क्या हुआ जो ना चढा पोस्ट ब्लोगवाणी पर
वाह-वाही ना मिली छोटी - बङी नादानी पर.
मैने जो कविता कहा तुने वही कहानी लिखी
कुछ ने चटका न भरा ब्लोग की दिवानी पर.
उनकी झूठी , मामुली बातें चढी जो आसमां
अपनी बातें रेत में जो दब गयी वीरानी पर.
खुद के शब्दों पे खुदीने खुद बजायी तालियां
हो गये हैं बूढे मगर इतरा रहे जवानी पर.
कोई बना क्रांतिदूत तो किसी ने बिगुल फ़ूंका
अंतिम सच सब भूल गये लङते रहे कहानी पर.
रुई सा हल्का हो गया मर्दों की बातों का वजन.
पसंद के चटके मारते हैं खूबसूरत जनानी पर.
आचार्य भी फ़र्जी निकला,जलजला भी झूठ था
कोई रोक न पाया कभी कलम की मनमानी पर
अब भी रचना हंस रही, पाखी भी आजाद है
ठान ली है ताजमहल बनायेंगे हम पानी पर.
प्यारा यह संसार शब्द का राह दिखा सकते हैं सबको
जग में कोई मूर्ख नहीं, नतमस्तक सबके सयानी पर.
स्वयं महान हूं मैं मित्रों तुम महानतम सारे जग में
तेरे रहते नाम हमारा कैसे चढ सकता ब्लोगवानी पर...??
15 comments:
hilarious
अपना सार्थक लेखन करे अरविन्द जी और इस बात को ज्यादा अहमियत न दें कि वह ब्लोग्बानी पर चढी अथवा नहीं ! ख़ास मायने नहीं रखती मेरी नजरों में यह बात ! हम जो है , वो तो है ही ,हम में जितनी काबिलियत है वह तो हमारे पास रहेगी !, बुरे उद्देश्य से माइनस का चटका लगाने वाला कोई माई का लाल उसे दबा कर देखे तो फिर जाने कि वह गीदड़ नहीं है !
godial sahab, main bhi yahi kahana chahta hun ki blogvani par nahi chadhana koi maayne nahi rakhti.
स्वयं महान हूं मैं मित्रों तुम महानतम सारे जग में
तेरे रहते नाम हमारा कैसे चढ सकता ब्लोगवानी पर...??
बहुत बढिया-अच्छा व्यंग
आभार
स्वयं महान हूं मैं मित्रों तुम महानतम सारे जग में
तेरे रहते नाम हमारा कैसे चढ सकता ब्लोगवानी पर...??
Wah ji wah! Talwaar ki tarah lekhni chali hai!
आज तो आपने जमकर धोने का काम किया है। मजा आ गया।
अब चलिए...
अमृत वाणी सुनते हैं.... हा... हा... हा...
इस कविता मे आक्रोश दिखाई दे रहा है। अपने को शान्त रखिये कोई किसी को नही मिटा सकता। बाकी कारण क्या है अधिक जानकारी नही है । ये जनानी वाली पाँक्तियाँ बहुत घटिया इलजाम है सभी नारी ब्लागरों पर । इसे हटा लें तो अच्छा है बाकी आपकी मर्जी। शुभकामनायें
मै अनुभव कर रहा हूँ जैसे नवरात्रि के समय ढोल औ मनजीरे की थाप पर कोई कोई झूमने लगते हैं जिसे देवी चढना कहते हैं, वैसे ही ब्लोगदेव कभी कभी चढ जाते हैं। हा हा हा……… सभी को शामिल करते हुए बढिया कविता लिखी गैइ है ।
व्यवस्था पर करारी चोट करती कविता के लिए धन्यवाद अरविंन्द जी.
शब्दों के तो आप धनी हैं ही, बिम्बों को भी बढि़या जमाया है. :)
सार्थक व्यंग्य।
(आईये एक आध्यात्मिक लेख पढें .... मैं कौन हूं।)
सही धुलाई की है ।
ha ha ha bdhiya sirji aapki rachna kahin chadhe na chadhe hamare dil me chadhi hui hai...
बेहतरीन पोस्ट
शुभकामनाएं
ब्लाग वार्ता पर आपकी पोस्ट
बहुत बढिया-अच्छा व्यंग
आभार
वाह जी वाह ......
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