुन्दर कहानी लिखा है आपने! पढ़कर बहुत अच्छा लगा!

नरेश सोनी said...

बड़ी सहजता और संक्षिप्त कहानी के माध्यम से सब कुछ कह दिया भाई।
बेहद प्रेरणास्पद कहानी है। भाईलोगो सीख लो।

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

"लोमङी गलत थी फ़िर भी आसानी से उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया क्योंकि उसने अपना मूल स्वभाव नहीं बदला.इसलिये अपना मूल स्वभाव कभी नहीं बदलना चाहिये." मजेदार कहानी बड़ी सीख