Sunday, May 2, 2010

चुंबन

शीतल वायु के
मंद वेग का
झूठा सहारा लेकर
टूटे पत्ते का
विशाल पुष्प के
कामुक वक्षों से
सटकर चिपक जाना,

फ़िर
कोमल पंखुङियों को हटाकर
कठोर अग्र-भाग से
स्वर्णिम पुष्प-केन्द्रक का
अमृतमयी स्पर्श.

11 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कोमल पंखुङियों को हटाकर
कठोर अग्र-भाग से
स्वर्णिम पुष्प-केन्द्रक का
अमृतमयी स्पर्श.

बहुत खुब,बहुत खुब,बहुत खुब

स्वप्निल तिवारी said...

hmmm..achhi rachna

कडुवासच said...

...vaah vaah ... atisundar !!

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।बधाइ।

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

Urmi said...

कोमल पंखुङियों को हटाकर
कठोर अग्र-भाग से
स्वर्णिम पुष्प-केन्द्रक का
अमृतमयी स्पर्श.
लाजवाब पंक्तियाँ! बहुत ही खूबसूरती से आपने हर एक शब्द लिखा है! प्रशंग्सनीय रचना!

M VERMA said...

शब्दो का सुन्दर प्रयोग
बेहतरीन

kshama said...

Alag,anoothi rachna!

Ra said...

fir se kahonnga bhut sindar ..rachna

http://athaah.blogspot.com/

Amitraghat said...

"शानदार"

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

dobara aa gya......