Wednesday, June 2, 2010

मैं भी भूखा हूं.

संस्था में चार लोग काम कर रहे थे. कल मुझे एक हजार रुपये प्रति श्रमिक कुल चार हजार रुपये वेतन देना था.हाथ पर रुपये सिर्फ़ दो हजार ही थे.मैंने चारो श्रमिक के पिछले माह के कार्य का अवलोकन किया.दो श्रमिक लगातार कार्यालय में उपस्थित हुए थे. एक श्रमिक के दाहिने हाथ की हड्डी टूट जाने के कारण उपस्थित होकर भी कार्य करने में असमर्थ रहा था.बांकी एक श्रमिक जो वृद्ध भी हैं महिने में पंद्रह-बीस दिन अस्वस्थ रहे थे. मैंने कर्तव्यनिष्ठा को ध्यान में रखकर उन दो श्रमिकों को वेतन दे दिया जो लगातार कार्यालय में उपस्थित हुए थे. बांकी दो लोगों को मैंने ये बता दिया कि वेतन सिर्फ़ काम करनेवालों को दिया जाता है.

रात में फ़ोन की घंटी बजी........"बेटे, तुम्हारे चाचा बीमार हैं. खाने के लिये अनाज भी नहीं है, दवा भी खरीदना है. यदि वेतन नहीं मिला तो आगे तुम्हें चाचा से कोई शिकायत नहीं होगी.....क्योंकि अब वे हालात से लङकर ज्यादा दिन नहीं जी पायेंगे.........".मेरे पास कोई शब्द नहीं था......"कुछ भी करो, हमारा पेट तो तुम्हीं चलाते हो........"मैं फ़िर निःशब्द था. उन्हें कैसे बताता कि मैं चाचा का दर्द जानता हूं क्योंकि मैं भी भूखा हूं.

14 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अरविन्द जी, ऐसी संस्था चलाते क्यों हो? मार्मिक

दिलीप said...

behad maarmik....

माधव( Madhav) said...

touching

अरुणेश मिश्र said...

अन्याय से जन्मा विचार । मर्मस्पर्शी ।

कडुवासच said...

...ऎसे हालात ... जो कुछ सिखा दें ... अदभुत भाव !!!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

मार्मिक व्यथा

आचार्य उदय said...

क्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।

आइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !

Ra said...

हिरदय स्पर्शी !!!

nilesh mathur said...

बहुत संवेदनशील!
www.mathurnilesh.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत मार्मिक....

monali said...

Chhoti kintu marmsparshi kahaaniyaan...behad pasand aayi...

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

मैं भी भूखा हूं.
nice shorti.........such story are good to read

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही मार्मिक कविता...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने. मार्मिक चित्रण.