Monday, September 13, 2010

हिन्दी हम हिन्दी की भाषा

मत भूलें, हम हिन्दुस्तानी
हिन्दी हम हिन्दी की भाषा
इसके स्वर हों सारे जग में
हों पुर्ण हम सबकी आशा

मां के मुख से सुना है जिसको
कैसे भूल सकेंगे उसको..?
रची बसी जो अस्थि रक्त में
कैसे दूर करेंगे उसको..?
हर कण में हों इसकी प्रतिध्वनि
यही एक अपनी अभिलाषा
मत भूलें, हम हिन्दुस्तानी
हिन्दी हम हिन्दी की भाषा

कहता पर्वतराज हिमालय
सागर की लहरें कहती है.
बिन बदले अपने स्वर लय को
गंगा की धारा बहती है.
आओ हम भी आज करें प्रण
न बदलें अपनी लय भाषा.
मत भूलें, हम हिन्दुस्तानी
हिन्दी हम हिन्दी की भाषा

6 comments:

कडुवासच said...

... bahut sundar ... prasanshaneey rachanaa, badhaai !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..यही जज़्बा रहना चाहिए

Rahul Singh said...

हम में से अधिकतर बच्‍चों के सिर्फ अंगरेजी ज्ञान से संतुष्‍ट नहीं होते बल्कि उसकी फर्राटा अंगरेजी पर पहले चमत्‍कृत फिर गौरवान्वित होते हैं. चैत-बैसाख की कौन कहे हफ्ते के सात दिनों के नाम और 1 से 100 तक की क्‍या 20 तक की गिनती पूछने पर बच्‍चा कहता है, क्‍या पापा..., पत्‍नी कहती है आप भी तो... और हम अपनी 'दकियानूसी' पर झेंप जाते हैं. आगे क्‍या कहूं आप समझदार हैं.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

कहता पर्वतराज हिमालय
सागर की लहरें कहती है.
बिन बदले अपने स्वर लय को
गंगा की धारा बहती है.
आओ हम भी आज करें प्रण
न बदलें अपनी लय भाषा.
मत भूलें, हम हिन्दुस्तानी
हिन्दी हम हिन्दी की भाषा

बहुत ख़ूबसूरत रचना बनी इस हिन्दी दिवस पर !

दिगम्बर नासवा said...

कहता पर्वतराज हिमालय
सागर की लहरें कहती है.
बिन बदले अपने स्वर लय को
गंगा की धारा बहती है ..

नया दृष्टिकोण दिया है इन पंक्तियों में ... बहुत सुंदर रचना है आज के दिन के लिए ....
नमन हमारा भी हिन्दी को ... राष्ट्र भाषा को ....

संजय भास्‍कर said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना बनी इस हिन्दी दिवस पर !