Sunday, April 4, 2010

निधन

मर गया बेचारा,
ईंसान बनकर जीने चला था.
खुश हैं लोग,
सोचते हैं,
उसकी मौत उसकी जिंदगी से बेहतर है.
ईमान ही उसका मजहब था,
रोटी के बिना चल पङा,
मगर
ईमान बेच न सका,
इसलिये
मर गया बेचारा,
ईंसान बनकर जीने चला था।

दवा मंहगी थी,
दर्द सस्ते थे
और गरीबों के लिये उपलब्ध भी.
आदर्शों का हथियार लिये,
वह लङता रहा.
फ़िर
मर गया बेचारा,
ईंसान बनकर जीने चला था।

उसकी आत्मा खुश है आज.
उसने देखा है,
चाहनेवालों के हृदय में
सच्ची श्रद्धा, करुणा और स्नेह.
उनके हृदय में ,
वह अब भी जिंदा है,
क्योंकि
ईंसान बनकर जीने चला था।

मरता वह है
जिसके लिये यह दुनियां
एक वेश्यालय है.
जहां ईमान बेचकर बनाये गये धन
पाप के काम आते हैं.
वह कभी नहीं मरता,
जिसके लिये यह दुनियां
एक मंदिर है,
जहां के हर पत्थर में
ईश्वर की आत्मा है.

12 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

रश्मि प्रभा... said...

मर गया बेचारा,
ईंसान बनकर जीने चला था।
waah

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वह कभी नहीं मरता,
जिसके लिये यह दुनियां
एक मंदिर है,
जहां के हर पत्थर में
ईश्वर की आत्मा है.

यही ध्रुव सत्य है भाई
आपकी सच्ची है कविताई
आभार

Shekhar Kumawat said...

marna kon chahta he magar ye duniya jine nahi deti he


shekhar kumawat

दिगम्बर नासवा said...

ये सच है जो दुनिया को मंदिर समझता है वो कभी इसका बुरा नही करता ....
अच्छी रचना है बहुत ही ...

कविता रावत said...

जहां ईमान बेचकर बनाये गये धन
पाप के काम आते हैं.
वह कभी नहीं मरता,
जिसके लिये यह दुनियां
एक मंदिर है,
जहां के हर पत्थर में
ईश्वर की आत्मा है.
Bilkul Sahi kaha aapne. Paap ki kamai hamesha falfule jaruri nahi..
Aaj isi tarah aawaj uthane ki jarurat hai..
Haardik Shubhkamnayne..

कडुवासच said...

दवा मंहगी थी,
दर्द सस्ते थे
और गरीबों के लिये उपलब्ध भी.
आदर्शों का हथियार लिये,
वह लङता रहा.
फ़िर
मर गया बेचारा,
ईंसान बनकर जीने चला था।
...बहुत सुन्दर,प्रसंशनीय रचना!!!

हरकीरत ' हीर' said...

अच्छी कविता है .....!!

'ईसान ' आपने किसे कहा है स्पष्ट कीजियेगा ......!!
'ईशान' का तो अर्थ है स्वामी .....या अधिपति ....!!

पूनम श्रीवास्तव said...

वह कभी नहीं मरता,
जिसके लिये यह दुनियां
एक मंदिर है,
जहां के हर पत्थर में
ईश्वर की आत्मा है
aapki puri kavita ka nichod inhi panktiyo me hai jo ki bilkul satya hai.

arvind said...

insaan shabd ka arth? kathin prashn hai.shaayed vah jo janavar nahi hai,vah jo beiman nahi hai ,devata nahi hai jo halat ko jeet le par janvar bhi nahi jo halat ke aage jhuk jaye.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छे भाव जगाती कविता के लिए बधाई।

संजय भास्‍कर said...

Aaj isi tarah aawaj uthane ki jarurat hai..